RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"मम्मी, वह भी पक्का रसिक है डॅडी जैसा. डॅडी की तो हर मुराद पूरी हो
गयी. ये दोनों अब गये काम से मम्मी. चलो हम भी सो जाए. पर मम्मी,
ज़रा ..." शशि बोली.
"हाँ बेटी, मैं समझ गयी, इन दोनों की यह कुश्ती देखकर मेरी भी कुलबुला
रही है, नींद नही आएगी, आ जा, ऐसे आ जा ..." मा बोली. आधी नींद मे मैने
देखा कि वे एक दूसरे से लिपट कर सिक्सटी नाइन करने लगी. उसके बाद मुझे
कुछ याद नही क्योकि मेरी आँख लग गयी.
अगले दो दिन ऐसे ही आनंद मे गुज़रे. हनीमून की रात की निरंतर चुदाई से सब
थके थे इसलिए उस दिन सबने आराम किया. रात को फिर आगे काम शुरू हुआ और रात
भर चलता रहा. हमारा मन ही नही भरता था, अदल बदल कर हर
कंबिनेशन मे हमने सेक्स किया. हां, डॅडी ने उस रात के बार मेरी फिर से नही
मारी. हमने एक दूसरे के लंड ज़रूर चूसे. पहली रात डॅडी की थी, अब उसके
बाद बारी बारी से हमने मा को और फिर दीदी को सुख दिया. खूब चोदा जब तक
उनका मन नही भर गया. हर दिन मा और दीदी एक नया सेट पहनते एडाइबॉल ब्रा
और पैंटी का. लगता है शशिकला ने दर्जनों मँगवा कर रखी थी. सब का
स्वाद अलग अलग था, कोई वनीला, कोई स्ट्रॉबरी, कोई चाकलेट. और उनमे उन दोनों
अप्सराओं के बदन का स्वाद और खुशबू मिल कर वे और स्वादिष्ट हो जाती थी.
तीन दिन बाद सब इतने थक गये कि एक पूरे दिन हमने सिर्फ़ आराम किया, खूब सोए,
पास के जंगल मे घूमने गये. हनीमून के तीन चार दिन और बचे थे.
सुबह देर से उठने के बाद हमने नाहया. मा और दीदी तैयार होने लगे. दोनों
बाहर जाने के कपड़े पहन रही थी. मा ने सलवार कमीज़ पहनी थी और
शशिकला ने जींस. मुझे अचंभा हुआ, मुझे लगा था कि कल के आराम के बाद आज
हम अपनी रति क्रीड़ा आगे जारी रखेंगे.
जब मैं भी तैयार होने लगा तो मा ने रोक दिया. "अरे तू मत चल, यही आराम कर,
मैं और शशि जा रहे है घूमने, ज़रा गोआ देख तो ले. डॅडी भी यही घर पर
रहेंगे"
"पर तुम दोनों नही हो तो मैं क्या करूँगा? मैं भी चलता हू" मैने
शशिकला से चिपट कर कहा. मेरा लंड फिर से मस्त खड़ा हो गया था. आराम के
बाद जैसे उसमे फिर जान आ गयी थी.
" क्यो अनिल बेटे, मैं तो हू! ज़रा आराम से गॅप शॅप करेंगे, थोड़ा इश्क विश्क भी
कर लेंगे" अशोक अंकल तौलिए से बाल पोछते हुए बोले. वे अभी अभी नहा कर
बाहर निकले थे, बिलकुल नंगे थे. उनका लंड अच्छा खड़ा था.
मैने मा की ओर देखा. वह मंद मंद मुस्करा रही थी. शशिकला बोली "आज बस
हम औरते जाकर सैर करेंगी. तुम दोनों यही रहो. डॅडी की बहुत इच्छा है कि
तुम्हारे साथ अकेले पूरा दिन बिताए."
मैं कुछ कुछ समझने लगा. डॅडी की ओर देखा. वे लंड को सहलाते हुए मेरी
ओर देख रहे थे. मेरा भी खड़ा होना शुरू हो गया. मैने डॅडी के साथ कई
बार संभोग ज़रूर किया था पर सबके साथ मिलकर ग्रुप मे. अकेले कभी उनके
साथ नही रहा था.
शशिकला मेरे मन की बात ताड़ गयी. बोली "देखो अनिल भैया, सीधी बात है.
हम लोगों का मेल जोल जैसे हुआ था? मैने और मम्मी ने मिल कर आपस मे प्यार
करना शुरू किया था, और कोई नही था. जैसा हम औरतों को अकेले मे मौका
मिला बिना किसी मर्द के वाहा रहते तो तुम दोनों को भी यही मौका मिलना
चाहिए. बिना किसी हिचक के तुम लोग जो करना हो कर सकते हो, है ना!"
डॅडी मुस्करा दिए, उनकी आँखों मे खुमारी भर आई थी, ज़रूर उन्होने प्लान
बना कर रखे होंगे मेरे साथ करने के. मेरा दिल धड़कने लगा पर लंड और
खड़ा हो गया. मज़ा आएगा मैने मन ही मन सोचा.
मा अशोक को बोली "ज़रा ख़याल रखना मेरे बेटे का, तैश मे कुछ भी ना कर
बैठना. "
डॅडी बोले "अरे मेरी आँखों का तारा है, मेरा प्यारा है, फूल जैसा सहेज कर
रखूँगा"
"और डॅडी, ज़रा जोश बचा कर भी रखिए, नही तो हम जब तक शाम को आएँगे,
अपना पूरा दम गवाँ बैठोगे तुम दोनों." शशिकला ने अशोक अंकल की
चुटकी ली.
"
वह मैं नही प्रॉमिस कर सकता. आख़िर अनिल अकेले मे मिला है, उसके साथ हर पल
एंजाय करने का इरादा है मेरा." अशोक अंकल बोले.
"ठीक है, बाद मे देख लेंगे, मुआवज़ा देना पड़ेगा" शशिकला मचल कर बोली.
"जो तुम कहो बेटी"
नोंक झोंक के बाद मा और शशिकला चली गयी. जाते जाते हमारी ओर देखकर
मुस्करा रही थी. मैं और डॅडी अकेले बच गये. मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा
था. डॅडी ने मुझे सीधे बाहों मे भर लिया और चूमने लगे. "बेटे, सच
बता, तुझे ये अच्छा लगता है ना? याने पिछले दो दिनों मे हमने जो किया,
ख़ासकर आपस मे?" उनकी आँखों मे प्रश्न था. शायद वे अब भी पूरे
निश्चिंत नही थे मेरे मन के बारे मे. अब वे धीरे धीरे मेरा लंड भी
मुठिया रहे थे. उनके हाथों मे जो जादू था वह मैं पहले भी अनुभव कर
चुका था. लंड को एक खास तरह से सहलाना सिर्फ़ मर्दों को ही आता है. वे मेरा
लंड जिस तरह से चूसते थे उसमे भी एक अलग ही सुख था.
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