RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"सब कुछ किया है मम्मी इस के साथ. अपने शरीर के हर भाग मे इसे लिया है.
इसकी मलाई खाओगि तो सब भूल जाओगी. वैसे अब डॅडी को ज़्यादा मत परेशान
करो, बेचारे रो देंगे. अनिल तो रोने को है, है ना मेरे राजा?" शशिकला मेरे
लंड को होंठों से चूमते हुए बोली. पिछले पाँच मिनटों मे उसने मेरी
वे हालत की थी कि मैं सच मे रोने को आ गया था. उसने अपनी चूत तो मुझे
नही दिखाई पर उसमे उंगली डालकर मुझे अपना रस चखाया. मा से अलग
रस था, मा की रज काफ़ी तेज स्वाद की और मसालेदार है, उमर के साथ अच्छी पक
गयी है, शशिकला की रज भीनी भीनी खुशबू की थी और मा से भी ज़्यादा
गाढ़ी थी.
मेरा लंड जब ज़ोर से उछलने लगा तो वह मेरे कान मे बोली "देखो अपनी प्यारी
मा को, कैसे मेरे डॅडी के लंड पर मर मिटी है, देखना अब ऐसे चुसेगी
जैसे ब्ल्यु फिल्म की वे स्लॅट करती है. तुम अपनी सीधी साधी मा के कारनामे
देखो, मैं तो अब तुम्हारे इस प्यारे गन्ने का रस पिए बिना नही रह सकती."
"दीदी, पहले मुझे तो अपना अमृत पिला दो प्लीज़" मैने शशिकला से मिन्नत
की. वह मुस्कर कर बोली "रात भर पिलाउन्गि, दो दिन पिलाउन्गि, तुझे प्यासा नही
रखुगी, पर अभी चुप रह मेरे छोटे से मुन्ना" मेरे सामने बैठकर उसने
मेरे लंड से खेलना शुरू कर दिया. उसे पकड़ा, हथेली मे लेकर गोल घुमाया,
उसका चुंबन लिया, अपने गालों और होंठों पर फिराया और फिर मूह मे
सुपाडा लेकर चूसने लगी. उपर देखती हुई वह मेरी आँखों मे आँखे डाल
कर आँखों आँखों मे मुझे छेड़ रही थी.
मैने कमर उचका कर भरपूर कोशिश की कि लंड उसके मूह मे और पेल
दूं, यह मीठी छेड़खानी सहना मेरे लिए असंभव था, पर वह बड़ी
चालाकी से अपना मूह दूर ले जाती जिससे बस सुपाडा ही उसके मूह मे रहता. वह
अब सुपाडे को अपनी जीभ से रगड़ रही थी, कभी अपनी जीभ की नोक मेरे सुपाडे
की नोक पर रखकर गुदगुदाने लगती. मैं क्या करता, तड़प्ता रहा.
शशिकला ने कनखियों से इशारा किया कि मा को तो देखो.
मा ने अशोक अंकल का इतना बड़ा लंड अब तक पूरा निगल लिया था. उसके होंठ
उनके पेट पर उनकी झान्टो मे जा छुपे थे.गाल फूल गये थे जैसे कोई बड़ी
चीज़ मूह मे हो, और अशोक अंकल के नौ इंच लंबे और अधाई इंच मोटे
लंड से ज़्यादा और बड़ा क्या हो सकता था. मैने मॅगज़ीन और ब्ल्यू फिल्मों मे
देखा था, बिलकुल वैसे ही कौशल से मा उनका लंड चूस रही थी.
अशोक अंकल भी कुर्सी मे हिल डुल कर कमर उठाकर मा का मूह चोदने की
कोशिश कर रहे थे. मा ने उन्हे वैसा करने दिया फिर अचानक लंड मूह से
निकाला और जीभ से निचला हिस्सा चाटने लगी. अशोक अंकल तिलमिला कर "ओह ओह ओह
दीदी प्लीज़" करने लगे. उनकी आँखे पथरा गयी थी. पर मैं समझ रहा था,
सुख के जिस सागर मे वे गोते लगे रहे थे वहाँ से उनका बचना मुश्किल था.
मा की उस कारीगरी को देखकर मुझे गर्व भी हुआ और ईर्ष्या भी हुई. क्या
गरम और सेक्सी थी मा मेरी, जो अशोक अंकल का ये हाल कर दिया. क्या मेरा लंड
कभी इतना बड़ा होगा? और मा को क्या मज़ा आ रहा होगा, कितना प्यारा लंड
है, ऐसे लंड को चूसने के लिए भी भाग्य चाहिए.
अचानक शशिकला ने मेरा लंड पूरा निगल लिया और जीभ से निचले भाग को
सहलाने लगी. मैं तुरंत झाड़ गया. "ओह दीदी ओह ओह मेरी मा &" बस इतना ही बोल
पाया. लंड के झाड़ते ही शशिकला ने लंड मूह से आधा निकालकर सुपाडा जीभ
पर लिया और बड़े चाव से चटखारे ले लेकर मेरा वीर्य खाने लगी. पूरा वीर्य
निगल कर भी वह बदमाश मेरे लंड को चुसती रही, मुझे सहन नही हुआ
पर वह हंस हंस कर जानबूझ कर मेरे लंड को सताती रही. मुझे तभी छोड़ा
जब मैं बिलकुल लस्त हो गया.
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