Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:39 PM,
#86
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरे कानो में ऐसी आवाज आ रही थी की जैसे पानी बह रहा हो पूछने पर पता चला की बगीचे से थोड़ी दूर ही नदी है तो मेरी उत्सुकता बढ़ी उधर जाने की पर आगे कंटीले तारो से बाड़ की हुई थी तो इधर से जाना मुमकिन ना था , 

मैं- चाची नदी में नहाने का जी कर रहा है

वो- अभी तो मुमकिन नहीं हो पायेगा ऊपर से सांझ ढल गयी है तो अँधेरा हो जायगा सेफ नहीं है , कल मैं तुम्हारे साथ नदी पे चलूंगी 

मैं खुश हो गया 

काफ़ी देर तक उधर बैठने के बाद हम लोग वापिस हो लिए तो चाची बोली- आम खायेगा 

- हां, उधर वो ताजे आम रखे थे उधर से घर ले चलेंगे फिर खायेंगे आराम से 

वो- अरे पगले, देख इन पेड़ो पर कितने रसीले आम झूल रहे है , और वैसे भी जो मजा पेड़ से आम तोड़कर खाने में है वो और कहा 

- बात तो सही है पर मुझे पेड़ पर चढ़ना आता नहीं है 

चाची-बुद्धू, चढ़ने की क्या जरुरत है आस पास कोई पत्थर देख उस से तोड़ ले 

मैंने कोशिस की पर कोई बड़ा पत्थर नहीं मिला 

तो चाची बोली- मायूस क्यों होते हो , देखो वो सामने वाला पेड़ थोडा सा छोटा है औरो से आम भी नीचे लगे है उधर चलते है 

मैंने उछल कर तोड़ने की कोशिश की पर हाथ आ नहीं रहे थे आम 

चाची हसने लगी और बोली- क्या हुआ 

मैं- हाथ नहीं आ रहे है और आपको हंसी आ रही है 

वो- अच्छा, बाबा, नहीं हस्ती, एक काम कर मुझे उठा कर ऊपर कर मैं तोडके देती हूँ 

मैं- इतनी भारी को मुझसे ना उठाया जायेगा 

वो- अच्छा जी, मंजू को तो झट से गोद में उठा लेता है चल बहाने मत बना आम खाना है तो उठा मुझे 
आज उनकी आँखों में , उनकी बातो में एक अलग सी बेतकल्लुफी लग रही थी जैसे रति की उस सादगी ने मेरा दिल धड़का दिया था वैसे ही कुछ कुछ फील हो रहा था मुझे, मैं चाची को अपनी बाहों में उठाने लगा तो मेरे हाथ उनकी मक्खन सी चिकनी जांघो पर कुछ ज्यादा ही जोर से कस गए तो वो सीत्कार उठी और बोली- आराम से उठा ना क्या करता है 

मैं फिर से उठाने लगा उनको जांघो स थाम के ऊपर किया तो जल्दी ही उनके दोनों चूतड़ मेरे हाथो में आ गए मैंने उन्हें वहा से थाम लिया वो ऊपर को उचकने लगी आम तोड़ने को , बेखुदी सा अहसास होने लगा था मुझे , बड़े प्यार से मैंने उनकी गोल मटोल गांड को मसल दिया तो वो कसमसा गयी चाची आम तोड़ने लगी अब जिस तरह से मैंने उन्हें ऊपर किया हुआ था तो उनका पेट मेरे मुह पर सटा हुआ था उनके बदन से आती मनमोहक खुसबू मुझ पर अपना जादू चलाने लगी , मैं बेकाबू सा होने लगा मेरा लंड कपड़ो की कैद में मचलने लगा 

वो- हाथ पहूँच पा नहीं रहा है थोडा सा और उठा जरा 

मैंने जितना हो सके उतना ऊपर किया और मेरे इस प्रयास के साथ अब सिचुएशन ये बनी की उनकी चूत वाला हिस्सा बिलकुल मेरे होंठो पर सटा हुआ था वहा से निकलती गर्मी मुझे साफ़ साफ़ अपनी नाक और चेहरे पर महसूस हो रही थी , एक बड़ी ही अच्छी खुशबू आ रही थी , बिना कुछ सोचे समझे मैं अपनी नाक को उस फूली हुई जगह पर रगड़ने लगा चाची मेरी इस हरकत से सकते में आ गयी तो वो मचलते हुए बोली-“क्या करते हो आराम से पकड़ो मुझे कही मैं गिर ना जाऊ ”

मैं- पकड़ तो रखा है आप आम तोड़ो तो सही 

वो- तोड़ तो रही हूँ , देखना कही गिरा मत देना 

मैं- खुद गिर जाऊंगा पर आपको नहीं गिरने दूंगा 

मेरे हाथ उनकी जांघो के पिछले हिस्से पर किसी सांप की तरह रेंग रहे थी जबकि मेरी नाक उनकी चूत में घुसने को मरी जा रही थी उफ़ ये दिल्लगी कैसा इम्तिहान ले रही थी , मुझसे रहा नहीं गया मैंने अपने दांतों से हलके से उनकी चूत वाले फूले हिस्से पर काट लिया , चाची के बदन में आई हलकी सी कम्पन को मैंने किसी भूचाल की तरह महसूस किया उनका बैलेंस बिगड़ा और वो गिरने को हुई पर मैंने अपनी बाहों में उनको थाम लिया , आँखे आँखों से टकराई दो पल में ही आँखे ना जाने आँखों स क्या कह गयी उस एक पल में जैसे दिल ने उनके दिल को कोई संदेसा भेज दिया हो 

बड़ी नजाकत से वो अपनी गांड को मेरे खड़े लंड से रगड़ते हुए उतरी उनकी साँसे जैसे कुछ ज्यादा तेज चल पड़ी थी हवा कही थम सी गयी थी पसीना कान के पीछे से बह चला था वो मेरी बाहों से उतरी और आगे तो चलने लगी की तभी मैंने उनके हाथ को थाम लिया और उनको खीच लिया अपने आगोश में साख से टूटी किसी डाली की तरह वो आ लगी मेरे सीने से 

वो धीरे से फुसफुसाते हुए- क्या कर रहे हो 

मैं उनके लबो पर ऊँगली रखते हुए- shhhhhhhhhhhhhhhhhhhh 

मैंने अपना हाथ उनकी कमर पर कसा और अपने चेहरे को उनके सुर्ख हो गए चेहरे पर झुका दिया , हम दोनों के होठ इतने पास थे की एक दुसरे की गरम साँसे आपस में उलझने लगी थी उनके होठ हलके हलके से कांपने लगे थे गुलाबी होंठो पर सजा हुआ काला तिल देख कर मेरा मन ललचाने लगा चाची की तेज हो गयी धड़कने उस वीराने में जैसे गूँज रही थी , मेरे होठ बस उनके सुर्ख लबो को छु ही पाए थे की किसी के आने का आभास हुआ तो हम अलग हो गए , उन दो चार पलो में बहुत कुछ हो गया था चाची के माथे पर पसीना छलक आया था उन्होंने अपनी चुन्नी से पौंछा और बड़ी गौर से मेरी तरफ देखने लगी , तभी एक नीलगाय कुछ दूरी से निकल गयी तो ये थी जिसके आने की आवाज सुनाई दी थी 

मैं- चाची 

वो- देर हो रही है चलते है 

फिर वो कुछ नहीं बोली ना मैं कुछ बोला , बाग़ की इस साइड पर आकर हमे हाथ पाँव धोये पानी वगैरा पिया चाची यहाँ पर नार्मल व्यवहार कर रही थी एक झोले में उन्होंने कुछ आम रख लिए और फिर हम घर के लिए निकल पड़े ,घर पर नाना नानी भी आ चुके थे तो नानी का हाल पूछा मैंने और बाते करने लगा चाची अन्दर चली गयी अगले कुछ घंटे ऐसे ही गुजर गए खाना पीना खाकर करीब रात को दस बजे मैं और चाची ने छत पर डेरा जमा दिया 

मैं- चाची, कल चलोगे मेरे साथ 

वो- इतनी जल्दी क्या है 

मैं- मुझे जल्दी है 

- मुझे लगता है इस बारे में हम बात कर चुके है 

- क्या बात कर चुके है आपका अपना घर है कब तक सचाई से भागोगे 

वो- सच से नहीं आने वाले कल से भागती हूँ 

मैं- क्या है आने वाला कल मुझे भी बताओ 

वो- मुझे डर लगता है 

मैं- आप चाचा की बिलकुल फिकर मत करो वो आपको हाथ भी नहीं लगा पायेगा 

वो- उस से नहीं , खुद से डर लगता है 

मैं- मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है 

वो- तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था 

मैं- तो आप भी मुझे अपना नहीं समझती , 

वो- अपना मानती हूँ तभी तो कह रही हूँ 

मैं- तो फिर चलो ना घर , 

वो- मुझे सच में बहुत अजीब लगता है देखो मेरा अभी अभी इक रिश्ता टूटा है , उम्मीद टूटी है और तुम भी हो जिसे देख कर ऐसा लगता है की पता नहीं कब से जुडी हुई हूँ तुमसे 

मैं- अपनी दोस्ती है ही ऐसी 

वो- तुम भी जानते हो वो दोस्ती नहीं है , वो प्यास है नजरो की प्यास है रिश्तो की ये भूख है जिस्मो की और मुझमे इतनी हिम्मत नहीं है की मैं अपने इस रिश्ते को कलंकित करू उनकी तरह , मेरे कोई औलाद नहीं हुई जब से उस घर में ब्याहता बनके गयी , सगे बेटे से भी ज्यादा तुमको चाहा मैंने, पता नहीं चला की कब तुम इतने बड़े हो गए और पिछले कुछ दिनों में तो मैं तुम्हारे इतना करीब आ गयी हूँ जितना तुम्हारे चाचा से कभी ना आ सकी 

बेटे , पर मुझे लगता है की कही मैं बहक ना जाऊ , पल पल मैं तुम्हे ................ 

वो खामोश हो गयी 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:39 PM

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