RE: Muslim Sex Stories मैं बाजी और बहुत कुछ
नाश्ते का मन तो नहीं कर रहा था पर जीने के लिए जितना जरूरी था इतना खाया और साथ ही बाजी को ही देखता रहा। । उन्होंने तो जैसे कसम खाई थी मुझे ना देखने की। । मानव का स्वभाव है कि आपको किसी का प्यार न मिले तो संभव है आप धैर्य कर जाओ और जो ज़ुल्म भी तुम पे करे पर किसी बात के रिस्पोन्स में ज़रा सा प्यार का जलवा करवा दे और फिर मुंह मोड़ ले तो यह बात बर्दाश्त से बाहर हो जाती है और आपका जो रिएक्शन होता है, वह सख़्त और कठोर हो सकता है। । बाजी के न देखने पर और सख्त व्यवहार पे मुझे गुस्सा आ गया और गुस्से की हालत में ही अपने कमरे में आ गया। । ।
रात 11: 30 बजे में बेचैनी से अपने रूम में चक्कर काट रहा था और 12 बजने का इंतजार कर रहा था। । । फिर कुछ सोचते हुए बाथरूम में गया और सिगरेट पीने लगा ताकि कुछ फ्रेश हो जाऊं। । ऐसे ही अजीब गरीब हरकतों में 12 बज गए और मैं अपने कमरे से निकला और बाजी के रूम की ओर बढ़ा। । । आज मेरे चलने के तरीके में सख्ती थी। शायद अब मामला मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया था। । आज मैं अपने प्यार का अधिकार लेने जा रहा था। ।
बाजी के रूम के दरवाजे पे नोक किया तो थोड़ी देर बाद बाजी ने दरवाजा खोला। । । वह इस दुनिया की शायद थी ही नहीं, वह शायद अंजाने मे इस दुनिया में आ बसी थी, बाजी के सामने आते ही पता नहीं क्यों मेरे अंदर की विद्रोही सोच जाने कहाँ गायब हुईं, यह बात मुझे भी तब समझ नहीं आई। । मैं अंतर्मुखी सा खड़ा बस उसे देखता ही रह गया।
बाजी ने कहा: सलमान।
मैं जैसे दुनिया पे वापस आया और कहा: जी। । ।
बाजी चेहरे पे सख्ती थी और उसी दृढ़ता से उन्होंने मुझे कहा: सलमान अपने रूम में वापस जाओ और आज के बाद इस तरह मेरे कमरे में आने की कोई जरूरत नहीं। । ।
मैं हक्का बकासा खड़ा उनके मुंह से निकलते ये शब्द सुन रहा था। । मेरे तो भ्रम और गुमान में भी यह बात नहीं थी जो वह कह गईं। । मैं तो आज यहाँ अपने प्यार का अधिकार लेने इस हूर के दरबार में आया था। पर इस हूर ने तो मुझे ऐसे ठुकरा दिया जैसे कोई किसी माँगने वाले फ़क़ीर को भी नहीं ठुकराते। । । । मेरी आंखें नम हो गई और मेरे मुंह से बस एक ही शब्द निकला "" क्यों "
" दीदी ने मेरी नम आँखों की परवाह न करते हुए बस इतना ही कहा कि "" जो मैंने कहना था कह दिया और हाँ यह भी सुनते जाओ मैं तुम्हारे सर पे हाथ रख के कसम भी खाती हूँ कि अगर तुमने फिर से वही हाथ काटने वालाकाम किया तो याद रखना मैं भी उसी दिन अपने आप को समाप्त कर दूंगी "" यह बातकहते हुए बाजी ने मेरे सर पे अपना एक हाथ रख दिया और अपनी बात पूरी होते ही बाजी पीछे को हुई और अपनाडोर बंद कर दिया। । ।
दिल टूटे और आंसू न निकलें ऐसा कब संभव है। । कितनी ही देर बाजी केडोर के सामने खड़ा रोता रहा। । और फिर ऐसे ही रोता हुआ अपने कमरे में वापस आ गया और बेड पे गिर के रोते रोते, सोचते सोचते, बेड को, गालों को, पलकों को भिगोता पता नहीं किस पहर सो गया। । ।
दिन बीतते जा रहे थे और मैं अंदर से एक बार फिर शायद मर चुका था। । वह सुंदर सपनों वाले दिन शायद फिर बीत चुके थे। । ।
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