RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
"एक बार चोदा चोदी सुरु हो गयी फिर कुछ काम नहीं होगा.........ना तेरा दिल करेगा न मेरा......फिर तोह तेरे पीता आने तक चुदाई ही होगी" अंजलि का स्वर उत्तेजना और कामुकता से भरपूर था. उन अति अस्लील शब्दों को अपनी प्यारी पतिव्रता माँ के मुंह से सुनना कितना कामोत्तेजित था यह सिर्फ विशाल ही बता सकता था. ऊपर से अंजलि की मध भरी सिसकती आवाज़ उन शब्दो के असर को और गहरायी दे रही थी.
विशाल झुक कर फिर से अपने होंठ अंजलि के होंठो पर रख देता है. दोनों एक बेहद्द लम्बे, गहरे चुम्बन में दुब जाते है. जब होंट अलग होते हैं तोह दोनों माँ बेटे की साँस फूलि हुयी थी. "तुम सच कह रही हो माँ.....एक बार चुदाई सुरु हो गयी तोह फिर कुछ काम नहीं होगा......इसलिए.....पहले काम ख़तम कर लेना चहिये" विशाल की बात से अंजलि को झटका सा लगता है. वो इतनी गरम हो चुकी थी और इतनी बेचैन हो चुकी थी के उस समय वो सिर्फ और सिर्फ बेटे से चुदवाना चाहती थी और वो पहली बार बेटे का लंड अपनी चुत में लेने के लिए पूरी तय्यर भी थी मगर विशाल ने उसे हैरत में दाल दिया था, उसने विशाल से उम्मीद नहीं की थी के उसका खुद पर इतना कण्ट्रोल होगा.
"तो चलो फिर देर किस बात की" दोनों माँ बेटा मुस्कराते हैं और फिर दोबारा से घर का काम सुरु होता है. इस बार काम का तरीका पहले से बिलकुल अलग था. अब न तोह विशाल और न ही अंजलि कुछ बोल रही थी अगर दोनों में से कुछ बोलता तोह सिर्फ काम के मुतालिक. दोनों माँ बेटे का पूरा ध्यान काम पर था. विशाल भाग भाग कर माँ की मदद कर रहा था. काम इस कदर तेज़ी से हो रहा था जैसे माँ बेटे की जिन्दगी उस समय घर की सफायी पर निर्भर थी. दो घंटे से थोड़ा सा ज्यादा वक्त लगा होगा के पूरा घर चमचमा रहा था. पूरे घर की सफायी हो चुकी थी, फर्नीचर वापस अपनी पहली वाली जगह पर सेट हो चुका था. फालतू का अपना स्टोर में रखा जा चुका था. पूरा घर फंक्शन से पहले की स्थिति में था अलबता ज्यादा साफ़ था. बस अब सिर्फ कपडे और कुछ बेड शीट्स वगेरह धोनी बाकि थी. ढ़ोने वाले सारे कपडे विशाल घर के पिछवाड़े में बाथरूम के पास रख आया था यहाँ वाशिंग मशीन रखी हुयी थी. जब विशाल वापस ड्राइंग रूम में आया तोह उसने अंजलि को एक चुनरी से बदन से पसिना पोंछते देखा. दोनों के बदन गर्मी की दोपहर में पसीने से नहा उठे थे. इतनी तेज़ रफ़्तार से काम करने के कारन दोनों की साँसे भी कुछ फूलि हुयी थी.
विशाल माँ के पास जाकर उसके हाथ से चुनरी ले लेता है और खुद उसके बदन से पसिना पोंछने लगता है. अंजलि खड़ी मुस्कराने लगती है. विशाल अंजलि की पीठ से पसिना पोंछता निचे की और बढ़ता है. माँ के दोनों कुल्हो को प्यार से सेहलता वो पोंछता है. बड़ी ही कौशलता से धीरे धीरे दोनों नितम्बो में चुनरी दबाता है और पोंछने के बाद बड़ी ही कोमलता से दोनों नितम्बो को बारी बारी चूमता है. अंजलि की हँसी छूट जाती है. विशाल उठ कर अंजलि को अपनी तरफ घुमाता है और फिर उसी सोफ़े के पास ले जाता है जिसे पकड़ कर थोड़ी देर पहले वो घोड़ी बनी हुयी थी. विशाल माँ को सोफ़े पर बैठने के लिए इशारा करता है तोह अंजलि सोफ़े के कार्नर में बैठ जाती है. विशाल अपनी माँ के पास घुटनो के बल बैठ कर उसी प्यार से उसके सीने से पसिना पोंछता है. दोनों मम्मो को पोंछने के पश्चात वो उसी प्यार और नाज़ुकता से दोनों आकड़े हुए गहरे गुलाबी निप्पलों को चूमता है. अंजलि गहरी सिसकरी लेती है. उसकी चुत फिर से रस से सरोबार होने लगी थी. विशाल के हाथ अब पेट से होते हुए अंजलि की गोरी मुलायम जांघो को पोंछने लगा. चुत को विशाल ने टच नहीं किया था सीधा पेट से जांघो पर पहुँच गया था जिससे अंजलि को थोड़ी हैरानी के साथ साथ निराशा भी हुयी थी. विशाल टांगो को साफ़ करने के बाद जांघो को चूमता आखिरकार चुनरी से चुत को पोंछता है. अंजलि एक तीखी गहरी सांस लेती है. विशाल का लंड फिर से पूरे जोश में आ चुका था. कांपते हाथो से माँ की चुत को पोंछते हुए अपनी नज़र ऊपर करता है तोह उसकी नज़र सीधी अंजलि की नज़र से टकराती है. अंजलि बेटे को असीम प्यार और स्नेह से देखति उसके बालों में हाथ फेरती है. विशाल चुनरी छोड़ अपने होंठ माँ की चुत की तरफ बढाता है. अभी बेटे के होंठ चुत तक्क पहुंचे भी नहीं थे के माँ की ऑंखे बंद हो जाती है. अपनी ऑंखे कस्स कर बंद किये अंजलि बड़ी बेचैनी से होंठ काटती बेटे के होंठो का इंतज़ार करती है. विशाल लगातार माँ के चेहरे पर नज़र गड़ाये अपने होंठ उसकी चुत की और बढाता रहता है और जैसे ही उसके होंठ चुत को स्पर्श करते हैं;
"बेटा......उउउउउनंनहहः......बेटाआ........"अंजली ज़ोर से सिसक पड़ती है
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