RE: mastram kahani राधा का राज
"जाओ जानेमन नहा लो….बदन से पसीने की बू आ रही है. नहा धोकर तैयार रहना और हां बदन पर कोई भी कपड़ा नही रहे. हम कुछ देर मे तुम्हारे पातिदेव से मिलकर आते हैं. जाने से पहले एक बार तुम्हारे बदन को और अपने पानी से भिगो कर जाएँगे."
मैं चुप चाप खड़ी रही.
"अगर तूने हमारी बातों को नही माना तो कल तक सारा हॉस्पिटल जान जाएगा कि डॉक्टर. राधा अपनी सहेली के पति और उसके दोस्त के साथ रात भर रंगरलियाँ मना कर आ रही है. तुम्हारी ये ब्रा और पॅंटी मेरी बातों को साबित करेंगे."
मैं ठगी सी देखती रह गयी. कुछ भी नही कह पायी. दोनो हंसते हुए कमरे से निकल गये.
मैं दरवाजा बंद कर के अपनी बेबसी पर रो पड़ी. कुछ देर तक बिस्तर पर पड़ी रही फिर उठकर मैं बाथरूम मे घुस कर शवर के नीचे अपने बदन को खूब रगड़ रगड़ कर नहाई. मानो उन दोनो के दिए हर निशान को मिटा देना चाहती हौं.
बाहर निकल कर मैने कपड़ों की ओर हाथ बढ़ाए. मगर दोनो की हिदायत याद करके रुक गयी. मैं कुछ देर तक असमंजस मे रही. मैं अकेले मे भी कभी घर मे नग्न नही रही थी. फिर आज….खैर माने एक राज शर्मा का सामने से पूरा खुल जाने वाला गाउन पहना और बिस्तर पर जाकर लुढ़क गयी. अभी नींद का एक झोंका आया ही था कि डोर बेल की आवाज़ से नींद खुल गयी. मैने उठ कर घड़ी की तरफ निगाह डाली. सुबह के दस बज रहे थे. दोनो को गये हुए एक घंटा हो चुका था इसका मतलब है कि दरवाजे पर दोनो ही होंगे. मैं दरवाजे पर जा कर अपने गाउन की डोर खींच कर खोल दी. गाउन को अपने बदन से हटाना ही चाहती थी कि अचानक ये विचार कौंध गया कि अगर दोनो के अलावा कोई और हुआ तो? अगर उनकी जगह राज शर्मा ही हुआ तो…..क्या सोचेगा मुझे इस रूप मे देख कर? …..मेरे बदन पर बने अनगिनत नाखूनो और दांतो के निशान देख कर?
"कौन है?" मैने पूछा.
"हम हैं जानेमन….तुम्हारे आशिक़" बाहर से आवाज़ आई. मेरे पूरे बदन मे एक नफ़रत की आग जलने लगी. मैने एक लंबी साँस ली और अपने गाउन को अपने बदन से अलग होकर ज़मीन पर गिर जाने दिया. और दरवाजे की संकाल नीच कर दी. दोनो दरवाजे को खोल कर अंदर आ गये. मुझे इस रूप मे देख कर दोनो तो बस पागल ही हो गये. मैं ना नुकुर करती रही मगर मेरी मिन्नतों को सुनने का किसी के पास टाइम नही था. दोनो अंदर आ कर दरवाजे को अंदर से बंद किया. अरुण ने एक झटके से मेरे नंगे बदन को अपनी गोद मे उठाकर बेडरूम मे ले गया. मुझे बेड पर लिटा कर दोनो अपने कपड़े खोलने लगे.
"जान आज हम तुझे तेरे उसी बिस्तर पर चोदेन्गे जिस पर तू आज तक अपने राज शर्मा से ही चुद्ती आई होगी." अरुण ने कहा," ज़रा हम भी तो देखें की राज शर्मा को कितना मज़ा आता होगा तेरे इस नाज़ुक बदन को मसल्ने मे."
दोनो पूरी तरह नग्न हो कर बिस्तर पर चढ़ गये. मुझे चीत लिटा कर मुकुल मेरी टाँगों के बीच आ गया और अपना लंड मेरी योनि मे एक झटके मे डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा.
पूरी योनि रात भर की चुदाई से सूजी हुई थी उस पर से मुकुल का मोटा लंड किसी तरह का रहम देने के मूड मे नही था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी योनि को किसी सांड पेपर से घिस रहा हो. अरुण उसे खींच कर मुझ पर से हटाना चाहा. पहले मेरी योनि की चढ़ाई वो ही करना चाहता था मगर मुकुल ने कहा इस बार तो पहले वो ही चोदेगा और उसने हटने से सॉफ सॉफ इनकार कर दिया.
अरुण जब मुझ पर से मुकुल को नही हटा पाया तो मेरे स्तनो पर टूट पड़ा. मुकुल मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने मे लगा था. उसके हर धक्के के साथ पूरा बिस्तर हिल जाता था. एक तो पूरी रात चुदाई की थकान और उपर से दुख़्ता हुआ बदन इस बार तो मैं दर्द से दोहरी हुई जा रही थी. मुँह से लगातार दर्द भरी आवाज़ें और चीखें निकल रही थी.
"आआआआहह…….हा…..हा……ऊऊऊओह………म्म्माआआअ………उईईईईईईईई……आआआआआः……..न्न्नणन्नाआआहियिइ ईईईईईई…………..उउउफफफफफफ्फ़…….उूुउउफफफफफफफफ्फ़…….हा…ऊऊहह" जैसी आवाज़ों से करना गूँज रहा था.
" मैं इसके पीछे घुसाता हूँ तू उसके बाद इसकी योनि मे अपना लंड ठोकना. दोनो साथ साथ ठोकेंगे इसे." अरुण ने कहा तो मुकुल ने अपना लंड मेरी योनि से निकाल लिया. अरुण ने मुझे घुमा कर पेट के बल लिटा दिया और मेरे नितंबों के नीचे अपने हाथ देकर मेरे बदन को कुछ उपर खींचा. मेरे बदन मे अब उनका किसी भी तरह का विरोध करने की ना तो कोई ताक़त बची थी ना ही कोई इच्च्छा. मैने अपना बदन ढीला छोड़ रखा था दोनो जैसे चाह रहे थे मेरे बदन को उस तरह से भोग रहे थे. अरुण अपने लंड को मेरे गुदा पर सेट करके मेरे उपर लेट गया. उसे इसमे मुकुल मदद कर रहा था. मुकुल ने अपने हाथों से मेरी टाँगे फैला कर मेरे दोनो नितंबों को अलग करके अरुण के लंड के लिए रास्ता बनाया. उसके लेटने से अरुण का लंड मेरे गुदा द्वार को खोलता हुआ अंदर चला गया. आज ही इसकी सील मुकुल ने तोड़ दी थी इसलिए इस बार ज़्यादा दर्द नही हुआ. मुझे उसी अवस्था मे अरुण कुछ देर तक चोद्ता रहा. उसके हाथ नीचे जाकर मेरे स्तनो को वापस निचोड़ने लगे.
कुछ देर बाद उसी अवस्था मे अपने लंड को अंदर डाले डाले अरुण घूम गया. अब मेरा चेहरा छत की तरफ हो गया था. नीचे से अरुण का लंड मेरे गुदा मे धंसा हुआ था.
" अरुण कुछ बचा भी है इन दूध की बोतलों मे? आज इनको भरने की तैयारी करते हैं. देखते हैं दोनो मे से कौन बनता है इसके बच्चे का बाप. जब इन बोतलों मे दूध आएगा तो ये खुशी खुशी हमारे लंड को नहलाएगी अपने दूध से." मुकुल हंस रहा था. उसने मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से अलग किया और अपने लंड को अंदर डाल दिया. वापस मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी. दोनो ओर से एक एक लंड मेरे बदन को पीस रहे थे. दोनो एक साथ अपने लंड ठोकने लगे.
तभी अरुण ने हाथ बढ़ा कर टेलिफोन उठाया.
क्रमशाश...........................
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