Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
09-03-2018, 09:17 PM,
RE: Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला
रखी भाभी मस्त रहती हैं. उन्होने अपने बदन के लिए कुच्छ ख़ास नही किया. बस मम्मो को हमेशा ब्रा मे रखती हैं. कहती हैं अभी नही संभाले तो झूल जाएँगे. आजकल सेक्स के समय भी ब्रा पहेन के करती हैं. बस चूचे बाहर निकाले चुस्वाए और फिर अंदर कर लिए. पर बाबूजी के साथ पूरी नंगी होके करती हैं. उनसे अपनी घुंडीयाँ भी खूब मस्वाति हैं. जब कभी सुजीत भैया ऑब्जेक्षन करते हैं तो कहती हैं कि जिस ससुर से शादी से पहले ही चुस्वा लिए उसे नंगी होके ही करवाउंगी. मिन्नी भाभी की तरह उनकी चूत के होंठ भी फूल गए हैं पर अभी भी काफ़ी गोरे से लगते हैं.

सखी भाभी का बदन अब भर गया है. चूचे भी थोड़े बड़े हो गए हैं. उन्हे फॅशन का पूरा ग्यान है. दिन मे 2 या 3 बार कपड़े बदल लेती हैं. हेर स्टाइल बदल लेती हैं. मुझे सबसे ज़ियादा मज़ा तब आता है जब सुजीत भैया के उपर वो उच्छलती हैं. भैया का लंड जिसका की बखान मैं पहले कर चुकी हूँ वो जब जड़ तक उनकी चूत को फैलाता है तो मैं तो हमेशा हैरान हो जाती हूँ. सखी भाभी की चूत रस की महक भी बहुत अलग है और स्वाद भी. उनकी चूत चाटना मतलब अपनी चूत को लंड के लिए तैयार करना. मेरी कछि इतनी बुरी तरीके से भीगति थी कि अब तो उनकी चूत को मूह मारने से पहले मैं कछि उतार देती हूँ. उनकी चूत काली है पर अंदर से एक दम पिंक. और उनके धारे 1 फुट तक फुवारे की तरह निकलते हैं. जैसे की मूत रही हों. कम्मो और मैं कई बार मूत जैसा चूत रस अपने मम्मो पे लिया है.

कम्मो मे भी फरक आ गया है. अब वो पहले से अधिक आक्टिव हो गई है. उसपे भी 24 घंटे चुदास छाई रहती है. दिन मे उसका लंच तो आंटी जी की चूत है. नाम के लिए खाना खाती हैं दोनो. उनको मौका मिले तो 3 समय के दूसरे का चूत रस ही पीती रहे. लंड लेने मे उसको मज़ा आता है पर अगर कोई चूत मूह पे हो तो जैसे सोने पे सुहागा हो जाता है. इस मामले मे भी बाबूजी ही लकी हैं. जब बाबूजी कम्मो की लेते हैं तो बस वही लेते हैं. कोई दूसरा लंड डाले तो डाले पर उनके और कम्मो के बीच दूसरी चूत तब आएगी जब वो पर्मिशन देंगे. 3नो बहुएँ और आंटी इस बात पे अक्सर उन्हे छेड़ देती हैं. 

खैर अब बहुत हुआ लंड बखान और चूत कथा. 3 दिन मे बच्चो का नामकरण है. बाबूजी ने एक रिज़ॉर्ट मे बुकिंग करवाई है. ये वही रिज़ॉर्ट है जहाँ सब गए हुए थे और पिछे से बाबूजी ने मेरी, कम्मो और हमारी सहेली शारदा का भोग किया था. कल बड़ी भाभी को कहते हुए सुना कि बाबूजी आपको हमारी शर्तें याद हैं. बाबूजी ने भी उनकी चुम्मि लेते हुए कहा था कि काम हो जाएगा. अब मेरी तो हिम्मत नही है कि मैं किसी से पुच्छू तो अब सिर्फ़ इंतेज़ार ही करना होगा.

तो जैसे मैं कर रही हूँ ...आप भी कीजिए.......

''मुन्नी ओ मुन्नी....कहाँ रह गई ये.....अर्रे इधर आओ....मेरी सिल्क वाली धोती कहाँ रखी है....और उसका कुर्ता....?'' बाबूजी की उँची आवाज़ सुन के मैं झट से राखी भाभी को छोड़ के उनके कमरे की तरफ भागी. पीछे से भाभी बोली जल्दी आना मेरा काम बाकी है. जल्दी जल्दी मे मैने ब्रा भी नही पहनी थी. निपल अभी भी खड़े थे और उनपे राखी भाभी की चूत रस का गीलापन अभी भी बना हुआ था. दरअसल पिच्छले 4 दिन से भाभी रोज़ मेरे लंबे नोकिले निपल्स को चूस के खड़ा करती हैं और फिर निपल्स से अपनी चूत के दाने को रगडवा के झर जाती हैं. फिर यही प्रोसेस वो मेरे साथ रिवर्स करती हैं. कहती हैं प्रॅक्टीस करनी है. पता नही क्या माजरा है. एक दो बार उन्होने संजय भैया को बुलवा के शामिल किया. उनका लंड मेरी चूत मे डलवाया और फिर नज़दीक जगह बना के निपल से मेरे चूत के दाने को छेड़ती थी. भैया को कहती थी कि देवेर्जी सिर्फ़ गांद गोल घूमना....सतसट धक्के नही लगाने. खैर मुझे क्या. एक नया सेक्स का खेल था और मैं पूरा मज़ा ले रही थी.

''अर्रे मुन्नी मेरा सिल्क वाला कुर्ता और धोती कहाँ हैं ? कब से ढूँढ रहा हूँ.'' बाबूजी थोड़ा झल्लाए हुए थे. मेरी नंगी चूचिओ पे ध्यान ही नही दिया. मैने चुप से उनकी आल्मिराह के उपर वाले शेल्फ से पॅकेट निकाल के दिया. पॅकेट खोल को चेक किया और फिर उनके चेहरे पे चमक आ गई. '' अर्रे वाह ....शुक्र है मिल गई....पता है ये मेरे दोस्त ने मुझे गिफ्ट दी थी. उसकी पहली सॅलरी से खरीदी हुई. बहुत जिगरी है मेरा. आ रहा है फंक्षन मे वो और उसकी बीवी. उसको दिखाउन्गा कि इतने साल बाद भी संभाल के रखी है....'' बाबूजी किसी छोटे बच्चे की तरह उतावले हो गए. फिर मेरी तरफ देखा. तब उन्होने मेरी चूचिओ पे नज़र डाली. मैं खड़ी खड़ी उनके बच्चे जैसे बिहेवियर को देख के मुस्कुरा रही थी.

''क्यो मुस्कुरा रही है ऐसे ? और ये तेरी चूची पे गीला गीला क्या है ? किससे चुस्वा के आई है....?'' बाबूजी ने पॅकेट साइड मे रखा और बेड पे बैठ गए और मुझे गोद मे ले लिया. बैठते के साथ ही मुझे सलवार के उपर से गान्ड पे सुरसूराहट महसूस हुई. बाबूजी का लंड रगड़ ख़ाता हुआ खड़ा हो रहा. मैं मुस्कुरा दी और फिर मैने थोड़ा साइड होके अपने को अड्जस्ट किया. उनकी गर्दन के करीब एक चुम्मि ली. इतने मे वो सलवार का नाडा खोल के अपनी जुड़ी हुई उंगलिओ से मेरी चूत की लकीर को सहलाने लगे.

''आपको बच्चे की तरह उतावला देख के मुस्कुराइ........45 साल का बच्चा.....जैसे खिलोना मिल गया हो......और ये किसी से चुस्वाई नही है.....ये थूक नही है....ये राखी भाभी का चूत रस है...आजकल रोज मेरी घुंडीओ से अपना दाना रगड़वाती हैं....आप भी ना बाबूजी......कितने मज़े आ रहे थे...इतनी सी बात के लिए मुझे बच्चों जैसे बुला लिया.......उउंम्म...उउउइंाआ...'' बच्चों वाली बात सुन के उन्होने ज़ोर से जुड़ी हुई उंगलियाँ मेरे दाने पे रगड़ दी. एक दम से मैं छूटने के कगार पे आ गई. पर वो समझ गए और झट से प्रेशर कम कर दिया. पर मैं क्या करती मैने भी चूत आगे उठा दी ताकि उंगली से कॉंटॅक्ट बना रहे. अब मेरी तड़प देख के हँसने की बारी उनकी थी.

''इस बच्चे को भूख लगी है....इसे दूध पिलाओ ताकि इसकी भूख ख़तम हो....'' बस उनकी बात को पूरा होने से पहले ही मैने अपना लेफ्ट मम्मा उनके मूह मे ठुस दिया. करीब 30 सेकेंड तो उन्होने चूसा फिर मेरे निपल को काटने लगे. मेरी सिसकारियाँ निकल गई. ''चूसो बेटा........काटो नही....दूध तो चूसने से निकलेगा.....आआआहह....''मेरे चूतड़ उच्छल उच्छल के उनकी उंगली से चूत को झड़ाना चाहते थे. पर वो फुल तड़पाने के मूड मे थे. 2 सेकेंड को छेड़ते और फिर हटा देते. फिर छेड़ते और फिर हटा देते.

''अर्रे समधी जी आप यहाँ इस छिनाल को चूसने मे मगन हैं. उधर हलवाई का फोन आया है. उसके आदमी मिठाई लेके कभी भी आने वाले होंगे....जल्दी से तैयार हो जाइए.....पता नही क्या भूत है आपकी धोती मे जब देखो उच्छलता रहता है.....और तू निगोडी यहाँ से चल और कपड़े पहेन....बाज़ार जाना है.......उफ़फफूऊओ अब उसे छोड़ोगे ....और मुझे मत पकडो ..मैं अभी तैयार हुई हूँ...अभी कोई मूड नही है .....चल मुन्नी...साली ....सब की सब एक जैसी चुदास हैं....कल फंक्षन है और किसी को कोई ख़याल नही है तैयारी का.....सारा काम मेरे सिर डाल दिया है......'' सरला आंटी हमारे सिर पे खड़ी होके चिल्ला रही थी. मेरा निपल अभी भी बाबूजी के मूह मे था पर उनका हाथ अब सरला आंटी की गान्ड की चिकोटी ले रहा था. निपल चूस्ते चूस्ते वो फिर बच्चे की तरह मुस्कुरा रहे थे. 
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