RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मुझे गश आ गया. यहाँ अब इंद्रासभा होगी, इन दो खूबसूरत नारियों मे
बिना किसी सीमा की रति होगी और हमे मन मार कर उसे सिर्फ़ देखना पड़ेगा.
शशिकला शायद इसी का प्लान बता रही थी मा को फ़ोन पर. क्या दुष्ट लड़की
थी! मैने अशोकजी की ओर देखा, उनके चेहरे पर भी वही भाव थे पर साथ
मे एक मीठी मुस्कान भी थी, शायद उनके साथ यह पहले भी हो चुका था,
शशिकला और उसकी मा के बीच!
जब दोनों औरतें अर्धनग्न हो गयी तो रुक गयी. "डॅडी की आँखे देखो मा,
कैसी चौड़ी हो गयी है तेरा रूप देख कर" शशिकला मा को खींचकर
अशोकजी के सामने ले गयी और मा की कमर पकड़कर उसे घुमा घुमा कर
उसका शरीर चारों ओर से उन्हें दिखाने लगी, जैसे खरीददार को माल दिखा
रही हो. अशोकजी बेचारे गहरी साँसें लेते हुए तड़प कर बोले "शशि बेटी,
प्लीज़, ऐसे नही तरसाओ आज, रीमा जी तो अप्सरा है अप्सरा, तुम्हारी मा के
समान. आज तो इस अप्सरा का प्रसाद मुझे मिलने दो."
"मिल जाएगा डॅडी, ज़रा अप्सरा को देख तो लो पहले, बड़ी मुश्किल से ढूँढा है
मैने. आपको चखाने के पहले मैं फिर से चखुगी इनके प्रसाद को" मा
भी मज़े से हाथ उपर करके इस तरह घूम रही थी जैसे लिंगरी की माडल
फैशन शो मे दिखती है. इतनी बार मैने मा को ब्रा और पैंटी मे देखा था
फिर भी उसे देखकर मेरा दिल धड़कने लगा. आज परपुरुष के आगे ऐसे
अपने सुंदर जिस्म की नुमाइश करते हुए मा और भी नमकीन लग रही थी.
उसके उन उँचे हिल की संडलों पर वह ऐसे लचक लचक कर इधर उधर
चल रही थी कि अगर मेरे हाथ पैर न बँधे होते तो वही ज़मीन पर लेटकर मा
के पैर चूमने लगता.
शशिकला भी परी जैसी लग रही थी. छरहरा गोरा शरीर, एकदम स्लिम
जांघे, गुलाबी रंग की नाज़ुक है हिल सॅंडल और लाल रंग की लेस लगी ब्रा और
पैंटी. मा से मुझे एक पल के लिए ईर्ष्या हो गयी, इस सुंदरी के साथ मा ने
इतनी रातें बिताई, उसके सौंदर्य को तरह तरह से भोगा! फिर मन मे आया कि
शशिकला भी कोई कम भाग्यवान नही थी कि मेरी मा की तपती मादकता का
स्वाद उसे लेने का मौका मिला.
मा हमारे सामने पड़े सोफे मे बैठ गयी और खींच कर शशिकला को
अपनी गोद मे बिठा लिया. "आ बेटी, मा की गोद मे आ जा. इतने दिन हो गये अपनी
बेटी को प्यार भी नही कर पाई, आ एक किस दे प्यारा सा, तेरे होंठों का शहद
चखने को मैं तरस गयी." और शशिकला को चूमने लगी. शशिकला भी
बड़े लड़ से मा की गोदी मे बैठ कर मा के स्तन दबाती हुई मा के
चुंबनो का जवाब देने लगी. जल्द ही यह चूमा चाटी गरमा गयी.
एक दूसरे की जीभ से जीभ लड़ते हुए, मूह चुसते हुए वे एक दूसरे के शरीर को
टटोल कर, सहला कर और दबा कर वे आपस मे ऐसी लिपटी थी जैसे प्रेम मे डूबे
प्रेमी करते है, फरक यह था कि दोनों औरतें थी, वह भी कम ज़्यादा उमर
की!
हमे और कुछ देर अपने अर्धनग्न खेल से जान बूझकर तड़पा कर आख़िर
दोनों ने एक दूसरे की ब्रा और पैंटी उतार दी और वही पलंग पर लेटकर सीधे
सिक्सटी नाइन मे जुट गयी. शशिकला का पूरा नग्न रूप मुझे बस एक झलक दिखा
क्योंकि वह लेट कर मा की बाहों मे समा गयी थी. जल्द ही वे दोनों वासना की
आहें भरती हुई अपनी अपनी साथिन की चूत के रस को चाटने मे ऐसी मशगूल
हो गयी की हमे भूल गयी.
मेरा बुरा हाल था. मैने अशोकजी की ओर देखा. वे अब कसमसा रहे थे. उनका
लंड झंडे जैसा तन कर खड़ा था. मुझे देखकर बोले "अनिल, बुरा मत
मानना पर तुम्हारी मा का यह रूप सहन नही होता, अभी मेरे हाथ पैर खुल
जाएँ तो उन्हें दिखाऊ कि उनके इस रूप की पूजा मैं कैसे करूँगा."
"अशोक साहब, मैं बिलकुल बुरा नही मानता. बल्कि मा को आप जैसा चाहने
वाला मिल जाए तो मुझे अच्छा लगेगा, बेचारी ने बहुत दिन प्यासे गुज़ारे है"
मैने कहा "वैसे शशिकला जी को देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि अभी
उनके आगे घुटने टेक दूं और उनकी उस प्यारी चूत ... मेरा मतलब है ... सारी
अशोक साहब ... याने वहाँ मूह छुपा दूं"
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