RE: Mastram Kahani खिलोना
जब तक रीमा कुच्छ करती,शेखर ने बिजली की फुर्ती से अपने हाथ से उस टुकड़े को वाहा से निकाल लिया & ऐसा करने मे उसके सीने की दरार मे 1 उंगली घुसा 1 चूची को हल्के से दबा दिया.रीमा ने घबरा कर देखा कि कही किसी ने उसे ऐसा करते देखा तो नही,उसे शेखर की इस हरकत पे बहुत गुस्सा आया पर साथ ही साथ दिल मे थोड़ी गुदगुदी भी हुई.
तभी क्लर्क ने उसका नाम पुकारा तो दोनो उठ कर काउंटर पे चले गये.रीमा अपने अकाउंट के पेपर्स,पासबुक & कार्ड वग़ैरह लेने लगी & शेखर पिच्छली बार की तरह उस से पीछे से उसकी गंद से अपना लंड सटा कर खड़ा हो गया.
कोई दस-एक मिनिट बाद दोनो बॅंक से बाहर निकल कार की ओर जाने लगे,तभी रीमा को ऐसा लगा जैसे कोई उसे घूर रहा है,उसने बाए घूम देखा तो सड़क के उस पार 1 काले चश्मे लगाए,गर्दन तक लंबे बालो वाले गेंहुए रंग के आदमी को मुँह फेरता पाया.रीमा 1 बहुत खूबसूरत लड़की थी & उसे आदत थी मर्दो की घुरती निगाहो की,पर यहा बात कुच्छ और थी,उस इंसान का मुँह फेरना ऐसा नही था जैसा 1 इंसान तब करता है जब कोई खूबसूरत लड़की खुद को घूरते हुए उसे पकड़ लेती है.उसका मुँह फेरना ऐसा था जैसे वो नही चाहता था कि रीमा की नज़र उसपे पड़े,"क्या देख रही हो,रीमा?बैठो.",शेखर कार का दरवाज़ा पकड़े खड़ा था.
"जी.चलिए.",रीमा कार मे बैठ गयी.
उस दिन उसके दिमाग़ मे उसी अजनबी का चेहरा घूमता रहा.वो तो यहा किसी को जानती भी नही,ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई शेखर का पहचँवला हो...वो तो यही पाला-बढ़ा था...या फिर कोई और बात थी..."रीमा!"
"जी..",रीमा अपने ख़यालो से बाहर आई.
"ज़रा मेरे साथ बाज़ार चलो,दर्शन के परिवार वालो के लिए कुच्छ तोहफे ले आते हैं."
"अच्छा.चलिए."
शाम के & बज रहे थे & बाज़ार खचाखच भरा था.सारी खरीदारी कर हाथो मे पॅकेट्स पकड़े दोनो कार पार्किंग की तरफ जाने लगे कि तभी कोई धार्मिक जुलूस वाहा से निकलने लगा.लोगो का हुजूम उसे देखने को आगे बढ़ा तो रीमा अपने को संभाल नही पाई & गिरने लगी की तभी विरेन्द्र जी ने उसे कमर से थाम लिया & उसे ले उस भीड़ से बाहर निकालें.रीमा अपने ससुर से ऐसे चिपकी थी कि उसकी चूचिया उनके सीने मे दबी हुई थी & वो उसकी कमर को थामे हुए थे.
भीड़ का 1 रेला आया तो रीमा फिर लड़खड़ा गयी,मुझे थाम लो,रीमा वरना गिर जाओगी."उसके ससुर ने उसे अपने बगल मे दबाते हुए उसका हाथ अपने पेट पे से होते हुए अपनी कमर पे पकड़ा दिया.अब दोनो जैसे गले से लगे हुए वाहा से निकालने लगे.जब वो भीड़ से बाहर निकल 1 खाली जगह पे खड़े हो साँस लेने लगे तो रीमा ने देखा कि उसकी चूचया उसके ससुर के सीने से ऐसे दबी है कि लग रहा है कि कमीज़ के गले से बाहर ही आ जाएँगी.उनका हाथ उसकी कमर से उसकी गंद पे आ गया था & 1 फाँक को पकड़े हुए था & वो खुद उनकी कमर पे हाथ लपेटे उनसे चिपकी खड़ी थी.
वो धीरे से उनसे अलग हुई & दोनो कार पार्क की ओर चल दिए पर विरेन्द्र जी ने उसे पूरी तरह से अलग नही होने दिया-उनका हाथ उसकी कमर को अभी भी घेरे हुए था.
रात खाना खाने के बाद विरेन्द्र जी फ़ौरन अपने कमरे मे चले गये,रीमा समझ गयी कि उसके ससुर को उसकी मालिश का इंतेज़ार है.वो थोड़ी देर बाद अपनी सास को सुलाने के बहाने वाहा पहुँची तो देखा कि दर्शन वाहा पहले से मौजूद है.
"चलिए,मालिक लेट जाइए.आपके पैर दबा दे."
"अरे नही,दर्शन.हमे दर्द नही हो रहा."
"नही,मालिक.आज बेकार मे हमारे चलते आप बेज़ार गये.इतना चलना पड़ा,ज़रूर दर्द हो रहा होगा.चलिए लेट जाइए.",दर्शन ने उन्हे पलंग पे बिठा दिया.हार कर विरेन्द्र जी को लेटना पड़ा.दर्शन उनके पैर दबाने लगा तो उन्होने अपनी सास को सुलाती रीमा की तरफ देखा,उनके चेहरे का भाव देख रीमा को हँसी आ गयी.अपनी हँसी च्छूपाते हुए वो वाहा से निकल अपने कमरे मे आ गयी.कहा उसके ससुर उसके कोमल बदन के ख़यालो मे डूबे थे & कहा अब दर्शन के खुरदुरे हाथ ज़ोर-2 से उनके पैर दबा रहे होंगे.
हंसते हुए रीमा कपड़े बदलने लगी.सलवार कमीज़ उतार उसने 1 टख़नो तक लंबी,ढीली स्कर्ट & 1 टी-शर्ट पहन ली.थोड़ी गर्मी महसूस हुई तो वो छत पे टहलने चली गयी.
छत पे पहले से ही मौजूद शेखर की आँखे उसे देखते ही चमक उठी.दोनो हल्की-फुल्की बाते करने लगे कि तभी शेखर ने बातो का रुख़ मोड़ दिया,"अजीब बात है ना,रीमा.हम 2 अलग इंसान हैं,फिर भी दोनो की तक़्दीरे 1 जैसी हैं."
रीमा ने सवालिया नज़रो से उसकी ओर देखा.
"तुम भी अकेली हो मैं भी .रवि की मौत ने तुम्हे ये गम दिया तो मेरी बीवी ने तलाक़ देकर मुझे ये चोट पहुँचाई."
"तक़दीर के आगे इंसान कर ही क्या सकता है.",रीमा बोली.
"हां."
"अच्छा चलती हू.गुड नाइट."
"मैं भी चलता हू.कल मुझे 2-3 दीनो के लिए देल्ही जाना है."
दोनो साथ-2 सीढ़िया उतर नीचे आ गया.दर्शन अपने कमरे मे जा चुका था & उसके सास-ससुर भी सो गये लगते थे.
रीमा अपने कमरे की ओर बढ़ने लगी कि शेखर ने उसे आवाज़ दी,"रीमा.तुमने उस दिन उस फोड़े पे मलम लगाया था ना.ज़रा उसे देख लो.अब दवा की ज़रूरत है या नही.",रीमा इस बात को मना नही कर पाई & उसके पीछे उसके कमरे मे आ गयी.शेखर ने दरवाज़ा भिड़ा दिया & अपनी शर्ट उतार उसके सामने खड़ा हो गया.रीमा ने देखा की फोड़े की जगह अब बस छ्होटा सा सूखा घाव जैसा था,उसने उसे जैसे ही च्छुआ की शेखा ने अपनी बाहों मे उसे जाकड़ कर उसे अपने सीने से चिपका लिया & उसका चेहरा चूमने लगा.
"ये..ये...क्या कर रहे हैं..आप?छ्चोड़िए ना!",रीमा छट-पटाने लगी.
"ओह्ह...रीमा मैं तुम्हारे प्यार मे पागल हो चुका हू.प्लीज़ मुझे दूर मत करो.",शेखर ने उसके होंठ चूम लिए.
"ये ग़लत है,भाय्या.....मैं..मैं आपके भाई की बीवी हू."
"बीवी थी,रीमा.प्लीज़,मुझे मत तड़पाव.आइ लव यू.",इस बार शेखर ने अपने होंठ उसके होटो से चिपका दिए & उसे लिए-लिए बिस्तर पे गिर गया.अब रीमा उसके नीचे दबी छॅट्पाटा रही थी & वो उसे बेतहाशा चूम रहा था,"..भाय्या नही..ये..ये ग़लत है.."
मस्ती उस पे भी चढ़ रही थी पर अपने प्लान के मुताबिक सबकुच्छ इस तरह होना चाहिए था कि कही से भी ऐसा ना लगे कि रीमा की भी यही ख्वाहिश थी.शेखर ने उसकी शर्ट मे हाथ घुसा दिया & उसकी कमर को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूमने लगा.उसके हाथ उसके ब्रा हुक्स मे जा फँसे & सारे हुक्स पाट-2 करके खुल गये.उसने शर्ट को उपर कर उसके पेट को नंगा कर दिया & नीचे आ वाहा चूमने लगा.
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