RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
माँ का दुलारा पार्ट--8
गतान्क से आगे...............
"अब ठीक है राजा. अब दर्द कम है. मुझे लग रहा था जैसे मेरी फट ही जाएगी."
"माँ, अब गांद मारूं?" मैंने उत्सुकता से पूछा.
"मार बेटे पर धीरे धीरे, आज पहली बार है, तू चोदते समाया जैसे धक्के लगाता है, वो मैं सहा नही पाउन्गि." मैंने मोम के कूल्हे पकड़कर धीरे धीरे उसकी गांद मारना शुरू कर दिया. मज़ा आ गया. उसकी मखमली म्यान मुझे ऐसे पकड़े थी जैसे किसीने मुठ्ठी मे मेरे लंड को पकड़. लिया हो. वेसेलीन के कारण लंड फिसल भी बहुत अच्छा रहा था. धीरे धीरे मेरी लय बँध गयी. आँखे बंद करके मैं इस स्वर्गिक सुख का आनंद लेने लगा पर ज़्यादा देर नहीं! तिलमिला के झाड़. गया. झदाने के बाद मोम बोली
"अच्छा लगा अनिल? मज़ा आया जैसा तू सोचता था?"
"माँ, तुमने तो मुझे अपना गुलामा बना लिया. बहुत मज़ा आया मामी, थैंक्स" हाफते हुए मैं बोला. जब झड़ना बंद हुआ तो मैं लंड बाहर निकालने लगा.
"अरे रहने दे ना, क्यों निकालता है, इतनी मुश्किल से डाला है, आ मेरे उपर लेट जा" कहकर मोम ओन्धे मुँहा बिस्तर पर लेट गयी. मैं भी उसके साथ सरकता हुआ उसके उपर लेट गया. मेरा झाड़ा लंड अब भी मोम की गांद मे फँसा था.
मैं मोम के बाल और गर्दन चूमता हुआ उसके मम्मे दबाने लगा. मोम के गुदाज शरीर पर लेटने का मज़ा ही अलग था.
"मोम मेरा फिर खड़ा हो जाएगा" मैंने उसे चेतावनी दी. "फिर निकालने मे मुश्किल होगी, सुपाड़ा फँसेगा अंदर"
"मैंने कब निकालने को कहा बेटे ऐसे में" मोम ने सिर घुमाकर मुझे चुम्मा देते हुए कहा. मैंने बड़ी आशा से पूछा
"याने माँ, मैं फिर से ..."
"हाँ. एक बार और मार ले मेरी. तुझे इतना अच्छा लगता है, अभी जल्दी मे ठीक से कर भी नही पाया मेरे लाल. अभी मुझे भी ठीक लग रहा है, दर्द नही है" मैं खुशी से मोम के बाल और पीठ चूमने लगा. उसके निपल कड़े थे, वह मस्ती मे थी. खुद ही अपनी एक हाथ अपनी जांघों के बीच चला रही थी. मेरा लंड अब फिर सिर उठाने लगा था और धीरे धीरे मोम के चुतदो की गहराई मे उतार रहा था.
"मोम अब इस बार घंटे भर तक तेरी मारूँगा" मेरी इस बात पर मोम बोली
"मार, दो घंटे मार, पर फिर मेरी बारी है, तुझसे पूरा हिसाब लूँगी" उसके स्वर मे गजब की खुमारी थी.
"तुम कुछ भी करवा लो माँ, मैं तैयार हू" कहकर मैंने मोम की गांद मारना शुरू कर दी. उसके स्तन पकड़े हुए उन्हे दबाते हुए, मोम की पीठ चूमते हुए, बीच मे उसके मुँह को अपनी ओर मोड़. कर उसके चुममे लेते हुए मैंने मज़े ले ले कर मोम की गांद मारी. अब वह मेरे लंड की आदि हो गयी थी इसलिए मस्त लंड फिसल रहा था. हाँ मोम बीच बीच मे मुझे तड़पाने को अपनी गांद सिकोड. लेती तो मेरी स्पीड कुछ कम हो जाती. मैं अब भी पूरे धक्के नही लगा रहा था, आज पहली बार मोम को इतनी तकलीफ़ देना ठीक नही था. हाँ मन ही मन सोच रहा था कि अगली बार से मोम की गांद ऐसे हचक हचक के चोदुन्गा की वह भी क्या याद करेगी. पूरा लंड बाहर निकाल निकाल कर अंदर तक पेलुँगा.
इस बार मुझे पूरा मज़ा मिला, मन भर कर मोम की मखमली नली को मैंने चोदा. मोम गरम होकर अपनी चूत मे खुद उंगली कर रही थी
"अनिल राजा, कितना पानी बह रहा है देख, जब तेरा हो जाएगा तो तुझे पिलावँगी. घंटे भर चुसववँगी तुझसे, बहुत नोचा है तूने मुझे आज" मोम की इस बात पर मैंने उत्तेजित होकर फिर सात आठ धक्के लगाए और झाड़. गया. मोम के उपर से उतर कर मैं बाजू मे हुआ. मोम की गांद का छेद अब खुल सा गया था, अंदर की गुलाबी नली दिख रही थी. मोम तुरंत पलट कर उठ बैठी और मुझे नीचे सुला कर मेरी छाती के दोनों ओर घुटने जमा कर तैयार हो गयी.
"दो तकिये ले ले और नीचे सरक" उसने आदेश दिया. फिर आगे सरक कर अपनी बुर मेरे मुँह पर रखकर बैठ गयी. उसकी बुर से ढेर सारा पानी बह रहा था. मैंने चुपचाप उसे चाटना शुरू कर दिया. मोम मेरा सिर पकड़कर अपनी बुर पर दबाते हुए मुझपर चढ़. बैठी और अपनी जांघों मे मेरे सिर को जकाड़कर हचक हचक कर मेरा मुँह चोदने लगी.
मोम ने उस रात सच मे घंटे भर मुझसे बुर चुसवाई. उसकी वासना शांत ही नही होती थी. जब मेरे मुँहा को चोदते हुए थक गयी तो बिस्तर पर अपनी बगल पर लेट गयी और मेरा सिर अपनी जांघों मे भर कर धक्के मारने लगी. मेरे सिर को वह ऐसे कस कर अपनी जांघों मे पकड़े थी जैसे उसे कुचल देना चाहती हो. मुझे कुछ दुख भी पर उन मदमाती जांघों मे गिरफ्तारी का मज़ा उस दर्द से ज़्यादा था. जब हम सोए तो बिलकुल निढाल हो गये थे. मोम ने सोने के पहले मुझे कहा
"रोज ज़िद मत करना अनिल बेटे, हफ्ते मे एक बार ठीक है तेरा यह गांद मारना, उससे ज़्यादा नही मारने दूँगी" मैं असल मे रोज मारने के ख्वाब देख रहा था पर जब उसने कहा कि काफ़ी दुखाता है तो मैं चुप रहा. मेरे लिए यही बहुत था किवाह बीच बीच मे गांद मरवाने को तैयार थी.
अगले दिन से मोम का ऑफीस शुरू हो गया. दो दिन की धुआँधार चुदाइ के बाद मेरा और मोम का संभोग अब एक अधिक संयम रूप मे चलने लगा. मोम जल्दी वापस आने की कोशिश करती थी पर अक्सर लेट हो जाती थी. थक भी जाती थी इसलिए रोज मैं उसे बस एक बार चोदता. अगर एकाध दिन्वह जल्दी वापस आती तोवह कुछ देर सो लेती थी और फिर रात को उसकी वासना ऐसी निखरती कि उसे शांत करने को मुझे अपना पूरा ज़ोर लगाना पड़ता था. अब मैने दोपहर के अपने खेल भी बंद कर दिए थे. मेरा सारा जोश अब मोम के लिए मैं बचा कर रखता था. मोम के घर आते ही पहला काम मैं यह करता कि जब तकवह कपड़े बदलती, मैं उसकी कांखे चाट लेता. उसे चूम कर उसके गाल और माथे पर आए पसीने को सॉफ कर देता.
रविवार को हमारी रति पूरे ज़ोर मे चलती. हफ्ते भर का संयम उस दिन हम ताक पर रख देते. हम साथ साथ नहाते और तभी से शुरू हो जाते. दोपहर को भी रति पूरे निखार मे होती. एक बार वायदे के अनुसार रविवार रात मोम मुझे अपनी गांद मारने देती. उस मौके की मैं हफ्ते भर राह देखता था. रविवार शाम को हम घूमने जाते थे, शॉपिंग करते थे. मोम ने एक दिन कुछ और ब्रा और पॅंटी भी खरीदी. मुझेवह साथ ले गयी और मेरी पसंद की ली. मुझे थोड़ी शरम लग रही थी, वाहा की सेल्स गर्ल के साथ तरह तरह की ब्रा देखने मे बड़ा अटपटा लग रहा था. दुकान मे बस औरते ही थी. पर मोम ने कोई परवाह नही की, मुझे दिखाकर मेरी पसंद पूछकर दो ब्रा और पॅंटी ली. मैं बाहर आकर बोला तो हँसने लगी.
"यहा कौन हमे पहचानता है!" मोम मे जो बदलाव आया था उसकी मैं पहले कभी कल्पना भी नही कर सकता था. अपने जवान किशोर बेटे के साथ संभोग ने उसकी वासना को निखार दिया था. इतने सालों की भुख्वह मानो एक दिन मे बुझा लेना चाहती थी. मुझपर तो अब्वह इतना प्यार करती कि हद नही. एक मोम की तरह मेरे खाने पीने कपड़ों और सेहत का ख़याल करती, सुबह जल्दी उठाकर खाना बना कर जाती कि मुझे बाहर ना खाना पड़े. फिर प्रेयसी के रूप मे मुझसे इतना अभिसार करती जैसी कोई नववधू भी अपने पति के साथ नही करती होगी.
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