RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मा का दुलारा – भाग -3
सोकर उठा तो रात के बारह बजे थे. मैं पाँच घंटे सोया था! बाकी सब पहले ही
जाग गये थे. सब वैसे ही नंगे किचन मे चाय पीते हुए गॅप शॅप कर रहे थे.
मैं भी पहुँचा. कुछ सीरियस बात हो रही थी. मा का चेहरा थोड़ा लाल था,
जैसे शरम से नववधू का होता है. मुझे देखकर शशिकला बोली "आओ
भैया, तुम्ही से बात कर लेते है, अब तुम्हारी मा का और तो कोई है नही, आख़िर
शादी ब्याह का मामला है"
मैं चकरा गया. उसकी ओर देखने लगा. मा बोल पड़ी "शशि कितनी बदमाश
है तू, उससे क्यो पूछती है, वो बेचारा तो कितना छोटा है अभी"
"हमारे काम लायक बड़ा तो है मा, तुम्हारा काम कर रहा है साल भर से, कल
रात से जुटा है, हमारा भी खूब काम किया है" शशिकला ने चुटकी ली. मा
चुप रही, मेरी ओर देख कर हंस दी. वैसे मन मे बहुत खुश लग रही थी.
"बात यह है अनिल कि डॅडी तुम्हारी मा पर इतने फिदा है कि कहते है मैं तो
शादी करूँगा इनसे. मैं भी यही चाहती हू, जब से मम्मी को देखा है मेरी
मा की याद आती है. वह भी मुझे ऐसे ही प्यार करती थी. और अब मा के साथ
मुझे एक प्यारा भाई मिल जाएगा जिसे मैं खूब सताया करूँगी" शशिकला बोली.
मैं चकरा गया. खुश भी हुआ. मा की शादी, वो भी इतने बड़े परिवार मे! इस
खूबसूरत मर्द के साथ! पर कुछ समझ मे नही आया. मैने पूछा "पर दीदी,
शादी क्यो? मेरा मतलब है हम सब वैसे ही आनंद उठा रहे है, मा ने तो
नही कहा कि शादी करो, तभी चोदने दूँगी. वो तो वैसे ही चुदवाने को तैयार
है"
अशोक अंकल बोले "हां, तू सच कहता है अनिल, पर तेरी मा को मैं पूरी अपनी कर
लेना चाहता हू. इनके इस रूप को मैं नही दूर कर सकता, मुझे ये हमेशा साथ
चाहिए. मैं जहा भी जाउन्गा इन्हे ले जाउन्गा. बिना शादी के यह मुमकिन नही
होगा. तुम चिंता न करो, तुम्हारे सुख पर कोई आँच नही आएगी. मा तुम्हारी ही
रहेगी. हम सब एक बड़े प्यारे परिवार जैसे रहेंगे."
मा बोली "मेरे मन मे भी यही था. तू मान गया मेरे दिल का बोझ उतर गया.
असल मे इस अशोक ने मुझे कल रात ऐसा चोदा की ये मेरा गुलाम होने के बजाय
लगता है मैं ही इसकी गुलाम हो गयी."
शशिकला बोली "अब गान्ड मरवा लो मम्मी, अब कोई हर्ज नही है, आख़िर तुम्हारे
होने वाले पति है मेरे डॅडी. अपने पति को उसका हक तो देना पड़ेगा. यही मैं
डॅडी से कह रही थी कि मम्मी से शादी करो तभी मिलेगी उसकी यह गोरी गुदाज
गान्ड . ये इतने फिदा है तुम्हारी गान्ड पर कि झट से तैयार हो गये, सिर्फ़ तुम्हारी
गान्ड पाने को."
अशोक अंकल ज़मीन पर बैठ गये और मा का एक पैर अपने सीने से लगा लिया
"प्लीज़ रीमाजी, मान जाइए, मैं आप के चरणों का गुलाम बन कर रहूँगा. इतने
खूबसूरत चरण, इनके लिए तो मैं कुछ भी करूँगा" और मा के पैरों को वे
चूमने लगे.
मा शरमा कर पैर हटाने लगी "अरे यह क्या कर रहे हो अशोक,
उठो, मैने कहा तो कि मैं तैयार हू"
शशिकला हँसने लगी "अरे चूमने दो दीदी, ये तो कब से करने को मरे जा
रहे है, पैरों की फेटिश है इन्हे, खूबसूरत पैर देखे कि फिदा हो जाते है,
तुम्हारे रूप के साथ साथ तुम्हारे इन हसीन पैरों का भी तो मैं दीवाना हूँ अशोक
माँ के पैरों के पास बैठ गया और उन्हे गोद मे लेकर सहलाने लगा. फिर अपने
गालों पर उन्हे सटा कर चुंबन लेने लगा.
शशिकला बोली "देखो कैसे दीवाने है दोनों, अब इन्हे
इनका इनाम देना चाहिए, है ना मम्मी, अब आएगा इस नशीली रात का मज़ा"
मेरा लंड आधा खड़ा हो गया था. उसमे बड़ी मीठी गुदगुदी हो रही थी पर दिन
भर चोद चोद कर लंड की जान निकल गयी थी, ठीक से तन्ना कर खड़ा नही हो
रहा था. यही हाल अंकल का था. उनका भी आधा खड़ा हो कर इधर उधर डोल रहा था
पर लोहे के डंडे जैसा नही खड़ा था जैसा कल रात मा को चोदते समय
खड़ा था.
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