RE: mastram kahani राधा का राज
मैं नीचे उतर गयी. बरसात की परवाह ना कर मैं और मुकुल दोनो काफ़ी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली. हम थक कर वापस आ गये. रात के आठ बज रहे थे. मैं पूरी तरह गीली हो गयी थी. मैं वापस आकर पीछे की सीट पर बैठ गयी. अरुण ने अंदर की लाइट ऑन की. फिर पीछे की सीट के नीचे से एक एमर्जेन्सी लाइट निकाल कर जलाया. गाड़ी के अंदर काफ़ी रोशनी हो गयी.
"अब?..."मैने रुआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा.
अरुण बॅक मिरर से मेरे बदन का अवलोकन कर रहा था. चुचियों से सारी सरक गयी थी. सफेद ब्लाउस और ब्रा बरसात मे भीग कर पारदर्शी हो गये थे. ब्लाउस के उपर से मेरे निपल्स दो काले धब्बों के रूप मे नज़र आ रहे थे. उपर से सारी का आँचल हट जाने से निपल्स सॉफ सॉफ नज़र आरहे थे. मैने उसकी नज़रों का पीछा किया और अपनी अर्धनग्न छाती को घूरता पकड़ जल्दी से अपनी चुचियों को सारी से छिपा लिया. उसने भी लाइट बंद कर दी. अंदर का महॉल कुछ गर्म होने लगा था. अरुण बार बार अपनी सीट पर कसमसा रहा था. उसकी हालत देख कर पता चल रहा था कि इस वीरान जगह और इतने सेक्सी मौसम मे उसकी नीयत डोलने लगी थी.
"अब यहीं रुकना पड़ेगा रात भर. या अगर कोई और वाहन इस रास्ते से जाता हुआ मिल जाए वैसे उम्मीद कम है. क्योंकि इस रास्ते पर दिन मे ही कभी इक्का दुक्का गाड़ी गुजरती है."
मैं चुपचाप बैठी रही. रात अंधेरे मे दो गैर मर्दों का साथ…… दिल को डूबने के लिए काफ़ी था.
कुछ देर बाद बरसात बंद हो गयी मगर ठंडी हवा चलने लगी. बाहर कभी कभी जानवरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. बरसात रुकने के बाद अरुण और मुकुल जीप की हेडलाइट्स ओन करके गाड़ी से निकल गये. उन्हों ने अपने अपने वस्त्र उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए. दोनो सिर्फ़ अंडरवेर मे थे. हेड लाइट्स की रोशनी मे दोनो की मोटे मोटे लंड गीले अंडरवेर के अंदर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे. अरुण का लंड तो खड़ा हो गया था. उसका मुँह आसमान की ओर थॉ ऑर उसका अंडरवेर फाड़ कर बाहर निकलने के लिए च्चटपटा रहा था. मुझे उन दोनो के विशाल अस्त्र देख कर झुरजुरी सी लगने लगी.
मैं ठंड से काँप रही थी. शरम की वजह से गीले कपड़े भी उतार नहीं पा रही थी.अरुण मेरे पास आया "देखो राधा घुप अंधेरा है. तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो." अरुण ने कहा."वरना ठंड लग जाएगी. हम बाहर बैठे रहेंगे तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है."
मैं कुछ देर तो असमंजस मे चुप रही फिर दिल को सख़्त करके मैने उसकी बात को मानना ही उचित समझा.
"कुछ है पहन ने को?" मैने पूछा, "कुछ तो पहनने को दो..". मैं उससे कहते हुए शरम से दोहरी हो गयी.
"नहीं!" अरुण ने कहा "हमारे पहने कपड़े भी तो भीग चुके हैं. पहले से थोड़े ही मालूम था कि इस तरह हमे रात जंगल मे गुजारनी पड़ेगी. और उपर से कपड़े भी गीले हो जाएँगे. वैसे यहाँ काफ़ी रीच्छ और भालू मिलते हैं. रीच्छ बहुत सेक्सी जानवर होते हैं. सनडर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं और जम कर उनके साथ संभोग करते है."
"मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. यहाँ खड़े खड़े मुझे सताना छोड़ कर कुछ इंतज़ाम तो करो."मैने पूछा, "कुछ तो देखो नही तो मैं ठंड से मर जाउन्गि" मेरे दाँत बज रहे थे.
"पिक्निक पे गये थे क्या. जो कपड़े बिस्तर सब लेकर चलते." अरुण मज़ाक कर रहा था और बार बार गाड़ी के अंदर जल रही हल्की रोशनी मे मेरे मादक बदन को निहार रहा था. गीले वस्त्रों मे अपने कामुक बदन की नुमाइश करने से बचने की मैं भरसक कोशिश कर रही थी. लेकिन एक अंग च्चिपाती तो दूसरा अंग बेपर्दा हो जाता.
"सर, एक पुरानी फटी हुई चदडार है पीछे. अगर उस से काम चल जाए.." मुकुल ने कहा."दिखा डॉक्टरणी को." अरुण ने कहा. मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी. चादर से धूल की महक आ र्है थी लेकिन मुझे इस वक़्त तो वो डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था.
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