Maa ki Chudai माँ का दुलारा
10-30-2018, 06:07 PM,
#3
RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
माँ का दुलारा पार्ट--2


गतान्क से आगे...............

उस शनिवार रात को मोम देरी से आई. थॅकी हुई थी इसलिए खाना खाकर तुरंत सो गयी. गर्मी के कारण उसके कपड़े गीले हो गये थे इसलिए उसने सारे कपड़े बदलकर बाथरुम मे डाल दिए. मेरी चाँदी हो गयी. मोम के सोने के बाद मैं उसका ब्लओज़, ब्रा और पैंटी उठा लाया. सारे पसीने से तर थे. साथ ही उसने उस दिन पहने हुए हाई हिल के सैंडल भी ले लिए. मोम गहरी नींद मे सोई थी इसलिए चुपचाप उसके बेडरूम से उसके स्लीपर भी उठा लाया. आज तो मानों मुझे खजाना मिल गया था.

उस रात मैंने इतनी मूठ मारी जितनी कभी नही मारी होगी. मोम के कपड़े सूँघे, उन्हे मुँह मे लेकर चूसा कि मोम के शरीर का कुछ तो रस मिल जाए. सैंडल छाती से पकड़े, उन्हे मुँह से लगाया और चूमा, लंड को स्लीपरों के मुलायम स्ट्राइप्स मे फंसाया, चप्पालों के नरम नरम तलवे पर रगड़ा और शुरू हो गया. तीन चार बार झाड़. कर मुझे शांति मिली.

पहले मेरा यहा प्लान था कि तुरंत मैं उठाकर सब चीज़े चुपचाप जगहा पर रख दूँगा. पर दो तीन घंटे के घमासान हस्तमैथुन के बाद उस तृप्ति की भावना के जादू ने मेरी आँखे लगा दीं. ऐसा गहरा सोया कि सुबहा देर से आँख खुली. हड़बड़ा कर उठा तो देखा पास के टेबल पर चाय रखी है. ये कहानी कामुक-कहानियाँडॉटब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम की है याने मोम मेरे कमरे मे आई थी! मैं मूरख जैसा रात को दरवाजा भी ठीक से लगा कर नही सोया था. और मेरे बिस्तर पर मोम के कपड़े और सैंडल पड़े थे. स्लीपर गायब थी. पाजामे मे से लंड भी निकल कर खड़ा था, जैसा सुबहा को होता है. मोम ने ज़रूर देख लिया होगा! अपनी स्लीपर भी उसने पहन ली होगी पर उसे कितना अटपटा लगा होगा कि उसका बेटा उसके कपड़ो और चप्पालों के साथ क्या कर रहा था!

मुझे समझ मे नही आ रहा था कि कैसे मोम को मुँह दिखाउ. आख़िर किसी तरह कमरे के बाहर आया. मोम किचन मे थी. बिना कुछ कहे उसने मुझे फिर चाय बना दी. उसका चेहरा गंभीर था.

मैं किसी तरह चाय पीकर भागा. नहाया और फिर कमरे मे एक किताब पढ़ने बैठ गया. मोम दिन भर कुछ नही बोली, दोपहर को बाहर निकल गयी. उसे ज़रूर बुरा लगा होगा. आख़िर मैं भी क्या कहता!

रात को खाने के बाद मोम ने आख़िर मुझे पूछा "ये क्या कर रहा था तू मेरे कपड़ो और चप्पालों के साथ?"

मैं चुप रहा, सिर्फ़ सिर झुका कर सॉरी बोला. मोम ने और कठोर स्वर मे पूछा. "ये तूहमेशा करता है लगता है! और उस दिन मेरी काली ब्रा नही मिल रही थी. तूने ही ली थी ना? और चंदा बाई भी कपड़े ठीक से नही धोती, मुझे अपनी ब्रा और पैंटी मे एक दो बार कुछ दाग से मिले थे. तूने लगाए क्या ये गंदी हरकते करते हुए?"

मैं चुप रहा. मोम अब मुझे डाँटने लगी. काफ़ी गुस्से मे थी. बोली कि उसे उम्मीद नही थी कि मैं ऐसा करूँगा. ऐसी गंदी आदते मुझे कहाँ से लगीं? और वह भी अपनी मोम के कपड़ो और चप्पालों के साथ? अंत मे गुस्से मे आकर उसने मुझे एक तमाचा भी रसीद कर दिया और फिर मुझे झिंझोड़. कर बोली

"बोल, ऐसा क्यों किया?" मोम ने अब तक कभी मुझे पीटा नही था. मैं रुआंसा होकर आख़िर बोला

"सॉरी मॉम, अब नही करूँगा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो इसलिए ऐसा किया" वह एक क्षण स्तब्ध रहा गयी. कुछ बोलना चाहती थी पर फिर चुप ही रही और अपने कमरे मे चली गयी.

उसके बाद के तीन चार दिन बड़े बुरे गुज़रे. मोम ने मुझसे बात करना ही छोड़. दिया था. ऑफीस से और देर से आती थी और जल्दी सुबह घर से निकल जाती थी. बेडरूम और अलमारी मे ताला लगा देती थी. कपड़े भी धोने को नही डालती थी बल्कि आकर खुद धोती. मेरा भी लंड खड़ा होना बंद हो गया, सारा हस्तमैथुन बंद हो गया. मैने एक दो बार और मोम को सॉरी कहा पर उसने जवाब नही दिया. हाँ उसका कड़ा रूख़ फिर थोड़ा नरम हो गया.

अगले शनिवार को मोम की छुट्टी थी. शुक्रवार को वह जल्दी घर आ गयी. मेरी पसंद का खाना बनाया. मुझसे ठीक से कुछ बाते भी कीं. मैंने चैन की साँस की ली और कान को हाथ लगाया कि अब ऐसा कुछ नही करूँगा. असल मे मैं मोम को बहुत प्यार करता था, एक नारी की तरह ही नही, एक बेटे के तरह भी और उसे खोना नही चाहता था.

रात को मैं अपने कमरे मे पढ़. रहा था तब मोम अंदर आई. उसने गाउन पहन रखा था. सारा मेकअप वग़ैरहा धो डाला था. चेहरा गंभीर था, एक टेंशन सा था उसके चेहरे पर जैसे कुछ फ़ैसला करना चाहती हो. आकर मेरे पास पलंग पर बैठ गयी. मैं थोड़ा घबरा गया, ना जाने क्या बाते करे, फिर डाँटने लगे.

"अनिल, तू बड़ा हो गया है, तेरी कोई गर्ल फ़्रेंड नही है?" उसने मेरे बालों मे हाथ चलाकर पूछा.

"नही माम, मुझे कोई लड़की अच्छी नही लगती आज कल" मैंने कहा.

"तो फिर क्या अच्छा लगता है?" उसने पूछा. ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया.

"तुम बहुत अच्छी लगती हो ममी, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हू" कहने के बाद फिर मैंने अपने आप को कोस डाला कि ऐसा क्यों कहा. मोम फिर नाराज़ हो गयी तो सब गड़बड़. हो जाएगा.

"अरे पर मैं तेरी मॉं हू. तू भी मुझे अच्छा लगता है पर एक बेटे की तरह. मोम के बारे मे ऐसा नही सोचते बेटे जैसा तू सोचता है" मोम ने मेरे चेहरे पर नज़र गढ़ाकर कहा. आज बात कुछ और थी. मोम शायद मुझसे सब कुछ डिस्कस करना चाहती थी. मैंने साहस करके कहा डाला.

"मैं क्या करूँ माँ, तुम बहुत सुंदर हो, मुझसे रहा नही जाता"

"अरे तूने ही कहा तेरी गर्ल फ़्रेंड नही हैं, तूने और किसी को देखा ही नही है. और मान भी ले कि मैं तुझे अच्छी लगती हू तो यहा तेरा वहम है. आख़िर मेरी उमर हो चली है, मोटी भी हो गयी हम. तेरे जैसे जवान लड़के को तो कमसिन युवतियाँ भानी चाहिए, मुझा जैसी अधेड़ औरते नहीं" मोम ने गंभीर स्वर मे कहा.

"नही माँ, मुझे उनमे कोई दिलचस्पी नही है. तुम नही जानती तुम कितनी खूबसूरत हो. पर मैं तेरा दिल नही दुखाना चाहता ममी, अब मैं कोई गंदी बात नही करूँगा, ठीक से रहूँगा." मैं अपनी बात पर अड़ा रहा. मोम झल्ला कर उठ कर खड़ी हो गयी. उसने एक निश्चय कर लिया था शायद.

"कैसा मूर्ख लड़का है, समझता ही नही मैं क्या कहा रही हू. तू नादान है, आज तुझे समझाना ही पड़ेगा. इस बात का निपटारा मैं आज ही करना चाहती हू कि तू कम से कम अपना यहा पागलपन तो बंद करे. तू फिर शुरू हो जाएगा मैं जानती हू, ऐसी चीज़ों की आदत जल्दी नही जाती. तू बस मेरा चेहरा देखता है और वो तुझे अच्छा लगता है. माना की मेरी सूरत अच्छी है पर शरीर तो बेडौल हो गया है. चल आज तुझे दिखाती हू, फिर शायद तेरा यहा वहम दूर हो जाए." उसने दरवाजा बंद किया और अपना गाउन उतारने लगी. मैं हक्का बक्का देखता ही रहा गया. मोम ने मेरे चेहरे से नज़र हटाकर दूसरी ओर देखते हुए गाउन उतार दिया और बोली

"देख, कैसी मोटी और बेढब हू. अब बोल कि तुझे अच्छी लगती हू" उसके चेहरे पर एक कठोरता सी आ गयी थी. मोम अब सिर्फ़ ब्रा और पैंटी मे मेरे सामने थी. आज उसने अपने अच्छे मादक अंतर्वस्त्रा नहीं, एक पुरानी काटन की ब्रा और बड़ी सी पुरानी सफेद पैंटी पहन रखी थी. शायद यहा सोच रही थी कि अगर मैं सादे पुराने अंतर्वस्त्रों मे लिपटे उसके मध्यमवाइन शरीर को देखूँगा तो मेरी चाहत अपने आप ठंडी हो जाएगी. ऐसा करने मे उसे कितनी मनोवयता हुई होगी, मैं कल्पना कर सकता था. आख़िर कौन औरत खुद ही किसी से अपने आप को बेढब कहलवाने की ज़िद करेगी.

पर हुआ उल्टा ही. मोम का अर्धनगञा शरीर मेरे मन मे ऐसी मतवाली हलचल पैदा कर गया कि इतने दिनों बाद मेरा लंड फिर सिर उठाने लगा. मोम नही जानती थी कि मैं अच्छी तरह से इस बात से वाकिफ़ था कि मोम का शरीर मांसल और भरा हुआ है. वह यह भी नही जानती थी कि उसका भरा पूरा मोटा सा शरीर उसका आकर्षण मेरे लिए और बढ़ा देता था.

मैं मन भर कर मोम के अर्धनगञा रुप को देखने लगा. उसकी जांघे अच्छी मोटी थी पर एकदमा चिकनी और गोरी. पैंटी बड़ी होने से और कुछ नही दिख रहा था पर चौड़े कूल्हे और भारी भरकम नितंबों का आकार उसमे से दिख रहा था. पेट भी थोड़ा थुलथुल था पर उस गोरी चिकनी त्वचा और कमर मे पड़ते मासल बलों से वह बाला की मादक लग रही थी. गोरे गोरे फूले हुए पेट मे गहरी नाभि उसके इस रूप को और मतवाला कर रही थी. पुरानी ढीली ढाली ब्रा मे उसके स्तन थोडे लटक आए थे पर उन माँस के मुलायामा गोलों को देखकर ऐसा लगता था कि अभी इन्हे चबा कर खा जाउ. लंबी गोरी बाँहे तो मैं कई बार देख चुका था पर इस अर्धनगञा अवस्था मे भी और सुंदर लग रही थीं. चिकने भरे हुए कंधे जिनपर ब्रा के स्ट्रैप लगे हुए थे! क्या नज़ारा था. मोम मूडी तो सिर्फ़ ब्रा के स्ट्रैप से धकि उसकी गोरी चिकनी पीठ भी मुझे दिखी. मोम बाजू मे नज़र करके एक बार पूरी घुमा कर मुझसे बोली.

"देख लिया अपनी अधेड़. मोम को? अब तो तसल्ली हुई कि मुझमे ऐसा कुछ नही है जो तुझे भाए. देख मैं कितनी मोटी हो गयी हू, नीचे का भाग देख, बिलकुल कितना चौड़ा और मोटा हो गया है" मैं कुछ ना बोला, बस उसे देखता रहा. मेरी चुप्पी पर झल्ला कर वह बोली

"अरे चुप क्यों है, कुछ बोल ना? वैसे इतना पटारे पाटर बोल रहा था, अब साँप सूंघ गया क्या"" कहकर उसने मेरी ओर देखा तो देखती रह गयी. मेरा लंड अब तन कर खड़ा था और इतना तना था कि पाजामे के ढीले बटन खोल कर बाहर आ गया था. उसकी नज़र लंड पर पड़ी और वह आश्चर्या से उसकी ओर देखने लगी. धीरे धीरे उसके चेहरे की कठोरता कम हुई और एक अजीब ममता और चाहत उसकी आँखों मे झलकने लगी. उसने मेरे चेहरे की ओर देखा. उसमे उसे ज़रूर तीव्र चाहत और प्यार दिखा होगा.

"लगता है कि सच मे मैं तुझे अच्छी लगती हू! मुझे लगा था कि ..." अपनी बात पूरी ना कर के मोम आकर मेरे पास बैठ गयी. उसकी आँखे मेरे लंड पर से हट ही नही रही थी. मैं भले ही यहा खुद कह रहा हू पर मेरा लंड काफ़ी सुंदर है, गोरा और कसा हुआ, भले ही बहुत बड़ा ना हो, फिर भी करीब करीब साढ़े पाँच- छः इंच का तो है ही.

मोम ने अचानक झुक कर मेरा गाल चूमा लिया. उसका चेहरा अब गुलाबी हो गया था, खिल कर उसकी सुंदरता मे और चार चाँद लगा रहा था. मेरे कुछ ना कहने पर भी उसने भाँप लिया था कि वह मुझे कितनी अच्छा लगती थी. और एक औरत के लिए इससे बड़े कामपलिमेंट और क्या हो सकता है, ख़ास कर जब वह खुद अपनी सुंदरता के प्रति आश्वस्त ना हो. मेरा लंड अब ऐसा थारतरा रहा था जैसे फट जाएगा. इतनी खुमारी मैंने जिंदगी मे कभी महसूस नही की थी.

"कितना प्यारा है! तू सच मे बड़ा हो गया है बेटे" मोम मेरे पास सरककर बोली. फिर उसने अपना हाथ बढ़ाया और हिचकते हुए मेरा लंड मुठ्ठी मे पकड़. लिया. वह ऐसे डर रही थी जैसे काट खाएगा.

"कितना सूज गया है! तुझे तकलीफ़ होती है क्या?" उसकी हथेली के मुलायम स्पर्श से मैं ऐसा बहका कि अचानक एक सिसकी के साथ मैं स्खलित हो गया. वीर्य की फुहारे लंड मे से निकलने लगीं. मोम पहले चौंक गयी और अपना हाथ हटा लिया पर मैंने तड़प कर उससे लिपटाते हुए कहा.

क्रमशः..............................
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RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा - by sexstories - 10-30-2018, 06:07 PM

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