RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
गुदा पर उनके फूले चिकने सुपाडे को महसूस करके मेरा और खड़ा हो गया,
डर भी लगा, काफ़ी बड़ा था. फिर मुझे याद आया कि एक किताब मे पढ़ा था कि गान्ड
मारने के पहले ज़ोर लगाने से, जैसे सुबह टॉयलेट मे करते है, गुदा खुल
जाता है और आसानी होती है. मैने ज़ोर लगाया और डॅडी की गोद मे बैठने लगा.
पॅक की आवाज़ के साथ सुपाडा मेरी गान्ड मे समा गया. दर्द की एक टीस उठी पर
दर्द के साथ एक अलग सुख की लहर मेरे रोम रोम मे दौड़ गयी.
"वाह शाबास बेटे, क्या बात है, तुझे कुछ बताना भी नही पड़ा और तूने अंदर
ले लिया. रीमा डार्लिंग, यह लड़का तो सच का हीरा है, बहुत आगे जाएगा इस मामले
मे. पर गान्ड टाइट क्यो कर ली बेटे? वैसे ही ढीली छोड़ आराम से पूरा लंड ले
लेगा तू" डॅडी ने मुझे शाबासी दी.
मैने गुदा की मसल ढीली की और बैठने लगा. डॅडी का लंड इंच इंच करके
मेरी गान्ड मे घुसता गया. बहुत अनोखा अनुभव था, गान्ड भारी भारी लग
रही थी. बीच मे मैं रुक गया, दर्द ज़रा ज़्यादा हो गया था.
मा मुझे चूमते हुए बोली "बस कुछ ही देर और है मेरे लाल, डॅडी को देख, कितने खुश है"
यह मुझे भी महसूस हो रहा था. जब शुरू किया था तब डॅडी का लंड बहुत
कड़ा नही था. अब शायद मेरी गान्ड मे लंड पेलने की क्रिया से वे इतने उत्तेजित हो
गये थे कि उनका लंड काफ़ी कस के खड़ा हो गया था.
डॅडी ने अचानक प्यार से मुझे भींच लिया और मेरी पीठ चूमते हुए मुझे
खींच कर अपनी गोद मे बिठा लिया. सॅप की आवाज़ से पूरा लंड मेरी गान्ड मे
समा गया और मेरे चूतड़ डॅडी की जांघों पर टिक गये. मेरी गुदा पर
उनकी झान्टे महसूस हो रही थी.
अचानक हुए दर्द से मैं चिहुक पड़ा था. डैडी मुझे बेतहाशा चूमते हुए
बोले "सारी मेरे राजा, पर मुझसे रहा नही गया, इतनी टाइट है तेरी मखमली
गान्ड कि लगता है कि हचक हचक कर चोद डालु. बस, एक मिनिट, तेरा दर्द
बिलकुल कम हो जाएगा." और मेरे सिर को अपनी ओर मोड़ कर उन्होने मेरे होंठ
अपने होंठों मे दबा लिए और चूसने लगे. उनकी गुलाबी आँखों मे
मुझे प्यार और दहकति वासना दिखी.
शशिकला अपनी ही चूत मे उंगली कर रही थी. वह भी काफ़ी उत्तेजित थी, शायद
अपने डॅडी के लंड से मेरी गान्ड की वर्जीनीटी ख़तम किए जाने का कब से
इंतजार कर रही थी. "अनिल, बहुत अच्छा किया भैया, डॅडी तो अब सातवे आसमान
पर होंगे. क्यो डॅडी, हो गया काम? कब से मेरे पीछे पड़े थे कि बेटी, इस
खूबसूरत बच्चे अनिल की गान्ड दिला दो"
अशोक अंकल कुछ नही बोले, वे तो बस मेरी गान्ड मे लंड धीरे धीरे मुठियाने मे लगे थे
और मेरा मूह चूस रहे थे जैसे खा जाना चाहते हों.
फिर शशिकला मेरे सामने नीचे बैठ गयी और मेरा लंड चूसने लगी. बोली
"डॅडी अब इतनी जल्दी नही छोड़ने वाले. तब तक मैं भी ज़रा तेरे लंड का मज़ा ले
लू, आज ठीक से चूसा ही नही"
मा मेरे पास खड़ी थी. उसने झुककर हम दोनों को अपनी छाती से लगा लिया.
डॅडी ने मन भर कर मेरा मूह चूसा और फिर मेरे मूह को छोड़कर मा की
चूंची चूसने मे लग गये. मैने भी मा का दूसरा स्तन मूह मे ले लिया.
अशोक अंकल अब धीरे धीरे नीचे से मेरी मारने लगे. बस एक दो इंच उपर नीचे
होते और लंड मेरी गान्ड मे अंदर बाहर करते. लंड मेरी गान्ड मे चलाने से
एक अलग अजीब सा आनंद मेरी रगों मे भर गया. मेरा और कस कर खड़ा हो गया
और दीदी का सिर पकड़कर मैने पेट पर दबा लिया और उसका मूह चोदने लगा.
मा भी अपने बेटे की पहली ठुकाई देखकर उत्तेजित थी. वह सीधी खड़ी हो गई
और एक टाँग उठाकर सोफे के उपर रख दी. उसकी चूत अब खुल गयी थी. मैने
झुक कर उसमे मूह लगा दिया. तीन तरफ से अब मुझपर सुख की बरसात हो रही
थी, गान्ड मे डॅडी का लंड चल रहा था, लंड दीदी के मूह मे था और मुँह मे
मा की बुर के रस का झरना बह रहा था.
मैं ज़्यादा देर नही टिक पाया, कसमसा कर झाड़ गया. शशिकला ने चूस
चूस कर मेरा सारा वीर्य निगल लिया. मा भी दो बार मुझे बुर का पानी पिला चुकी
थी. डॅडी अब पूरे ज़ोर मे थे. उनका लंड भी अब कस कर खड़ा हो गया था और
पिस्टन जैसा मेरी म्यान मे चल रहा था. अब मेर दर्द भी कम हो गया था, आदत
हो गयी थी, मख्खन अंदर तक जाकर मेरी गान्ड को चिकना भी कर गया था.
झड़ने के बाद मैं लस्ट हो गया था पर मज़ा अब भी आ रहा था. डॅडी तैश मे
थे "मेरे राजा, बहुत मज़ा आ रहा है मेरे बेटे, अब नही रहा जाता, चल अब ज़रा ठीक
से तेरी मार लू नही तो मुझे चैन नही पड़ेगा." कहते हुए उन्होने मुझे
वैसे ही गठरी जैसा उठाकर पलंग पर रखा और मेरे उपर चढ़ गये. मेरे
बदन को बाहों मे भींच कर, अपनी टांगे मेरे इर्द गिर्द जकाड़कर वे साथ
साथ हचक हचक कर मेरी गान्ड चोदने लगे. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था
पर मन मे एक अलग सा समाधान था कि डॅडी को मेरा बदन इतना अच्छा लगता
है कि वे इस तरह से जम के उसे भोग रहे है.
जब वे झाडे तो उनके मुँह से भी एक हल्की हुंकार निकल गयी. दो मिनिट मे
उनका लंड सिकुड कर अपने आप मेरी गान्ड से निकल आया. वे पलंग पर लुढ़क
गये. उनके चेहरे पर असीम तृप्ति थी. मुझे चूम कर बोले "थॅंक यू अनिल,
तूने आज मुझे वह सुख दिया है जिसके लिए मैं कब से तरस रहा था!"
हम बहुत थक गये थे इसलिए मेरी आँख लगने लगी. डॅडी भी सोने को थे.
आधी नींद मे मैने सुना कि मा शशिकला को कह रही थी "बेटी, ये दोनों तो
गये काम से. पर अशोक को देख, कितना आनंद मे है, जैसे किसी बच्चे को उसका
मन पसंद खिलौना मिल गया हो. अनिल भी कैसा शांत पड़ा है, मुझे लगा उसे
दर्द होगा पर लगता है काफ़ी मज़ा आया है उसे"
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