RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
मेरा खड़ा हो गया. शशिकला के उस जवान खूबसूरत रूप को भोगने का
मौका शायद मुझे मिल जाएगा यह सोच कर लंड उछलने लगा. वह मुझे
चिकना कह रही थी इस बात से भी मन मे एक अजीब सा संतोष हुआ. माँ मेरे
लंड को पकड़कर सहला रही थी, मेरी हालत पर मुस्करा दी. अब भी कुछ
कहना था उसे पर हिचक रही थी.
"मा तू क्या बता रही थी, बोल ना? रुक क्यों गयी"
"बेटे, वो बदमाश शशिकला बोल रही थी कि उसके डॅडी याने माथुर साहब
को मैं बहुत अच्छी लगती हू. शशिकला बोल रही थी कि क्यों न सब अगले
शुक्रवार को उनके घर मे मिले और शनिवार रविवार वही बिताएँ. पर बेटे,
तुझे ये चलेगा? माथुर साहब और मैं .... याने वह शैतान लड़की हमे ऐसे ही
नही बुला रही है. ज़रूर वह खुद तुझे पकड़ लेगी और मुझे अपने डॅडी के
हवाले कर देगी" मा किसी तरह बोली.
"तो क्या हुआ मा? मज़ा करो. माथुर साहब तुझे अच्छे लगते है या नही?"
मैने मा के उरोज दबाते हुए पूछा.
"हाँ, अच्छे हॅंडसम आदमी है. वह बदमाश कह रही थी कि उसकी मा
माथुर साहब के हथियार की याने ..." मा फिर शरमा कर रुकी तो मैं बोला "लंड
की" और हँसने लगा.
"हा रे नालयक, वही, कह रही थी कि बड़ा शानदार है, उसकी मा और वह
दोनों दीवाने थे उसके, कह रही थी कि दीदी अब तुम मालकिन बन जाओ उस हथियार
की. डॅडी वैसे ही दीवाने है तेरे, उन्हें भी उमर मे बड़ी औरतें बहुत अच्छी
लगती है, और तेरे सौंदर्य पर तो मरते है वे, तेरी गुलामी करेंगे जैसे मेरी
मा की करते थे, उनसे जो चाहे करवा लेना." मा की आँखे चमक रही थी.
"चलो मा, हम ज़रूर चलेंगे, मज़ा करेंगे, मैं भी अपनी उस बहन का प्यार
पाने को आतुर हू"
उस रात हमने जो चुदाई की, वह पागलों जैसी चुदाई थी. हमारी हवस ठंडी
ही नही होती थी. आगे के बारे मे सोच सोच कर हम ऐसे बहकते थे कि फिर शुरू
हो जाते थे. हम रात भर जुटे रहे, मा ने दूसरे दिन छुट्टी ले ली. बोली शशि ने
कहा है कि आराम करो.
मैं खुश था. आख़िर मा को भी एक अच्छा हॅंडसम जवान आदमी मिलने वाला
था. और मुझे एक बेहद खूबसूरत जवान युवती.
फिर मा के कहने पर ही हमने निश्चय कर लिया कि बचे दो दिन सब संभोग
बंद रहेगा. शशिकला और अशोक माथुर से मिलने के समय यह ज़रूरी था कि
हम ताजे तवाने हों, ठीक से परिवारों की आपस की मुलाकात के लिए पूरे ज़ोर मे
हों. दो दिन कैसे गये यह पता ही नही चला.
इस बार कपड़ों पर हमने ज़्यादा ध्यान नही दिया. मा ने वही काली साड़ी,
स्लीवलेस ब्लॉज़ और काली ब्रा और पैंटी पहनी और मैने सादा टी शर्ट और जींस. हम
साथ कपड़े भी नही ले गये. मा को पहले ही अनुभव था "बेटे, घर मे घुस
कर जब कपड़े निकलोगे उसके बाद सिर्फ़ सोमवार को सुबह ही ज़रूरत पड़ेगी
उनकी."
टैक्सी मे बैठकर हम दोनों अपने दूसरे परिवार से मिलन के लिए चल दिए
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