bahan sex kahani भैया का ख़याल मैं रखूँगी
02-01-2019, 04:35 PM,
#14
RE: bahan sex kahani भैया का ख़याल मैं रखूँगी
दोपहर तक आशना ने अपनी कुछ ज़रूरी शॉपिंग भी कर ली थी. उसने अपनी ज़रूरत के हिसाब से सब कुछ खरीद लिया तह और उसे वीरेंदर की गाड़ी मैं डाल कर उसे हवेली छोड़ आई थी. बिहारी काका को उसने कह दिया थे कि वो उपर वाले फ्लोर मे से कोई एक कमरा उसके लिए तैयार कर दे और उसका सारा समान वहाँ पर रख दे. बिहारी काका को उसने बताया के वो डॉक्टर. बीना के दोस्त की बेटी है और अब वो यहीं रहकर वीरेंदर का इलाज करेगी. बिहारी काका को सब कुछ समझा कर और गाड़ी को अपनी जगह लगाकर वो टॅक्सी से हॉस्पिटल पहुँची तो दोपहर के 12:30 बज गये थे.

हॉस्पिटल पहुँचते ही वो डॉक्टर. बीना के रूम मे गई. बीना: आओ आशना, मैने वीरेंदर की डिसचार्ज स्लिप बना दी है. अब तुम उसे घर ले जा सकती हो. आशना की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो गले लग कर डॉक्टर. बीना को ज़ोर से गले लगा लेती है. आशना: थॅंक यू डॉक्टर. अगर आप नहीं होती तो मेरे लिए यह सब मुमकिन नहीं था.

डॉक्टर. बीना, इट्स ओके आशना, पर तुम्हे किसी तरह वीरेंदर को फिर से नयी ज़िंदगी देनी होगी. 

आशना- मैं ज़रूर ऐसा करूँगी. इतना कहकर उसने स्लिप डॉक्टर. से ली,

डॉक्टर. ने उसे सारी दवाइयों के बारे मे समझा दिया और आशना जैसे ही जाने के लिए मूडी के बीना ने कहा: "आशना काश तुम सचमुच वीरेंदर की बेहन ना होती". आशना के कदम यह सुनकर एकदम ठिठक गयी पर वो मूडी नहीं, शायद यह बात तो उसने भुला ही दी थी कि वो वीरेंदर की बेहन है. 


हॉस्पिटल से वीरेंदर को लेके वो एक टॅक्सी मे वीरेंदर के घर के बाहर पहुँचे. बिहारी काका उनका गेट खोलकर बाहर ही वेट कर रहे थे. टॅक्सी सीधा कॉंपाउंड मे घुसी और बंग्लॉ के दरवाज़े के पास आकर रुकी. वीरेंदर ने टॅक्सी वाले के पैसे देकर उसे वहाँ से रवाना किया और एक ठंडी सांस छोड़ी. वीरेंदर ने धीरे से कहा "फिर से वही ख़ालीपन मुबारक हो वीरेंदर" और इतना कहकर वो अंदर चला गया. आशना ने उसे सॉफ सुना पर उस वक्त उसने कुछ बोलना ठीक नहीं समझा.



अंदर आने पर वीरेंदर सीधा अपने कमरे मे चला गया और आशना किचन की तरफ चल दी. बिहारी काका ने दोपहर के खाने की तैयारी कर रखी थी. आज बिहारी काका ने चिकन,मटन, डाल, वेजिटेबल,,खीर और चावल बनाए थे. आशना के पीछे पीछे बिहारी काका भी किचन मे आ गये.

काका: बिटिया भूख लगी है क्या. 

आशना ने बिना पीछे देखे जवाब दिया: नहीं काका बस आपके खाने की खुश्बू यहाँ तक खींच लाई. वैसे वीरेंदर के आने पर आज तो अपने पूरी दावत की तैयारी कर रखी है. 

बिहारी काका झेन्प्ते हुए: नहीं बिटिया ऐसी बात नहीं है, आज बड़े दिनो बाद मालिक ठीक होकर घर आए हैं तो सारी उनकी पसंद की चीज़े बनाई हैं. छोटे मालिक को खाने मे मीट-मुर्ग बहुत पसंद है. 

आशना मन मैं सोचते हुए (तभी इतनी सेहत बना रखी है जनाब ने). 

आशना: पर काका कुछ दिन वीरेंदर के खाने का थोड़ा ध्यान रखना पड़ेगा क्यूंकी इस तरह के खाने मे काफ़ी फॅट होता है जो वीरेंदर की सेहत के लिए अच्छा नहीं है. 

काका: पर बिटिया, मालिक तो रोज़ाना शाम को जिम मे खूब कसरत करके सारी चर्बी बहा देते हैं. 

आशना: बहती कहाँ है काका वो तो उनके अंदर ही रहती है. आशना ने यह बोल तो दिया पर उसे इसका एहसास काका के होंठों पर आई कुटिल मुस्कान से हुआ कि उसने अंजाने मे यह क्या कह दिया. आशना का चेहरा शरम से लाल हो गया और आँखें झुक गईं. 

काका ने बात संभालते हुए कहा: पर बिटिया मालिक तो मीट -मुर्ग के बिना खाना खाते ही नहीं 

आशना कुछ ना बोल सकी उसके पास और कुछ बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. वो अपनी पिछली बात के बारे मे ही सोच रही थी. 

काका: वैसे भी अब तुम आ ही गई हो तो मालिक का ख़याल तो तुम रख ही लॉगी. यह बात काका ने बड़े ज़ोर देके कही. इससे पहले आशना कुछ समझ पाती, काका ने कहा : जब भूख लगेगी बता देना, मैं रोटियाँ बना दूँगा. आशना ने नज़रें नीचे करके ही हां मैं गर्दन हिलाई. काका वहाँ से चले गये और आशना इन सारी बातों का मतलब निकालने लगी. आशना सोचने लगी कि काका ने कितनी जल्दी मेरी बात पकड़ ली और मुझे वीरेंदर की चर्बी का इलाज भी बता दिया. 

आशना: छि मैं भी क्या सोच रही हूँ, वो मेरे भैया हैं, मैं उनका ख़याल रखूँगी पर एक बहन होने के नाते. मैं उनके लिए खुद एक अच्छी सी लड़की ढूँढ लाउन्गी जो उनकी इस अजीब बीमारी मे इनकी मदद करे. यह सोचते सोचते आशना कब सीडीयाँ चढ़ कर उपर पहुँची उसे पता ही ना लगा. उपर आकर वो अपने कमरे मे चली गई और अपनी न्यू ड्रेस लेकर बाथरूम मे चली गई. यह बाथरूम सेम नीचे वाले बाथरूम जैसा था बस टाइल्स अलग कलर्स और डिज़ाइन की थीं. अच्छे से नहाने के बाद आशना ने नये कपड़े पहने और अपने कमरे से बाहर आकर वीरेंदर के कमरे की तरफ चल दी. आशना ने डोर नॉक किया. उसके कानों मे फिर वोही भारी मर्दाना आवाज़ गूँजी 'आ जाओ". 


आशना ने दरवाज़े को हल्का सा धक्का दिया तो वो खुलता गया. अंदर वीरेंदर एक सफेद लोवर और ग्रीन टी-शर्ट मे सोफे पे बैठा कुछ फाइल्स देख रहा था. उसने एक उड़ती सी नज़र आशना पर डाली और फिर फाइल्स मे खो गया. 

आशना: यह क्या वीरेंदर जी, आपने आते ही ओफिसे का काम देखना शुरू कर दिया. 
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