RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
उसने झेंपते हुए तुरंत अपनी नज़रें उपर की और लाला को देखकर बोली : "वो...नंदू की तबीयत ठीक नही है लाला...इसलिए वो आज घर पर ही आराम कर रहा है..''
इतना कहकर वो चलने को हुई तो लाला बोला : "अररी गोरी, तू मुझे देखकर ऐसे क्यो बिदक रही है, मैं तेरा हितेशी हूँ री, मुझसे कैसा डरना...चल आ, बैठ पीछे, तुझे तेरे खेत तक छोड़ देता हूँ ...''
वो लाला को ना तो करना चाहती थी पर कर ना पाई, और पता नही किस सोच में आकर उसने सिर हिला दिया और उचककर लाला की बुलेट पर बैठ गयी..
एक पल के लिए तो लाला को भी विश्वास नही हुआ की वो सच में उसके पीछे बैठ गयी है...
बैठने के साथ ही उसने लाला के कंधे पर हाथ रखकर उसे थाम भी लिया ताकि चलते हुए वो गिर ना पड़े...
लाला के कसरती कंधे की मांसपेशियां पकड़कर उसके बदन में सिहरन सी होने लगी..
और ऐसा ही कुछ लाला को भी महसूस हुआ, लाला को ऐसा लगा जैसे नर्म फूलो की डाली उसके कंधे पर रख दी हो किसी ने...
बस फिर क्या था, लाला बड़ी शान से उसे पीछे बिठाकर आगे चल दिया...
अब तो लाला को उसकी चुदाई के चांस सॉफ दिखाई दे रहे थे.
जल्द ही वो खेत तक पहुँच गये, जैसे ही गोरी उतरी, लाला ने अपनी तरफ से दाना फेंका
वो बोला : "मुझसे डरना बंद कर दे गोरी, मुझे अपना ही समझा कर...आगे से किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो बेझिझक मुझे बता दिया कर...आख़िर लाला किस काम आएगा...''
इतना कहते हुए उसने अपना हाथ लंड पर रखकर उसे दबा दिया
गोरी ने साफ़ देखा की लाला ने धोती के कपडे में छिपे लंड को पकड़कर ऊपर से नीचे तक सहलाया, ऐसा करके वो गोरी को अपने लंड के साइज और मोटाई का एहसास करा रहा था
और ऐसा करके उसने अपना पैर गियर पर रखकर बुलेट भगा दी और कुछ ही देर में उसकी बुलेट धूल छोड़ती हुई आँखो से ओझल हो गयी...
और गोरी बेचारी मुँह फाड़े उसकी बातों और अश्लील इशारों का मतलब समझती हुई उसे जाते हुए देखती रही...
कितनी बेहूदगी से उसने अपने लंड को पकड़कर ये बात बोली थी, ऐसे में तो उसकी मदद का मतलब कोई भी बता सकता था...
कुछ देर तक उसे अपलक देखते रहने के बाद वो वापिस चल दी...
और उसे खुद पर आश्चर्य हो रहा था की जाते-2 वो मुस्कुरा रही थी...
वो मुस्कुराहट जो उसके पूरे शरीर मे एक सनसनी सी मचा रही थी , ये सोचकर की लाला आख़िर क्या कहना चाहता था..
और अपनी मुस्कुराहट पर काबू करते हुए वो बुदबुदा उठी : "साला...हरामी लाला...''
उसके कंधे को पकड़कर ही वो उसके गठीले शरीर को पहचान चुकी थी,
ऐसा ही गठीला शरीर नंदू का भी था, पर लाला की उम्र और उसकी उम्र के फ़ासले को देखते हुए वो लाला की तारीफ किए बिना नही रह सकी...
उपर से उसकी धोती में बंद उसके लंड की उँचाई भी उसे लाला की तरफ आकर्षित कर रही थी,
शायद उसे देखकर ही वो लाला की बात सुनकर भी उसका कोई जवाब नही दे पाई..
खैर, यही सब सोचते-2 वो अपने खेतो में जाकर काम करने लगी...
ट्यूबवेल का पानी चलाया, बारी-2 से उसने हर क्यारी की नाली खोलकर उनकी सिंचाई करी, जहाँ ज़रूरत महसूस हुई वहां कीटनाशक दवाई छिड़की, बौंड्री की तार जो एक तरफ से टूट चुकी थी उसे बड़ी मुश्किल से जोड़ा भी...
यही सब करते-2 करीब 3 घंटे निकल गये...
वो थक गयी थी इसलिए कुछ देर के लिए वो ट्यूबवेल वाले कमरे में जाकर चारपाई पर लेट गयी....
शरीर चिपचिपा सा हो रहा था, आज नंदू भी नही था, इसलिए उसने दरवाजा बंद किया और कल की तरह अपने कपड़े उतारकर पानी की होदी में घुस कर नहाने लगी...
और लगभग उसी वक़्त लाला भी अपने खेतो का चक्कर लगाकर और वहां का हिसाब किताब लेकर वापिस लौट रहा था,
उसके मन में तो सुबह से ही गोरी का गोरा बदन घूम रहा था,
इसलिए आते हुए वो उसके खेतो के पास से ही होकर निकला...
पर उसे वहां ना देखकर वो निराश हो गया, नज़रें दौड़ाई तो उसे कोने में बने कमरे का दरवाजा बंद दिखाई दिया, ये देखते ही उसकी आँखे चमक उठी...
उसे पता था की खेतो में बने इस ट्यूबवेल वाले कमरे में सभी ने एक बड़ी सी होदी बना रखी है और अक्सर वो उसमें नहा भी लिया करते है,
लाला के भी लगभग हर खेत में वैसी ही होदी थी और उसने तो कई बार उसमें गाँव की ना जाने कितनी औरतों को चोदा भी था.
बस आज उसकी होदी में गोरी को चोदने की आस लेकर वो अंदर चल दिया....
वहां पहुँचकर उसने देखा की दरवाजा अंदर से बंद है, चारों तरफ देखा पर उसे कोई छेद नही दिखाई दिया जिसमें से अंदर झाँककर कुछ देखा जा सके,
वो घूमकर पीछे की तरफ गया तो उसकी आँखे चमक उठी, वहां एक छेद था जिसमें से झाँककर अंदर देखा जा सकता था,
ये वही छेद था जिसे नंदू ने काफ़ी मेहनत से ढूँढा था या शायद खुद ही बनाया था, ताकि वो अपनी माँ को नंगा देख सके...
लाला ने अंदर देखा तो उसका गला सूख गया,
गोरी पूरी नंगी होकर पानी में अठखेलियां कर रही थी और उसकी तनी हुई चुचियां पानी में भीगकर एकदम कड़क हुई पड़ी थी
वो एक हाथ से अपनी निप्पल को भींच रही थी और दूसरे से अपनी चूत को रगड़ रही थी.
लाला जानता था की यही मौका है , आज नही तो कभी नही...
गर्म हो चुकी औरत को अपने जाल में फँसाना काफ़ी आसान होता है..
यही सोचकर वो सामने वाले दरवाजे के करीब पहुँचा और अपनी शक्तिशाली भुजाओं और टाँगो का प्रयोग करते हुए उसने एक लात नीचे से मारी और उपर से हाथ का दबाव दिया जिससे अंदर की चिटखनी खुलती चली गयी और लाला रोबीले अंदाज में अंदर दाखिल हो गया...
जहाँ वो पूरी नंगी होकर नहा रही थी
अपनी आँखे बंद किए अपनी चूत मसल रही गोरी को जैसे ही दरवाजा खुलने का एहसास हुआ वो झट्ट से पानी के अंदर बैठ गयी, जिससे उसका पूरा बदन पानी में छुप गया...
हाथो से उसने अपने मुम्मो को ढक लिया.
गोरी : "लाला...ये क्या बदतमीज़ी है ....तुम अंदर कैसे घुसते चले आ रहे हो...??''
लाला ने हड़बड़ाने का नाटक किया और बोला : "ओह्ह्ह ....माफ़ करना गोरी...मुझे लगा की शायद तुम मुसीबत में हो...मैं तो कब से बाहर खड़ा तुम्हे आवाज़े लगा रहा था पर तुमने सुना ही नही....''
गोरी : "पर...पर मुझे तो कोई आवाज़ नही आई लाला...''
तब तक लाला उसके बिल्कुल सामने आकर खड़ा हो चुका था...
और जहां वो खड़ा था वहां से वो पानी में नंगी बैठी गोरी को अच्छी तरह से देख पा रहा था...
लाला : "तुझे आवाज़ आती भी कैसे गोरी...तू अपनी मुनिया रगड़ने में इतना बिज़ी थी की तुझे वो आवाज़ सुनाई ही नही दी....''
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