RE: Desi Chudai Kahani मकसद
किसी पुलिसिए ने उसे रोकने का उपक्रम न किया ।
“क्या बात हो रही थी ?” मैं यादव की ओर घूमकर बोला ।
“इसके बयान की बात हो रही थी ।” यादव मधु की ओर इशारा करता हुआ बोला, “मैं कह रहा था कि मुझे इसके बयान पर एतबार है ।” वो एक क्षण ठिठका और फिर सख्ती से बोला, “सिवाय एक बात के ।”
“वो क्या बात हुई ?”
“सिवाय इस बात के कि कत्ल इसने नहीं किया । मेरा कहना ये है कि जो रिवॉल्वर इसने वजीराबाद के पुल से जमना में फैंकी है, वो ही मर्डर वैपन था ।”
“और कत्ल आठ अट्ठाईस पर हुआ था ।”
“जाहिर है । टूटी घड़ी इस बात की गवाह है । ये कहती है कि ये साढ़े सात बजे यहां आई थी जो कि नहीं हो सकता । ये जरूर यहां साढ़े आठ के आसपास आई थी जबकि इसने मकतूल पर गोलियां बरसाई थीं और रिवॉल्वर वजीराबाद के पुल पर जाकर नदी में फेंक दी थी ।”
“करीब के बस अड्डे वाले नए पुल पर जाकर क्यों नहीं ? जरा और आगे जमना बाजार वाले पुराने पुल पर जाकर क्यों नहीं ?”
“गई थी ये उन दोनों जगहों पर लेकिन क्योंकि वहां रश था इसलिए इसे वजीराबाद वाले सुनसान पुल पर जाना पड़ा था ।”
“वजीराबाद से ये फ्लैग स्टाफ रोड अपनी बहन के घर गई थी जहां कि ये पन्द्रह-बीस मिनट ठहरी थी । वहां से से चलकर साढ़े नौ बजे ये बाराखम्बा अपने होटल में पहुंच गई थी । कबूल ?”
“हां । हम तसदीक कर चुके हैं इन बातों की ।”
“बढ़िया । तो अब । तुम मुझे ये बताओ, इंस्पेक्टर साहब, कि साढ़े आठ बजे यहां कत्ल करने के वक्त से लेकर साढ़े नौ अपने घर भी पहुंच गई होने वाली ये लड़की इतने ढेर सारे कामों को एक घंटे में कैसे अंजाम दे पाई ? यहां से कत्ल करके, उसके बाद दो पुलों को आजमाकर वजीराबाद के तीसरे पुल पर पहुंचने में ही इसे घंटा लग गया होता । साढ़े नौ बजे तो ये यूं अभी वजीराबाद के पुल पर ही होती । उस वक्त तो ये वहां से मीलों दूर अपने होटल के अपार्टमेंट में पहुंची हुई थी । और अभी पन्द्रह-बीस मिनट इसने रास्ते में अपनी बहन के घर भी गुजारे थे ?”
यादव सोच में पड़ गया ।
“इसका साफ मतलब ये है” मैं बोला, “कि या तो कत्ल इसने नहीं किया, या फिर कत्ल साढे आठ बजे नहीं हुआ ।”
“कत्ल तो साढे आठ बजे ही हुआ है ।” यादव सिर हिलाता हुआ बोला, “वो घड़ी की शहादत बहुत मजबूत है ।”
“तो फिर ये बेकसूर है ।”
“जितना कुछ इसने किया, कैसे किया ?”
“वैसे ही जैसे ये कहती है कि किया ।”
“लेकिन.....”
“यादव, इस बाबत बात करने से पहले मैं तुम्हारे से शूटिंग का पैट्रन डिसकस करना चाहता हूं जिसे कि तुम इस केस का बेसिक क्लू मानते हो ।”
“उस बारे में क्या कहना चाहते तो ?”
“इजाजत दो तो उसके लिए हम स्टडी में चलें । मौकाएवारदात पर तुम मेरी बात बेहतर समझ पाओगे ।”
यादव कुछ क्षण मुझे घूरता रहा, फिर उसने सहमति में सिर हिलाया ।
हम सब स्टडी में पहुंचे ।
“तुमने मर्डर वैपन के लिए यहां की तलाशी ली थी ?” मैं बोला ।
“यहां की क्या, पूरी कोठी की तलाशी ली थी ।” यादव बोला ।
“कम्पाउंड की भी ?”
यादव खामोश रहा ।
“यानी कि नहीं ली । मेरे ख्याल से तो तुम्हें कम्पाउंड क्या क्या इमारत के आसपास सड़क और गलियों को भी मर्डर वैपन के लिए खंगालना चाहिए था । कम्पाउंड की तलाशी तो जरूर ही लेनी चाहिए थी । पेड़ों से और सौ तरह के झाड़-झखाड़ से भरा इतना बड़ा कम्पाउंड है वो....”
“जा के सारे कम्पाउंड को खंगालो ।” यादव ने तत्काल दोनों सिपाहियों को आदेश दिया, “जीप में बैठे हवालदार को भी बुला लो । मैटल डिटेक्टर लेकर कम्पाउंड के चप्पे-चप्पे की तलाशी लो । चलो ।”
दोनों सिपाही तत्काल बाहर को दौड़े ।
“वो सामने” फिर यादव बोला, “उस एग्जिक्यूटिव चेयर पर लाश पड़ी पाई गई थी । यहां से बस सिर्फ लाश ही हटाई गई है । बाकी सब कुछ वैसे का वैसा ही है । उस एटलस वाली घड़ी तक को नहीं छेड़ा गया है । कलमदान का टूटा होल्डर, घुडसवार का उड़ा सिर, वो भागते घोड़ों वाली बाईं दीवार पर टंगी तस्वीर, वो टूटा हुआ वाल लैम्प, सब जस के तस हैं । हमारे बैलिस्टिक एक्सपर्ट का कहना है कि शूटिंग के वक्त कातिल यहां, इस जगह खड़ा था जहां कि इस वक्त मैं खड़ा हूं । शूटिंग का पैट्रन साफ जाहिर कर रहा है कि ये किसी औरत का काम है ।”
“महज इसलिए क्योंकि गोलियां बहुत बिखरे-बिखरे अंदाज में चली हैं ?”
“हां ।”
“यूं गोलियां कोई ऐसा शख्स भी तो चला सकता है जो कि डोप एडिक्ट हो और उस घड़ी किसी नामुराद माडर्न नशे की तरंग में हो ! ऐसा शख्स भी तो चला सकता है जो टुन्न हो । ऐसा शख्स भी तो चला सकता है जो अपाहिज हो और जिसे अपनी मूवमेंट्स पर मुकम्मल कंट्रोल न हो !”
“मेरा एतबार औरत पर है ।” यादव जिद-भरे स्वर में बोला, “बाईस कैलीबर की रिवॉल्वर पर है जो कि जनाना हथियार है ।”
“कोल्ली” दरवाजे के पास से मदान चिढे स्वर में बोला, “इसे समझा कि जनाना हथियार अगर मर्द इस्तेमाल करे तो उस पर बिजली नहीं गिर पड़ती ।”
“फोन हो गया ?” मैं उसकी तरफ घूमकर बोला ।
“हां ।” वो भन्नाया ।
“माथुर साहब के यहां ही था वो ?”
“हां ।”
“आ रहा है ?”
“हां ।”
“गुड ।” मैं फिर यादव की तरफ आकर्षित हुआ, “तुम्हारे ख्याल से चलाई गई छ: गोलियों में से कौन-सी मकतूल को लगी होगी ?”
“कोई भी लगी हो सकती है ।” यादव लापरवाही से बोला, “जब तमाम की तमाम गोलियां एक के बाद एक आनन-फानन चलाई गई थीं तो क्या पता कौन-सी गोली मकतूल को लगी !”
“हो सकता है पहली ही लगी हो ?” मैं सहज स्वर में बोला ।
“हो सकता है ।”
“और कातिल को बखूबी मालूम हो कि उस पहली ही गोली ने उसका काम भी तमाम कर दिया था !”
“ये कैसे हो सकता है ? फिर उसने बाकी गालियां क्यों चलाई ?”
“कोई तो वजह होगी । मसलन हो सकता है कि वाल लैम्प को गोली उसने इसलिए मारी हो ताकि यहां अंधेरा हो जाए और कोई उसे देख न सके ।”
यादव ने यूं अट्ठहास किया जैसे उसे मेरी अक्ल पर तरस आ रहा हो ।
“इस काम के लिए गोली चलाने की क्या जरूरत थी, मेरे भाई” वो बोला, “ये काम तो स्विच बोर्ड से पर से वाल लैम्प का स्विच ऑफ करने से भी हो सकता था ।”
मैं खामोश रहा ।
“यूं तो” यादव बोला, “बाकी गोलियां चलाई जाने की भी ऐसी वाहियात वजह सोच सकते हो तुम । कलमदान पर गोली उसने इसलिए चलाई क्योंकि उसे तालीम से नफरत थी । घुड़सवार का सिर इसलिए उड़ा दिया क्योंकि रेसकोर्स में कभी उसका घोड़ा नहीं लगता था इसलिए उसे घोड़ों से खुंदक थी ।”
“घड़ी के बारे में कुछ नहीं कहा ?”
“वो तुम कह लो, भई ।”
“मुमकिन है घड़ी को कातिल ने अपना गवाह बनाने के लिए शूट किया हो ।”
“क्या मतलब ?” यादव तीखे स्वर में बोला ।
“उसने घड़ी की सुइयां पहले आगे सरका दी हों और फिर घड़ी को गोली मारके इसलिए तोड़ दिया हो ताकि वो उस आगे सरकाए गए वक्त पर रुक जाए । हमेशा के लिए ।”
यादव ने मुझे घूरकर देखा । मैंने उसके घूरने की परवाह नहीं की ।
“तुम्हारा मतलब है” फिर वो संजीदगी से बोला, “कि जो वक्त घड़ी बता रही है, कत्ल उस वक्त नहीं हुआ ?”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता ? टूटी घड़ी आठ अट्ठाईस पर खड़ी पाई गई तो समझ लिया गया कि कत्ल उसी वक्त हुआ । तुम्हारा मैडिकल एक्सपर्ट कत्ल का वक्त सात और नौ के बीच में बताता है । ये क्यों नहीं हो सकता कि कत्ल सात बजे हुआ हो या साढ़े सात बजे हुआ हो और किसी ने अपनी प्रोटेक्शन के लिए घड़ी को आगे बढाकर उसे उस वक्त पर तोड़ दिया हो ताकि उसे अपनी हिफाजत के लिए एलिबाई हासिल हो सके ।”
“यूं तो तुम कहोगे कि कातिल ने घड़ी जानबूझकर तोड़ी ।”
“मैं जरूर कहूंगा ।”
“बाकायदा निशाना ताक कर ?”
“हां ।”
“लेकिन शूटिंग का बिखरा-बिखरा पैटर्न....”
“बिखेरा-बिखेरा कहो, यादव साहब ।”
“क्या मतलब ?”
“एक बात बताओ । पुलिस की नौकरी में सब-इन्स्पेक्टरी की ट्रेनिंग के दौरान शूटिंग भी तो सिखाई जाती होगी ?”
“हां ।”
“तुम्हें भी सिखाई गई होगी ?”
“जाहिर है ।”
“यानी रिवॉल्वर से शूटिंग का इत्तफाक आम हुआ होगा ?”
“हां । कहना क्या चाहते हो ?”
“कभी आंख बंद करके रिवॉल्वर चलाई ?”
“वो किसलिए ?”
“जवाब दो । चलाई ?”
“नहीं । मैं क्या पागल हूं ?”
“मैंने चलाई । आज ही चलाई ।”
“आंखें बंद करके रिवॉल्वर ?” वो सकपकाया ।
“हां । आंखें बंद करके दस गोलियां मैने शूटिंग टार्गेट्स पर चलाई तो मेरी एक भी निशाने पर नहीं लगी ।”
“कहां ? कब ?”
मैंने हालात बयान किए ।
“मतलब क्या हुआ इसका ?” यादव माथे पर बल डाल कर बोला ।
“मेरा तुम्हारे से जो सवाल है वो ये है यादव साहब कि जब मैंने आखें बंद करके गोलियां चलाई तो मेरी एक भी गोली किसी टारगेट से नहीं टकराई तो फिर तुम्हारा वो कथित हत्यारा, वो आंखें मींचकर फायर करने वाली कोई औरत क्योंकर इतनी खुशकिस्मत निकली कि उसकी हर गोली, ध्यान रहे हर गोली, किसी न किसी टारगेट से जाकर टकराई ?”
तत्काल यादव के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।
“मैंने इस बाबत बहुत सोचा ।” मैं बोला, “मेरी सोच का यही नतीजा निकला कि निशाना लगाना मुश्किल होता है, निशाना चूकना आसान होता है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि निशाना लगाने के लिए उपलब्ध जगह बहुत सीमित होती है लेकिन निशाना चूकने के लिए उपलब्ध जगह बहुत ढेर सारी होती है । जिन बत्तखों, कबूतरों का का निशाना मैं लगाने की कोशिश मैं माथुर के शूटिंग रेंज पर कर रहा था, वो नन्हें-नन्हें थे लेकिन उनके पीछे दीवार पर ढेरों जगह उपलब्ध थी जहां कि कहीं भी जाकर गोली धंस सकती थी इसीलिए आंखें खोलकर या बगैर खोले, मेरी चलाई हर गोली टारगेट को मिस करके पीछे दीवार में जाकर धंसी । कहने का मतलब ये है कि अगर कातिल ने, फर्ज करो मधु ने ही, आखं मींचकर रिवॉल्वर का रुख मकतूल की तरफ करके गोलियां चलाई होतीं तो क्या तमाम की तमाम गोलियां पीछे दीवार में या छत में न जा धंसी होती । इतना दक्ष निशाना, इतना परफेक्ट निशाना, वो भी एक बार नहीं, पूरे छ: बार इतने छोटे-छोटे टारगेट कैसे बींध सकता है ।”
“दीवार पर टंगी घोड़ों वाली तस्वीर छोटी नहीं है ।”
“कबूल, लेकिन गोली देखो तस्वीर में कहां लगी है ? फ्रेम में नहीं । तस्वीर के किसी कोने खुदरे में नहीं । बल्कि ग्रुप में दौड़ते सबसे अगले घोड़े के ऐन माथे के बीच !”
“ओह !”
“बाकी निशानों की बानगी देखो । चार होल्डरों में से एक होल्डर । घुड़सवार का सिर । वाल लैम्प । घड़ी का फेस । मकतूल का दिल ! ये सब बेमिसाल निशानेबाजी के नमूने हैं यादव साहब । ऐसी शूटिंग कोई अनाड़ी, और वो भी आंख बंद करके, कर ही नहीं सकता । तुम कहोगे इत्तफाक । लेकिन ऐसा इत्तफाक एकाध बार होना कबूल किया जा सकता है, आधी दर्जन बार नहीं । छ: में से छ: बार ऐसा सच्चा निशाना लगाना इत्तफाक नहीं, करिश्मा है और ऐसा कोई करिश्मा कोई पक्का निशानेबाज, कोई क्रैक शॉट ही कर सकता है ।”
कोई कुछ न बोला ।
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