10-30-2018, 06:10 PM,
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sexstories
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RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"मा, उसकी बुर बहने लगी होगी तेरा रूप देखकर, तुम्हारी ये मासल
छातियाँ देखकर कोई भी पागल हो जाएगा, उस लड़की की तो हालत खराब हो
गयी होगी" मैने मा के स्तनों मे मूह घुसकर कहा.
"और क्या, है ही तेरी मा इतनी मादक की उसका सगा बेटा उसपर मर मिटा है"
मा ने गर्व से कहा. "आगे तो सुन, मैने आज मुस्काराकर उससे कहा कि मैंडम,
इस वीकेंड को काम का आप बोल रही थी तो मैं ऐसा सोच रही हू कि शुक्रवार
रात को ही आपके घर आ जाती हू. उसे विश्वास ही नही हुआ, एकदम चुप हो गयी.
फिर किसी तरह बोली कि हां यही ठीक रहेगा, सोमवार को सुबह घर चली जाना, उस
दिन ऑफ भी ले लेना. फिर बड़ी सीरियस होकर बोली कि रीमा दीदी, तुम मुझ से इतनी
बड़ी हो, मुझे मैंडम न कहो, कम से कम अकेले मे तो शशिकला कहो. मैं
बस मुस्कराती हुई उसकी ओर देखती रही तो उसने मुझे किस कर लिया. आज जम के
मेरे होंठों पर मूह लगा कर किस किया उसने."
"मीठा लगा मम्मी?"
"हाँ बेटे, बहुत मीठा था, वह वो इंपोर्टेड स्ट्राबेरी के स्वाद का लिपस्टिक लगाती
है, बहुत मज़ा आया. उसकी हालत खराब थी, मुझे तो लगा कि वह शायद वही
मुझसे लिपट जाएगी पर किसी तरह उसने अपनी वासना को लगाम दी, उसे एक
मीटिंग मे भी जाना था. मैने कहा कि मैं घर जा रही हू जल्दी तो उसने तपाक
से हाँ कह दी. बोली आराम करो, वीकेंड मे बहुत काम करना है. मुझपर
बहुत मेहरबान है"
"मा, अब तुझे बस काम वाला काम करना पड़ेगा, ऑफीस का काम नही" मैने
मा की चुटकी ली. मा बहुत खुश थी, आज उसकी बुर ऐसी रिस रही थी कि जैसे
बहुत दिनों की भूखी हो. उस रात मैने और मा ने इतनी चुदाई की कि जैसे
महने भर की कसर पूरी हो गयी.
दूसरे ही दिन शुक्रवार था. मा को सुबह ही शशिकला का फ़ोन आया. वह अभी
अभी नहा कर आई थी और नंगी मेरे सामने खड़ी होकर कपड़े पहन रही
थी. फ़ोन पर बाते करते करते मा का चेहरा खिल उठा. एक दो बार वह बोली
"यस मैंडम-- मैं ओवरनाट बैग ले आउन्गि -- अच्छा ठीक है" फिर हँसकर बोली
"सॉरी शशिकला, अब मैंडम नही कहुगी" मैं मा से चिपट कर उसके नंगे
नितंबों पर अपना लंड घिस रहा था. सुबह सुबह नहाने के पहले मैने
मा को बाथरूम मे चोदा था पर अब फिर से लंड खड़ा हो गया था.
फ़ोन रखकर मा बोली "वह कह रही थी कि ऑफीस से ही सीधे घर चलते है,
घर पर ही डिनर करेंगे. मैं बोली कि मैं कपड़े ले आती हू तो शैतानी से बोली
कि वैसे ज़रूरत नही पड़ेगी-बोली वही दे देगी चेंज करने को कपड़े. और फिर
डाँट रही थी कि मैं उसे मैंडम क्यों कहती हू"
मैं मा को लिपटाकर बोला "मा, तुझे वह कपड़े पहनने ही नही देगी
देखना दो दिन"
मा ने अचानक पूछा "अनिल बेटे, इन बालों का क्या करूँ? काट लू क्या? तुझे
बहुत अच्छे लगते है मुझे मालूम है, पर उस लड़की को .... मालूम नही क्या
सोचेगी!" मा का हाथ अपनी घनी झान्टो मे उलझा था, वह उन बालों के
बारे मे कह रही थी.
मैने मना कर दिया "मा, ऐसी ही झान्टे लेकर जाओ उसके पास. और
वो इनपर मर मिटे तो कहना. तुम्हारी झान्टे असल मे इतनी काली, घनी, घूंघराली और
रेशमी है कि इनमे मूह छुपाने मे किसी सुंदरी की ज़ुल्फों मे मूह छुपाने
से ज़्यादा मज़ा आता है!"
"चल शैतान, पर यह बता बेटे तू क्या करेगा, मुझे ज़रा बुरा लग रहा है
तुझे अकेले छोड़ कर जाने को. सच बता तुझे कोई आपत्ति तो नही है मेरे लाल?"
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