Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:06 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
फूलवतिया एक गहरे काले रंग की थी, उसकी शादी 8-10 महीने पहले ही हुई थी, काले रंग के अलावा उसका वाकी का सामान बड़ा ही मस्त था, 

बड़े-2 पहाड़ जैसे उसके एकदम आगे को सिर उठाए चुचे, बड़ी-2 टीले जैसी मोटी गान्ड, कमर एकदम पतली. 

चेहरा भी अच्छा था, कुल मिलकर, रंग काला होने के बावजूद भी चोदने लायक मस्त माल थी.

जब वो बहुत देर तक मेरे खड़े अकदे लंड की ओर देखती ही रही तो मैने उससे पुछा- ऐसे क्या देख रही है..? कुछ चाहिए क्या..?

वो- चाहिए तो बहुत कुछ, पर तुम दोगे नही पंडित जी..!

मे- क्या चाहिए..? बोल ना..! देने लायक हुआ तो ज़रूर मिलेगा..!

वो मेरे पास आई और हाथ बढ़ाकर मेरे लंड को पाजामा के उपर से पकड़ लिया.. ये दोगे..?

मे- अबबे साली छोड़ ! चौड़े में ही लेगी..? कोई देख लेगा.., लेना है तो चल कमरे में.

मंत्रमुग्ध सी वो मेरे पीछे-2 कमरे में आ गई.

कमरे में घुसते ही उसने मेरा पाजामा खींच दिया और मेरे अकडे लंड को हाथ में लेकर मसल्ने लगी.

मे - भेन्चोद साली तू तो बड़ी गरम हो रही है, एक मिनट का भी सबर नही है तुझे ?

वो- अरे अरुण बाबू..! ऐसा हथियार सामने देख कर तो किसी का भी मन डोल जाएगा. 

और फिर मेरी शादी करके मेरा पति मदर्चोद जाने कहाँ मर गया, भडुए ने मूड कर भी नही देखा. 

दिन रात ये निगोडी मेरी चूत खुजाति रहती है.

मे - चल मे आज तेरी इस चूत की ऐसी खुजली मिटाउंगा की तू भी याद रखेगी, ले चल अब इसकी थोड़ी सेवा कर, तभी ये मेवा खिलाएगा तेरी चूत को, 

और मैने अपने मूसल को उसके होठों पे रख दिया, उसने फ़ौरन उसे अपने मुँह में ले लिया और मस्त चुसाइ करने लगी. 

इतने में मैने उसके बड़े-2 चुचे ब्लाउस खोल कर बाहर निकाल लिए और मसल्ने लगा.

वो उउन्नग्ग-2 जैसी आवाज़ें निकालती हुई अपनी ही धुन में लगी थी, वो तो ऐसी टूट के पड़ी की, जैसे इसके बाद कभी कोई लंड मिलेगा ही नही चूसने को.. हां शायद ऐसा गोरा लंड ना मिले उसे..!

जब उसका मुँह दुखने लगा तो वो फ़ौरन अपना लहंगा उपर उठा कर घोड़ी बनके खड़ी हो गयी चारपाई की पाटी पकड़ के, और बोली- 

अब बस पेल दो जल्दी से, पर धीरे-2 आराम से डालना, बहुत दिन से गया नही है इसमें.

मैने उसके मोटे-मोटे चुतड़ों पर थपकी दी गोल-गोल सहलाया और थूक हाथ पे लेके लौडे को गीला किया, रखा उसकी भैंस जैसी चूत के मुँह पर और पेल दिया एक तगड़े से धक्के के साथ.

अरेयययी…माररर ग्ाआईयईई…अमम्माआ…मेरी छूट फाड़ डीईइ… रीए…पा.न्ंदडीत्तटजजििीइ….नईए…

मैने उसकी नंगी पीठ पर एक थपकी दी.. भेन्चोद साली क्यों नाटक करती है.. ऐसी क्या कोरी चूत है तेरी जो इतना चिल्ला रही है..

वो- नही ! सच में फाड़ दी तुमने हइई… बड़ा मोटा है तुम्हारा सोटा… हाईए राम… धीरे से डालना था ना..

मे- अच्छा चल अब ध्यान रखूँगा.. और मैने धीरे-2 करके पूरा 8” का मोटा सोटा उसकी चूत में डाल दिया..!

अब लंड भी बेचारा क्या करे.. 2 घंटे से अकडा पड़ा है, ढाई साल से उसकी कोई सुध नही ली थी सो आ गया अपनी औकात में और कुछ ज़्यादा ही तगड़ा सा लग रहा था आज.

अब मैने धीरे-2 अंदर बाहर करना शुरू कर दिया, पूरा सुपाडे तक निकालु और फिर जड़ तक पेल दूं. फूलवतिया भी पूरी हिल जाए, उसके दोनो पपीते ऐसे हिल रहे थे जैसे झूला झूल रहे हों.

मज़े से मेरी आँखें बंद हो चुकी थी, मुझे अब कुछ भी दिखाई नही दे रहा था बस दिमाग़ में एक ही धुन, जल्दी से माल रिलीस हो कैसे भी.

लेकिन वो तो साला जाने कहाँ सोया पड़ा था, अभी तक तो कोई आसार ही नज़र नही आए, 

फूलवतिया की कमर जबाब दे गयी, उसकी चूत बाल्टी भर-भरके पानी फेंक रही थी.

आख़िर वो थक कर खड़ी हो गयी, लेकिन मेरे धक्के बंद नही हुए.. 

पंडितजी साँस तो लेने दो, मेरी कमर दुखने लगी है,

मे- चल बिस्तर पर लेट जल्दी- और मैने उसे धक्का ही दे दिया, अब में उसकी टाँगे अपने कंधों पर रख कर उसकी धपा-धप चुदाई करने लगा. 

मेरे मुँह से हूँ..हूँ, जैसी आवाज़ें निकल रही थी मानो कोई कुल्हाड़ी लेकर किसी पेड़ के तने को काट रहा हो.

फूलवतिया को चोदते-2 एक घंटा हो गया था, उसका कुआँ बिल्कुल खाली हो चुका था, 

लेकिन मेरा अभी तक कोई अता-पता नही था, मुझे अब चिंता होने लगी कि साला निकलेगा भी या नही. 

मुशिबत ये थी कि जब तक वीर्य नही निकलेगा ये साला लॉडा बैठेगा ही नही, अगर नही बैठा तो..

मे ये सोच ही रहा था कि फूलवतिया हाए..हाए..करने लगी और मुझे छोड़ने के लिए मिन्नतें करने लगी, उसकी चूत बिल्कुल सूख चुकी थी, 

सूखी चूत में मेरे मूसल के घर्षण से उसकी चूत में दर्द होने लगा, उसकी चूत छिल्ने लगी.

अब छोड़ दो पंडितजी… मे तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, कभी भूलके भी तुमसे चुदने के लिए नही कहूँगी… भगवान के लिए अब छोड़ दो मेरी चूत में दर्द हो रहा है, हाई री अम्मा कहाँ फँस गयी आज…
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