RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“डांट टाक नानसेंस । वो सिडेटिव के असर में थे, वो...”
“आपने अपनी आंखों से उन्हें गोली खाते देखा था ? अपनी आंखों से उन्हें गोली हाथ से मुंह में हस्तांतरित करते देखा था ?”
“इतना ध्यान कौन करता है ! मैंने तो उन्हें गोली थमाई थी, पानी का गिलास थमाया था और फिर बैडरूम की फालतू बत्तियां बुझाने लगी और खिड़कियों के परदे ठीक करने लगी थी ।”
“यानी कि वो चाहते तो गोली खाए बिना गोली खा ली होने का बहाना कर सकते थे ।”
“लेकिन उन्हें जरूरत क्या थी वैसा करने की ?”
“उन्हें सिडेटिव आपने खेतान की फोन कॉल आने से पहले दिया था या बाद में ?”
“बाद में ।”
“उन्हें खेतान की फोन कॉल की खबर लगी होगी ?”
“घंटी तो जरूर सुनी होगी । आखिर बगल का ही तो कमरा है उनका ।”
“कॉल से निपटते ही आप उन्हें सिडेटिव देने पहुंच गई ?”
“हां ।”
“उन्होंने पूछा था कॉल किसकी थी ?”
“नहीं ।”
“वो आप पर शक करते हैं ?”
“हर उम्रदराज हसबैंड अपनी नौजवान बीवी पर शक करता है लेकिन अगर आप ये समझते हैं कि माथुर साहब सिडेटिव की गोली न खाकर पहले नींद का बहाना करने लगे होंगे और फिर मेरे कोठी से निकलने के बाद व्हील चेयर पर सवार होकर मेरे पीछे लग गए होंगे तो जरूर आपका दिमाग खराब है ।”
“कोठी से निकलने के वाद” मैं अपनी ही झोंक में बोलता रहा, “आपको अपने वाकिफकार ड्राइवर वाली टैक्सी तलाश करने में कितना टाइम लगा था ?”
“मेरी उम्मीद से बहुत ज्यादा । पूरे दस मिनट बल्कि उस से भी ज्यादा ।”
“फ्लैगस्टाफ रोड से मैटकाफ रोड का फासला तो कुछ खास नहीं है । पांच मिनट में टैक्सी पहुंच गई होगी वहां रात के वक्त !”
“हां ।”
“पहुंची आप साढ़े आठ के बाद वहां ।”
“मिस्टर कोहली, फार गाड सेक, कम क्लीन क्या कहना चाहते हो ?”
“यही कि माथुर साहब के पास मैटकाफ रोड जाकर लौट आने के लिए बहुतेरा वक्त था ।”
“ब्रेवो !” वो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली, “माथुर साहब मिल्खासिंह हैं न जो वो लपककर वहां पहुंचे, वहां शशिकांत पर गोलियां बरसाईं और लपककर वापस लौट आए ! फाइन डिटेक्टिव यू आर, मिस्टर कोहली ।”
मैं बहुत धृष्टता से मुस्कुराया ।
“अभी आप खुद कह रहे हैं कि मरने वाले पर जो छ: गोलियां चलाई गई थीं, उनमें से सिर्फ एक उसको लगी थी और बाकी पांच इधर-उधर छिटक गई थीं । मिस्टर कोहली, वो गोलियां अगर माथुर साहब ने चलाई होतीं तो छ: की छ: मरने वाले की छाती में धंसी पाई गई होतीं ।”
“बिल्कुल ठीक फरमा रही हैं आप ।”
“मेरी बात को ठीक मानते हैं फिर भी ऐसी वाहियात बात कह रहे हैं कि कत्ल माथुर साहब ने किया हो सकता है ।”
“आई एम सॉरी ! आई एम टेरीबली सॉरी, मैडम । वो क्या है कि कभी कभी मुझे खुद पता नहीं लगता कि मैं क्या कर रहा हूं । आई एम सॉरी ऑल ओवर अगेन ।”
उसने संदिग्ध भाव से मेरी तरफ देखा ।
“तो फिर अब मैं” मैंने उठने का उपक्रम किया, “इजाजत चाहता हूं ।”
“एक मिनट रुकिये ।”
मैं फिर कुर्सी पर पसर गया और प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखने लगा ।
“एक बात सच-सच बताइएगा, मिस्टर कोहली ।” वो बहुत धीमे किंतु निहायत संजीदा स्वर में बोली ।
“पूछिए ।” मैं भी पूरी तरह संजीदगी से बोला ।
“क्या वाकई माथुर साहब ने आपकी सेवाएं ये मालूम करने के लिए प्राप्त की हैं कि किसी फैमिली मैम्बर का तो कत्ल में दखल नहीं ?”
“और क्या वजह होगी ?”
“आप बताइए ।”
“आप ही बताइए ।”
“कहीं....कहीं उन्होंने आपको मेरे पीछे तो नहीं लगाया ?”
मैं हंसा ।
“हंसिए मत । जवाब दीजिए ।”
“आपको अपने पति से ऐसी उम्मीद है ?”
“है तो नहीं लेकिन क्या पता लगता है किसी के मिजाज का !”
“अगर वो ऐसा कोई कदम उठाएं तो कोई नतीजा हासिल होगा ?”
वह कुछ क्षण खामोश रही, फिर उसने इन्कार में सिर हिलाया ।
“फिर क्या बात है !” मैं उठता हुआ बोला, “आप खातिर जमा रखिये मैडम, ऐसी कोई बात नहीं ।”
“डू आई हैव युअर वर्ड फार इट?” वो भी उठती हुई बोली ।
“यस । यू डू ।”
मैंने वहां से विदा ली ।
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