RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मा और शशिकला मेरे जंघीए को आगे से खाने मे जुट गयी थी. खाते खाते
खेल खेल मे बार बार मेरा लंड मूह मे ले लेती. मेरा जंघिया ख़तम होते होते
मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया.
मेरे बाद सब ने शशिकला की ब्रा और पैंटी खाई और अंत मे हम डॅडी पर जुट
गये. मेरे हिस्से मे डॅडी के लंड को ढकने वाला भाग आया. लंड से निकले वीर्य
से भीग कर वह महक रहा था. डॅडी का लंड भी अब खड़ा था.
हँसते खेलते सब ने फिर से वाइन पी, सब अगले राउंड के लिए तैयार थे. अशोक
अंकल मूड मे थे, पाठ पड़े कमर उचका कर अपना लंड बिस्तर पर रगड़ रहे
थे जैसा पुरुष अकेले मे अक्सर करते है. शशिकला उनके गोरे गोरे चूतड़
सहलाने लगी. "अनिल देख, कैसी है डॅडी की गान्ड? अगर कोई सिर्फ़ इतनी ही देखे तो
ये नही कह सकता कि औरत की है या मर्द की. यही कहेगा कि कितने प्यारे चिकने
गोरे चूतड़ है!"
मैने हाँ कहा. वाकई मे अंकल के चूतड़ पुष्ट चिकने और गोरे थे.
शशिकला आगे बोली "अब के आसन मे तू डॅडी की गान्ड को प्यार कर. उन्हे अब तीनों
ओर से सुख मिलना चाहिए, मूह से, लंड से और गान्ड से. तेरे जवान लंड से
बढ़िया क्या हो सकता है डॅडी की गान्ड को सुख देने के लिए."
याने प्लान यह था कि मैं अशोक अंकल ... डॅडी ... की गान्ड मारूँगा! सुनकर
मुझे अजीब तो लगा पर मज़ा भी आया. क्या बात है! अंकल की उस कसी हुई गान्ड
मारने का लुत्फ़ ही कुछ और होगा. मेरा लंड और तन गया. देखकर अंकल खुश
हो गये. "देखा, कितना प्यार करता है मेरा बेटा मुझे, चलो शशि, रीमा
डार्लिंग, जल्दी आओ, मुझे अब सहन नही होता."
"
डॅडी, पहले आप ऐसे आइए और झुक कर खड़े होइए. अनिल आप की गान्ड मारेगा.
हम भी तो ज़रा देखे कैसे दो खूबसूरत मर्द एक दूसरे पर चढ़ते है. फिर
हम लोग भी बिस्तर पर आप के साथ आ जाएँगे" शशिकला ने हुक्म दिया.
अशोक अंकल उसका कहा मानकर बिस्तर पर से उठे और मुझे ज़ोर से चूम लिया.
मेरे तन्नाये लंड को मुठ्ठी मे लेकर सहलाते हुए बोले "क्या मस्त खड़ा है ये
सुंदर हथियार तेरा अनिल! मेरी गान्ड को यह ज़रूर मस्त कर देगा. आ जा बेटे"
वे बिस्तर के सिरहाने को पकड़कर झुक कर खड़े हो गये. शशिकला मेरा हाथ
पकड़कर मुझे उनके पीछे ले गयी. मेरे लंड को मख्खन लगाकर बोली "चल
अनिल, शुरू हो जा"
मैने पूछा "दीदी, डॅडी की गान्ड मे मख्खन नही लगाओगि? उन्हे दर्द होगा"
वह शैतानी से मुस्काराकर बोली "अरे नही, कोई ज़रूरत नही है, उन्हे आदत है
मरवाने की. ऐसे क्यो देख रहा है? तू समझ रहा है वो बात नही है, आज तक
उन्होने किसी मर्द से इश्क नही किया है, वे और किसी से नही मरावाते, मैं ही कभी
कभी डिल्डो लगाकर डॅडी को खुश कर देती हू. चल अब, देर मत कर"
मा सोफे पर बैठकर अशोक अंकल के चुंबन लेने लगी. शशिकला उनके
सामने नीचे फर्श पर बैठ गयी और उनका लंड मूह मे ले लिया. अंकल मस्ती से
अपने चूतड़ हिलाने लगे, कमर हिला कर शशिकला के मूह को चोदने की
कोशिश करने लगे. मुझे बोले "अनिल बेटे, प्लीज़, जल्दी आ जा, मैं तुझे अंदर
लेना चाहता हू"
मैने उनकी गुदा पर सुपाडा रखा और पेल दिया. पक्क से वह आराम से अंदर
चला गया. सिसक कर डॅडी बोले "ओह ओह मज़ा आ गया बेटे, काफ़ी बड़ा है, डिल्डो
का सुपाडा नही होता ना, सुपाडे का मज़ा और ही है. डाल और अंदर"
मैने उनके चूतड़ पकड़कर पूरा लंड अंदर घुसेड दिया. आराम से पूरा लंड
डॅडी की गान्ड मे समा गया. काफ़ी नरम और तपि हुई म्यान थी. किसी पुरुष की
गान्ड मार रहा हू, वह भी अपने सौतेले डॅडी की, यह भावना भी बहुत
कामुक थी. मैने उनकी कमर को पकड़ा और चालू हो गया जैसा ब्ल्यू फिल्मों मे
देखा था. लंड अंदर बाहर करते हुए डॅडी की गान्ड मारने लगा. मा ने
उनका मूह अपने मूह से धक दिया और उनके होंठ चूसने लगी. शशिकला
ने उनका पूरा लंड निगल लिया और ज़ोर से चूसने लगी.
पाँच मिनिट के बाद जब डॅडी झड़ने को आ गये तब शशिकला अचानक मूह
से लंड निकाल कर खड़ी हो गयी. "बस, अब सब पलंग पर चलो, वहाँ आराम से
मज़ा करना. अनिल, ज़रा संभाल के भैया, जल्दी नही झड़ना, बहुत दिनों के बाद
उनकी यह ख्वाहिश पूरी हुई है, जब से तुझे देखा था, इस मौके की ताक मे थे
वे"
शशिकला पलंग पर पट लेट गयी. मैं और डॅडी चिपके हुए सावधानी से
पलंग पर चढ़े. मेरा लंड अब भी डॅडी की गान्ड मे गढ़ा था. डॅडी
शशिकला पर चढ़ गये और उसकी गान्ड मे लंड उतार दिया. फिर वे उसके बदन
पर सो गये, मुझे अपनी पीठ पर लिए हुए. मम्मी उनके सामने टांगे खोल
कर लेट गयी और डॅडी का चहरा अपनी बुर पर दबा लिया. डॅडी मम्मी की बुर
चूसते हुए शशिकला की गान्ड मारने लगे. उनकी कमर हिलाने से मेरा लंड
अपने आप उनकी गान्ड मे चलने लगा. मैं कुछ देर चुपचाप पड़ा हुआ मज़ा
लेता रहा, फिर लय मे डॅडी की मारने लगा. वे जब चूतड़ उपर करते तो मैं अपना
लंड कस के उनकी गान्ड मे पेल देता, वे जब नीचे को धक्के मारते तो मैं लंड
आधे से ज़्यादा बाहर निकाल लेता. इस तरह डॅडी की गान्ड मे मेरा लंड पूरा अंदर
बाहर होने लगा.
उन्हे बहुत मज़ा आ रहा था. जिस तरह से वे हचक हचक कर अपनी बेटी की
गान्ड चोद रहे थे और मा की बुर चूस चूस कर मानों उसमे घुस जाने की
कोशिश कर रहे थे उससे उनकी उत्तेजना जाहिर थी. अपने गुदा का छल्ला वे बार
बार सिकोड कर मेरे लंड को पकड़ लेते. डॅडी की गान्ड अच्छी ख़ासी कोमल थी,
बहुत टाइट भी नही थी, शशिकला सच कह रही थी, लगता है उसने डिल्डो से
मार मार कर उनकी गान्ड काफ़ी खोल दी थी.
जब आख़िर मुझसे नही रहा गया तो मैने डॅडी के बदन को कस के बाहों मे
भींचा और हचक हचक कर चोद डाला. झड़ने के बाद मैं डॅडी पर पड़ा
रहा. डॅडी पूरे ज़ोर से शशिकला की गान्ड चोदते रहे और दस मिनिट बाद जाकर
झाडे.
कुछ सम्हलने के बाद डॅडी पलटे और मुझे बाहों मे भरकर चूमने
लगे "बहुत अच्छा चोदा तूने अनिल, मुझे मज़ा आ गया. जब से तुझे देखा था,
तब से दिमाग़ मे था कि तेरे इस कसे जवान लंड को अंदर लू. आज मुझे हर तरह का
सुख मिल गया. अब बस एक और सुख चाहिए आज की रात, मैं पूरा तृप्त हो जाउन्गा."
शशिकला बोली. "मुझे मालूम है आप किस सुख की बात कर रहे है. उसके लिए कल
तक रुक क्यो नही जाते डॅडी? आराम करने के बाद आपका लंड फिर से मजबूत
खड़ा होगा और मज़ा आएगा."
मा बोली "अरे कर लेने दो अशोक को उसकी हर मुराद पूरी. हनीमून नाइट का पूरा
लुफ्त उठाने दो. कौन सा सुख चाहिए तुम्हे अशोक?"
अशोक अंकल मुझे बाहों मे लेकर मेरे नितंबों को सहलाते हुए बोले. "अनिल
के चूतड़ भी बड़े प्यारे है. ये एकदम कुँवारा है इस मामले मे. मैं इसकी इस
चिकनी गान्ड को चोदना चाहता हू"
मुझे पहले से अंदाज़ा था कि क्या हो सकता है. पर फिर भी सुनकर मिलेजुले
ख़याल दिल मे आए. एक तो थोड़ा डर लगा, मेरी गान्ड मे अब तक मैने उंगली
छोड़कर कुछ नही डाला था. उंगली भी मैं अक्सर नहाते समय साबुन लगाकर
डाला करता था. अब लंड जाएगा तो कैसा लगेगा! वह भी अशोक अंकल का मस्त
मूसल! पर डर के साथ साथ मन मे गुदगुदी भी हुई. जब मैं उंगली करता था
तो लंड खड़ा हो जाता था. लंड जाएगा तो और मज़ा आएगा शायद!
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