Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:05 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
हम लोगों की आवाज़ सुनकर उपर से वो चारों भी नीचे आ गयी ये अच्छा किया कि उन्होने अपने फटे हुए कपड़े चेंज कर लिए थे अब तक.

भाभी बोली उपर डर लग रहा है, चारों ओर लाशें ही लाशें बिछि पड़ी हैं. मुझे देखते ही उन्होने मुझे अपने गले से लगा लिया इस बात की बिना परवाह किए कि मेरे कपड़े खून से सने हुए थे. 

तुमने हम सब को बचा लिया अरुण… लेकिन फिर कांपति हुई विशमय के साथ बोली- ये सब तुमने अकेले ही किया है..?

हां भाभी ये सब मैने अकेले ही किया है, और कोई था भी तो नही मेरे साथ जिससे मदद माँग सकता..? 

फिर मैने सबको क्या-2 कैसे-2 हुआ सब बताया तो सबकी आँखें फटी रह गयी और सबने मुझे एक साथ भींच लिया.

अरे अब तुम लोग मिलकर मार डालोगे क्या..? मेरा दम घुट रहा है तो सबने झेन्पते हुए मुझे छोड़ा, और सबके चेहरे पर मुस्कान आ गयी.

उधर गाँव का चौकीदार डकैती की खबर सुनते ही थाने की ओर दौड़ा था.. 

गाँव में उस वक़्त टेलिफोन की सुविधा नही थी, और जो चौकीदार था उसके बेचारे के पास साइकल वग़ैरह भी नही थी, सो पैदल ही 3 किमी तक भागता गया तब जाके थाने में इत्तला दी. 

उसके बावजूद भी पोलीस 3 घंटे के बाद पहुँची गाँव में. 

लोगों ने आते ही इनस्पेक्टर को लपक लिया, तो वो खीँसें निपोर कर अपनी राम कहानी सुनाने लगा. 

जब उसने अंदर के हालत देखे तो उनकी आँखें फटी रह गयी, अब वो उल्टे सीधे सवाल करने लगा कि ये कत्ल किसने किए हैं, कैसे किए हैं वग़ैरह-2.

मे- ओये इनस्पेक्टर ! अकल घास चरने गयी है क्या तेरी...? ये तुझे कत्ल दिखाई दे रहे हैं..? 

इंस्पेक्टर- ये लड़का कॉन है..? 

प्रेम भाई- ये मेरा भाई है.. क्यों..?

इंस्पेक्टर- इसको सिखाया नही तुमने, पोलीस से ऐसे बात करते हैं.. ? एक डंडा डालूँगा इसकी गान्ड में सारी अकड़ निकल जाएगी..!

लपक के उसका गला पकड़ के दबाते हुए मैने कहा- साले मेरी गान्ड में डंडा डालेगा..तू हैं. 

अभी में तुझे भी मारकर इन बदमाशों में शामिल कर दूं तो बोल क्या कर लेगा. 

उसकी रूह फ़ना हो गयी, इतने में प्रेम भाई ने उसे छुड़वा दिया और बोले- इनस्पेक्टर हमारे यहाँ 20 बदमाश चढ़ गये, 

आप 3 घंटे में अब आ रहे हो ? वो भी 4 सिपाहियों को लेकर..! हम सब गाँव वाले एक होकर इनको नही मारते तो ये लोग हमें मार डालते. 

ये नही सोचा आपने और उल्टा हमारे उपर ही धोंस जमा रहे हो.

ये देखो हमारी औरतों को मार-2 कर क्या हालत कर दी है. इलज़ाम लगाने से पहले ये तो सोचा होता कि इतनी रात गये इतने सारे लोगों को हम पकड़-2 के लाए मारने के लिए इनके घरों से, जिनमें ये भी नही पता कि ये कहाँ-2 से आए हैं.

इनस्पेक्टर की सिट्टी-पिटी गुम हो चुकी थी, ढीला पड़ते हुए वो बोला- आइ आम सॉरी मास्टर साब, मेरा कहने का ये मतलब ये नही था.. 

मे तो बस जानना चाहता था कि ये सब कैसे किया आप लोगों ने ?

फिर उन्होने सब लाशों को वहाँ से उठवा कर थाने पहुँचवाया, हमारी औरतों की मेडिकल जाँच के लिए सिटी हॉस्पिटल ले जाया गया क़ानूनी कार्यवाही की गयी. 

इन्ही सब कामों में सुबह हो गयी.

सुबह के उजाले में घर के पीछे से भी दो बदमाश घायल अवस्था में पड़े मिले, उन्हें मेडिकल ट्रीटमेंट देके हिरासत में ले लिया गया.

बहुत सारे मरे हुए बदमाशों की पहचान हो गयी थी, एक दो तो भूरे के रिस्तेदार ही थे, 

दो सामने वाले के साले निकले. पूरी साजिश खुल चुकी थी. जिन लोगों का हाथ था वो भी अरेस्ट कर लिए गये.

एक बार और मेरे जीवन का यथार्थ सिद्ध हो गया..और मैने एक लंबी साँस लेकर मन ही मन कहा कि चलो – “मेरा जीवन कुछ काम तो आया”

इस हादसे के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल गयी, जब भी मे ध्यान लगाने की कोशिश करता, मुझे वो नरसंहार नज़र आने लगता और अपने ध्यान से बिचलित होने लगता, 

एक बैचैनि सी होने लगती, मेरी आँखों में हिंसक भाव उठने लगते. 
मेरी समझ में नही आ रहा था कि ये सब क्यों हो रहा है और इससे कैसे मुक्ति मिले.

ऐसा भी नही था कि मैने इससे पहले किसी को मौत की सज़ा नही दी थी, कुछ महीने पहले ही उन आतकवादियों को उनके अंजाम तक पहुचाया था लेकिन ऐसा पहले नही हुआ था.

कुछ दिन इसी उधेड़ बुन में निकल गये, मे थोड़ा उदास सा भी रहने लगा, ना किसी से ज़्यादा बोलना और ना किसी से सीधे -2 जबाब देना, 

घर वाले भी मेरे व्यवहार से परेशान रहने लगे. और एक नयी मुशिबत ये हुई कि लोग मुझसे बात करने में कतराने लगे थे.

कोई-कोई तो यहाँ तक बोल देता, कि ये कोई नॉर्मल इंशन नही है…ज़रूर इसके उपर कोई भूत-प्रेतों का साया है… 

एक दिन मे अपने खेत में जो कि थोड़ी सी ज़मीन थी जहाँ, दूसरे के ट्यूब वेल से पानी दे रहा था गेहूँ खड़े थे उसमें बाली आना शुरू हो रही थी फसल में.

तभी वहाँ मेरे ही मोहल्ले की लड़की जिसका नाम भूरी था बथुआ का साग तोड़ने आई, उसके साथ उसी के घर की दो लड़कियाँ और थी.

मे खेत की मेड (बाउंड्री) पर बैठा था तो वो भी मेरे साथ आकर बैठ गयी और मुझसे बात करने लगी, 

मे भी उससे नॉर्मली बात करने लगा. 

वो मुझसे छोटी थी लगभग 18 के आस-पास की उम्र होगी उसकी, अब गाँव नाते से मुझे भैया बोलती थी. 

जिसकी झलक शुरू के अपडेट मे पढ़ी होगी आपने.
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 02:05 AM

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