RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“सो” नायर बहुत दूर निकल गया तो वह मेरे से मुखातिब हुआ, “यु आर ए प्राइवेट डिटेक्टिव ।”
“आई हैव दि ऑनर, सर ।” मैं बड़े अदब से बोला ।
“यहां खड़े ही रहना पड़ेगा तुम्हें ।”
उसकी व्हील चेयर के करीब एक छोटी-सी टेबल पड़ी थी जिस पर कारतूस के कुछ डिब्बे और दो रिवॉल्वरें रखी हुई थीं । वो चाहता तो मुझे उस टेबल पर बैठने को कह सकता था लेकिन वो भला क्यों चाहता! उसे मेरी असुविधा से क्या लेना-देना था !
“आई डांट माइंड सर ।” प्रत्त्यक्षत: मैं बोला ।
“या भीतर चलें ?”
“मेरे लिए तो एक ही बात है । आप जैसा मुनासिब समझें ।”
“आज मौसम बढ़िया है । आउटडोर के काबिल ।”
“यहीं ठीक है सर ।”
“यू श्यॉर यू डोंट माइंड कीप स्टैंडिंग ।”
“नॉट एट आल, सर ।”
“सो नाइस आफ यू ।” वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला ।
“तुम्हारा फोन आने और तुम्हारे यहां पहुंचने के बीच के वक्फे में हमने तुम्हारे बारे में तफ्तीश कराई है ।”
“कुछ अच्छा तो सुनने को नहीं मिला होगा सर !”
“अच्छा ही सुनने को मिला है । काफी फेमस प्राइवेट डिटेक्टिव बताये जाते हो । नो ?”
“अंधों में काना राजा जैसी कुछ पूछ है तो सही, सर, मेरी दिल्ली शहर में ।”
“रिवॉल्वर की क्या बात है ?”
“पहले आप ये बताइए कि सीरियल नंबर डी- 241436 वाली, हाथी दांत की मूठ बाली, बाइस केलीवर की रिवॉल्वर क्या वाकई आपकी मिलकियत है ?”
“है तो सही ।”
“आपके पास है ?”
“तुम्हें मालूम तो नहीं है । हमें पहले नहीं मालूम था लेकिन अब मालूम है । तुम्हारी पहली फोन कॉल के बाद हमने रिवॉल्वर को उसकी जगह पर चैक किया था । वो अपनी जगह पर मौजूद नहीं थी ।”
“सर वो मर्डर वैपन है ।”
“क्या ?”
“उससे कत्ल हुआ है ।”
“किसका ?”
“वो...तो मुझे नहीं मालूम ।”
“ये कैसे मालूम है कि कत्ल हुआ है ?”
“मुझे बताया गया है ?”
“किसने बताया है ? साफ-साफ बोलो । पहेलियां न बुझाओ ।”
“सर, बतौर प्राइवेट डिटेक्टिव मेरी खिदमात हासिल करने का ख्वाहिशमंद एक आदमी मेरे पास आया था उसी ने मुझे सब कुछ बताया है और उसी के अधिकार में इस वक्त वो रिवॉल्वर है ।”
“नाम क्या है उसका ?”
“नाम बताना मेरे पेशे के उसूलों के खिलाफ है ।”
“वो हमारी रिवॉल्वर, जिसे वो शख्स मर्डर वैपन बताता है, उसके अधिकार में है ?”
“जी हां ।”
“वो चाहता क्या है?”
“वो मुझे बिचोलिया बनाकर उस रिवॉल्वर के बदले में आप से चार पैसे खड़े करना चाहता है ।”
“चार पैसे किस रकम को कहता है ?”
“पचास हजार रुपयों को ।”
“और तुम” उसके स्वर में तिरस्कार का पुट आ गया, “हमें ये राय देने आए हो कि ये रकम दम उसे सौंप दें !”
“सर, मैं आपको ये राय देने आया हूं कि आप उसे कानी कौड़ी न दें !”
वो सकपकाया । वो कुछ क्षण अपलक मुझे देखता रहा और फिर बदले स्वर में बोला - “अच्छा !”
“जी हां ।”
“मिस्टर, अभी तुम कह रहे थे कि उस शख्स का नाम बताना तुम्हारे पेशे के उसूलों के खिलाफ है अब उसके हितों के खिलाफ हमें राय देते वक्त कोई उसूल नहीं टूट रहा तुम्हारे पेशे का ?”
मैं हड़बड़ाया । मैं उसे क्या बताता कि वो बात तो तब लागू होती जबकि ऐसे किसी क्लायंट का अस्तित्व होता ।
“वो सिर्फ प्रस्ताव है, सर” मैं बोला, “मेरा क्लायंट वो अभी बन नहीं गया है । और फिर मुझे उसकी बात की हकीकत को परखने का पूरा अख्तियार है । यू अंडरस्टेंड माई पॉइंट, सर ?”
उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“तो” एक क्षण बाद वह बोला, “तुम समझते हो कि हमें उस शख्स को खातिर में नहीं लाना चाहिए !”
“जी हां ।” मैं जोशभरे स्वर में बोला, “सर, वो क्या है कि जाती तौर पर मैं ब्लेकमेलिंग के सख्त खिलाफ हूं । ब्लेकमेलर की मांग तो, सर, जूते की तरह होती है जो एक बार फटना शुरू हो जाए तो फटता ही चला जाता है । ब्लेकमेलर अपने शिकार के साथ एक बार जोंक बनकर चिपट जाता है तो मुकम्मल खून निचोड़कर ही मानता है ।”
“लेकिन जब रकम के बदले में रिवॉल्वर हमें वापस मिल जायेगी तो ...”
“ब्लैकमेलर रिवॉल्वर की तस्वीरें रख सकता है, उसके बैलेस्टिक मार्क्स का रिकार्ड रख सकता है, दस्तावेज के तौर पर अदला-बदली की केस हिस्ट्री वनाकर अपने पास महफूज रख सकता है, वो सारे सिलसिले का कोई गवाह खड़ा कर सकता है ।”
“ओह !”
“और फिर मुझे पूरा यकीन है कि आप जैसे उच्चकोटि के श्रीमंत का या उनके परिवार के किसी सदस्य का कत्ल जैसे जघन्य अपराध से कोई रिश्ता तो हो ही नहीं सकता । सच पूछिए तो मेरा ये यकीन ही मुझे आप तक लाया है, न कि आपके और ब्लैकमेलर के बीच बिचौलिया वनने का इरादा ।”
“दैट्स वैरी नाइस ऑफ यू । वैरी नाइस ऑफ यू इनडीड । तुम तो बड़े कैरेक्टर वाले नौजवान मालूम होते हो ।”
“आपकी जर्रानवाजी है, सर, जो आपने मुझे ऐसा समझा ।”
“तुम तो हमारे बहुत काम आ सकते हो । वी मे नीड युअर प्रोफेशनल सर्विसिज ।”
“आई विल बी ओनली टू ग्लैड टु बी ऑफ एनी सर्विस टु यू सर ।”
“लेकिन सवाल ये है कि उस रिवॉल्वर की बरामदगी के सिलसिले में हमारे लिए काम करना क्या तुम्हें मंजूर होगा ?”
“जी !”
“भई, हमारा इंटरेस्ट तुम्हारे उस ब्लैकमेलर क्लायंट के इंटरेस्ट से ऐन उलट जो है ।”
“ऐसा तब होगा सर जबकि रिवॉल्वर वाकई मर्डर वैपन, कत्ल का हथियार साबित हो । और फिर मैंने अभी कहा है कि वो मेरा क्लायंट अभी बन नहीं गया है ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? हमारा मतलब है वो रिवॉल्वर कैसे कत्ल का हथियार साबित हो सकती है ? या नहीं साबित हो सकती है ?”
“सर, इजाजत दें तो इस वाबत मैं आपसे एकाध सवाल करूं ?”
“करो ।”.
“वो रिवॉल्वर यहां कहां रखी जाती थी ?”
“मेरी स्टडी में । कोठी के ग्राउण्ड फ्लोर पर । उसी के एक कोने में मेरी गन की केबिनेट है जिसमें कई राइफलें, पिस्तौलें और रिवॉल्वरे हैं । उस कैबिनेट के एक दराज में ये रिवॉल्वर पड़ी होती थी ।”
“दराज को ताला ? “
“कभी जरूरी नहीं समझा गया ।”
“यहां के नौकर चाकर....”
“खानदानी हैं । वफादार हैं । स्वामिभक्त हैं ।”
“आजकल चांदी का जूता मार के किसी का ईमान खराब कर देना क्या मुश्किल है !”
“यहां यूं ईमान खो देने वाला नौकर कोई नहीं हमारी गारंटी ।”
“आई सी तब तो आपके फैमिली मेम्बर्स की ही उस रिवॉल्वर तक पहुंच थी ।”
“दो नानमेम्बर्स की भी पहुंच थी उस तक ।”
“वो कौन हुए ?”
“एक हमारा प्राइवेट सेक्रेट्री नायर जिससे तुम अभी मिले हो और दूसरा हमारा वकील । दोनों भरोसे के आदमी हैं । नायर तो, जब से मैं अपाहिज हुआ हूं हमारा हाथ पांव, दिमाग सब कुछ है ।”
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