Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:32 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
वो मेरे एकदम सामने, नज़दीक आकर खड़ी हो गयी, उसके निपल मेरे सीने को छुना ही चाहते थे, लेकिन अभी तक छु नही पाए थे, 

मेरी आँखों में देख कर वो बोली- आप ही करदो ना मेरा रेप…!

मे - मेरी इतनी भी हिम्मत नही है, कि किसी का रेप कर सकूँ…!

वो मुझे पकड़ना ही चाहती थी कि मैने उसे रोक दिया और बोला- ये सब खुले आम नही, थोड़ा परदा ज़रूरी है.

शाकीना तो अपने मज़े में मस्त बारिश का मज़ा लूट रही थी, मेरे ऐसा कहते ही 

आइशा ने मेरा हाथ पकड़ा और पेड़ के पीछे ले गयी और मुझे दोनो हाथों से पकड़ कर मेरे होठ चूम लिए.

मैने उसके चुतड़ों को पकड़ कर मसल दिया और अपनी ओर खींच कर उसकी चूत को अपने लंड से सटा लिया… आअहह… उसके बारिश से भीगने के कारण निपल कड़क हो गये थे जो अब मेरे सीने में चुभने लगे.

हम दोनो चुंबन में खो गये… उसकी आखें लाल होने लगी, अभी हम और आगे बढ़ते की एक चीख ने हमारा ध्यान भंग कर दिया.

जब मैने चीख की दिशा में देखा और तुरंत आईशा को पकड़ कर आड़ में हो गया. 

सबसे आगे अकरम, परवेज़ और जाहिरा थी, उसके बाद रहमत और रेहाना. 

मैने देखा कि पहले वाले पेड़ के बराबर में एक बड़ी वाली फ़ौजी जीप खड़ी थी, और 9-10 फ़ौजी जवानों ने उन पाँचों को राइफलों की नोक पर कवर कर रखा था, 

शाकीना हाथ उपर किए उनकी ओर धीरे-2 बढ़ रही थी.

फ़ौजियों को शायद हम दोनो का पता नही चल पाया था, मैने तुरंत एक स्कीम बना ली,

आईशा को लिए हुए मैने रोड की दूसरी तरफ छलान्ग लगा दी और झाड़ियों में लुढ़कता चला गया. 

तेज बेरिश की वजह से दूर तक साफ-साफ देख पाना थोड़ा मुश्किल था, इस वजह से वो हमें नही देख सके…

आइशा मेरे शरीर से चिपकी हुई थी. मैने फ़ौरन अपनी गन निकल ली और उसको भी बोला तो उसने भी अपनी गन निकाल कर हाथों में ले ली, अब हम दोनो झाड़ियों की आड़ लिए उनके करीब जाने लगे. 

अभी शाकीना उनके पास तक नही पहुँची थी, उसकी चाल देख कर एक फ़ौजी गुर्राया- ये साली क्या कछुये की चाल चलती है, जल्दी से आ, 

दो फ़ौजी ऑलरेडी जाहिरा और रेहाना के शरीरों के साथ खेल रहे थे.

तीनों मर्द अपने हाथों को सर के उपर रखे खड़े थे, 4-5 फ़ौजी अपनी राइफले ताने उनके सरों पर खड़े थे. 

जैसे ही शाकीना भी उनके पास पहुँची, एक फ़ौजी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ कर खींचा और वो उसके सीने से जा लगी.

मुझे ये विश्वास नही था कि शाकीना इतनी हिम्मत दिखा सकती है, 

जैसे ही वो उस फ़ौजी के सीने से लगी, उसका घुटना तेज़ी से चला और उस फ़ौजी के गुप्ताँग को जोरदार हिट किया, 

वो डकार मारता हुआ अपने दोनो हाथ अपने आंडों पर रख कर घुटने जोड़े हुए नीचे की ओर झुकता चला गया, उसकी राइफल हाथ से छूट गयी जो बिजली की तेज़ी से शाकीना के हाथों में आ गई.

पलक झपकते ही उनमें से एक फ़ौजी की राइफल शाकीना की ओर मूड गयी, इससे पहले कि वो गोली चलाता, 

शाकीना ने उन तीन में से एक को निशाना बना लिया, जो जाहिरा और रेहाना को छेड़ रहे थे.

निशाने पर लेते हुए वो गुर्राइ – खबरदार अगर गोली चलाई, तो तुम्हारा ये साथी भी नही बचेगा…

फ़ौजियों को एक आम लड़की से ऐसी हिमाकत करने की आशा नही थी, वो कुछ देर तो सकते की हालत में आ गये, 

लेकिन फिर वो फ़ौजी जिसे शाकीना ने निशाना बनाया था, उसकी तरफ पलटा, और उसकी राइफ़ल पर झपटा…, शायद उसको लगा कि ये नाज़ुक सी लड़की क्या राइफल चलाएगी…

लेकिन उसके पलटते ही शाकीना ने ट्रिगर दबा दिया, और राइफ़ल की गोली सीधी उसका भेजा फाड़ती हुई निकल गयी…

वो अपनी आँखों में जमाने भर की हैरत लिए दुनिया से रुखसत हो गया..

उसके गिरते ही, राइफ़ल धारिरयों की राइफ़ल शाकीना की तरफ घूम गयी, लेकिन इससे पहले कि वो उसे शूट करते, झाड़ियों से एक साथ 5 फाइयर हुए और वो पाँचों राइफलधारी ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे. 

अब बचे चार फ़ौजियों में से जो शाकीना की चोट से नीचे बैठा था उसको उसने कवर कर लिया और तीन को हमारे तीनों साथियों ने लपक लिया.

मे और आइशा झाड़ियों से निकल कर बाहर आ गये, हमें देखते ही उनकी बची-खुचि साँसें भी अटक गयी. 

फिर हमने उन्हे लात घूँसों से धुनना शुरू किया, पीटते-2 वो चारो बेहोश हो गये.

मैने अपना खंजर निकाला और एक फ़ौजी के माथे पर लिख दिया “आज़ाद कश्मीर ज़िंदवाद” 

मेरी इस कार गुज़ारी को देख कर उन सभी के शरीर में झूर झूरी सी दौड़ गयी…, उस फ़ौजी का चेहरा खून से सुर्ख हो गया था…

आईशा और जाहिरा ने तो अपनी आँखें ही बंद कर ली…

मेरी आखों में छाए हुए हिंसक भावों को देख कर वो लोग काँप उठे…

मैने उस फ़ौजी को पेड़ से उल्टा लटका दिया, और वाकियों को भी मौत देकर हम वहाँ से तेज बारिश में ही आगे बढ़ने लगे….!

सभी के चेहरों पर मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था… मैने उन सभी की मनोदशा भाँप कर कहा…

तुम लोग ऐसे गुम-सूम क्यों हो गये मेरे शेरो…, ये लोग इसी के हक़दार थे… अब अगर यल्गार शुरू कर ही दी है, तो शुरुआत धमाकेदार ही होनी चाहिए…

शाकीना थोड़ी हिम्मत जुटाकर मेरे पास आई, और बोली – आपका ये खौफनाक रूप देखकर हमें डर लगने लगा था…

मे – दोस्तों को मुझसे डरने की ज़रूरत नही है..? और वैसे भी सबसे ज़्यादा डर तो तुमसे लगना चाहिए…

इतनी विपरीत परिस्थिति में भी तुमने वो कर दिया, जो कोई आम इंसान सोच भी नही सकता था…!

मेरी बात सुनकर रेहाना ने उसे अपने गले से लगा लिया, वाकीओं ने भी उसके हौंसले को सलाम किया…

मैने आगे कहा - ये सब करना ज़रूरी था, अब दुश्मन के दिल में हमारे प्रति भय पैदा हो जाएगा, और वो कोई भी मन-मानी करने से पहले हज़ार बार सोचेंगे…

रहमत अली ने मेरी बात से सहमत होते हुए कहा – आपकी बात एकदम जायज़ है भाई जान… दुश्मन पर रहम दिखाना अपनी कमज़ोरी जाहिर करना है…

अब वाकी सब नॉर्मल नज़र आने लगे थे, सो ह्मने आगे का सफ़र शुरू कर दिया…वो मेरे एकदम सामने, नज़दीक आकर खड़ी हो गयी, उसके निपल मेरे सीने को छुना ही चाहते थे, लेकिन अभी तक छु नही पाए थे, 


मेरी आँखों में देख कर वो बोली- आप ही करदो ना मेरा रेप…!

मे - मेरी इतनी भी हिम्मत नही है, कि किसी का रेप कर सकूँ…!

वो मुझे पकड़ना ही चाहती थी कि मैने उसे रोक दिया और बोला- ये सब खुले आम नही, थोड़ा परदा ज़रूरी है.

शाकीना तो अपने मज़े में मस्त बारिश का मज़ा लूट रही थी, मेरे ऐसा कहते ही 

आइशा ने मेरा हाथ पकड़ा और पेड़ के पीछे ले गयी और मुझे दोनो हाथों से पकड़ कर मेरे होठ चूम लिए.

मैने उसके चुतड़ों को पकड़ कर मसल दिया और अपनी ओर खींच कर उसकी चूत को अपने लंड से सटा लिया… आअहह… उसके बारिश से भीगने के कारण निपल कड़क हो गये थे जो अब मेरे सीने में चुभने लगे.

हम दोनो चुंबन में खो गये… उसकी आखें लाल होने लगी, अभी हम और आगे बढ़ते की एक चीख ने हमारा ध्यान भंग कर दिया.

जब मैने चीख की दिशा में देखा और तुरंत आईशा को पकड़ कर आड़ में हो गया. 

सबसे आगे अकरम, परवेज़ और जाहिरा थी, उसके बाद रहमत और रेहाना. 

मैने देखा कि पहले वाले पेड़ के बराबर में एक बड़ी वाली फ़ौजी जीप खड़ी थी, और 9-10 फ़ौजी जवानों ने उन पाँचों को राइफलों की नोक पर कवर कर रखा था, 

शाकीना हाथ उपर किए उनकी ओर धीरे-2 बढ़ रही थी.

फ़ौजियों को शायद हम दोनो का पता नही चल पाया था, मैने तुरंत एक स्कीम बना ली,

आईशा को लिए हुए मैने रोड की दूसरी तरफ छलान्ग लगा दी और झाड़ियों में लुढ़कता चला गया. 

तेज बेरिश की वजह से दूर तक साफ-साफ देख पाना थोड़ा मुश्किल था, इस वजह से वो हमें नही देख सके…

आइशा मेरे शरीर से चिपकी हुई थी. मैने फ़ौरन अपनी गन निकल ली और उसको भी बोला तो उसने भी अपनी गन निकाल कर हाथों में ले ली, अब हम दोनो झाड़ियों की आड़ लिए उनके करीब जाने लगे. 

अभी शाकीना उनके पास तक नही पहुँची थी, उसकी चाल देख कर एक फ़ौजी गुर्राया- ये साली क्या कछुये की चाल चलती है, जल्दी से आ, 

दो फ़ौजी ऑलरेडी जाहिरा और रेहाना के शरीरों के साथ खेल रहे थे.

तीनों मर्द अपने हाथों को सर के उपर रखे खड़े थे, 4-5 फ़ौजी अपनी राइफले ताने उनके सरों पर खड़े थे. 

जैसे ही शाकीना भी उनके पास पहुँची, एक फ़ौजी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ कर खींचा और वो उसके सीने से जा लगी.

मुझे ये विश्वास नही था कि शाकीना इतनी हिम्मत दिखा सकती है, 

जैसे ही वो उस फ़ौजी के सीने से लगी, उसका घुटना तेज़ी से चला और उस फ़ौजी के गुप्ताँग को जोरदार हिट किया, 

वो डकार मारता हुआ अपने दोनो हाथ अपने आंडों पर रख कर घुटने जोड़े हुए नीचे की ओर झुकता चला गया, उसकी राइफल हाथ से छूट गयी जो बिजली की तेज़ी से शाकीना के हाथों में आ गई.

पलक झपकते ही उनमें से एक फ़ौजी की राइफल शाकीना की ओर मूड गयी, इससे पहले कि वो गोली चलाता, 

शाकीना ने उन तीन में से एक को निशाना बना लिया, जो जाहिरा और रेहाना को छेड़ रहे थे.

निशाने पर लेते हुए वो गुर्राइ – खबरदार अगर गोली चलाई, तो तुम्हारा ये साथी भी नही बचेगा…

फ़ौजियों को एक आम लड़की से ऐसी हिमाकत करने की आशा नही थी, वो कुछ देर तो सकते की हालत में आ गये, 

लेकिन फिर वो फ़ौजी जिसे शाकीना ने निशाना बनाया था, उसकी तरफ पलटा, और उसकी राइफ़ल पर झपटा…, शायद उसको लगा कि ये नाज़ुक सी लड़की क्या राइफल चलाएगी…

लेकिन उसके पलटते ही शाकीना ने ट्रिगर दबा दिया, और राइफ़ल की गोली सीधी उसका भेजा फाड़ती हुई निकल गयी…

वो अपनी आँखों में जमाने भर की हैरत लिए दुनिया से रुखसत हो गया..

उसके गिरते ही, राइफ़ल धारिरयों की राइफ़ल शाकीना की तरफ घूम गयी, लेकिन इससे पहले कि वो उसे शूट करते, झाड़ियों से एक साथ 5 फाइयर हुए और वो पाँचों राइफलधारी ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे. 

अब बचे चार फ़ौजियों में से जो शाकीना की चोट से नीचे बैठा था उसको उसने कवर कर लिया और तीन को हमारे तीनों साथियों ने लपक लिया.

मे और आइशा झाड़ियों से निकल कर बाहर आ गये, हमें देखते ही उनकी बची-खुचि साँसें भी अटक गयी. 

फिर हमने उन्हे लात घूँसों से धुनना शुरू किया, पीटते-2 वो चारो बेहोश हो गये.

मैने अपना खंजर निकाला और एक फ़ौजी के माथे पर लिख दिया “आज़ाद कश्मीर ज़िंदवाद” 

मेरी इस कार गुज़ारी को देख कर उन सभी के शरीर में झूर झूरी सी दौड़ गयी…, उस फ़ौजी का चेहरा खून से सुर्ख हो गया था…

आईशा और जाहिरा ने तो अपनी आँखें ही बंद कर ली…

मेरी आखों में छाए हुए हिंसक भावों को देख कर वो लोग काँप उठे…

मैने उस फ़ौजी को पेड़ से उल्टा लटका दिया, और वाकियों को भी मौत देकर हम वहाँ से तेज बारिश में ही आगे बढ़ने लगे….!

सभी के चेहरों पर मौत का सन्नाटा पसरा हुआ था… मैने उन सभी की मनोदशा भाँप कर कहा…

तुम लोग ऐसे गुम-सूम क्यों हो गये मेरे शेरो…, ये लोग इसी के हक़दार थे… अब अगर यल्गार शुरू कर ही दी है, तो शुरुआत धमाकेदार ही होनी चाहिए…

शाकीना थोड़ी हिम्मत जुटाकर मेरे पास आई, और बोली – आपका ये खौफनाक रूप देखकर हमें डर लगने लगा था…

मे – दोस्तों को मुझसे डरने की ज़रूरत नही है..? और वैसे भी सबसे ज़्यादा डर तो तुमसे लगना चाहिए…

इतनी विपरीत परिस्थिति में भी तुमने वो कर दिया, जो कोई आम इंसान सोच भी नही सकता था…!

मेरी बात सुनकर रेहाना ने उसे अपने गले से लगा लिया, वाकीओं ने भी उसके हौंसले को सलाम किया…

मैने आगे कहा - ये सब करना ज़रूरी था, अब दुश्मन के दिल में हमारे प्रति भय पैदा हो जाएगा, और वो कोई भी मन-मानी करने से पहले हज़ार बार सोचेंगे…

रहमत अली ने मेरी बात से सहमत होते हुए कहा – आपकी बात एकदम जायज़ है भाई जान… दुश्मन पर रहम दिखाना अपनी कमज़ोरी जाहिर करना है…

अब वाकी सब नॉर्मल नज़र आने लगे थे, सो ह्मने आगे का सफ़र शुरू कर दिया…
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