RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मालिक” बकरा चिकने-चुपड़े स्वर नें बोला “काम हो गया ।”
“पकड़ लाए ?”
“हां ।”
“कोई चूं-चपड़ तो नहीं की उसने ?”
“की । काफी उछला-कूदा भी । लेकिन मैं क्या उसकी चलने देने वाला था !”
“बढ़िया । अब कहां है वो ?”
“मोतीबाग ।”
“चौकस पकड़ के रखा है न?”
“बिल्कुल ।”
“भाग तो नहीं जाएगा ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“बढ़िया । आगे मुझे मालूम ही है क्या करना है ?”
“हां । रात यहीं रखेंगे उसे । कल सुबह ग्यारह बजे मैं उसे छोटे मालिक के दौलतखाने पर ले आऊंगा ।”
“खुद लाना ।”
“खुद ही लाऊंगा मालिक ।”
“और उससे अच्छे तरीके से पेश आना । ये दादागिरी दिखाने वाना मामला नहीं है । कोई ताव-वाव मत खा जाना । जोश में उससे कोई हाथापाई या मारपीट न कर बैठना समझ गया ?”
“समझ गया, मालिक ।”
“तेरे ऊपर मे नर्म और भीतर से गर्म मिजाज से वो वाकिफ नहीं होगा लेकिन मैं वाकिफ हूं ।”
“आप ख्याल ही न करो, मालिक, मैं ....”
“अपने मिजाज का कोई नमूना पहले ही पेश कर नहीं चुका है ?”
“अरे नहीं, मालिक कुछ नहीं हुआ बस सिर्फ ...”
“क्या बस सिर्फ ?”
“एक छोटा सा झापड़ रसीद किया था ।”
“गलत किया नहीं करना था ।”
“बाज ही नहीं आ रहा था ।”
“फिर भी नहीं करना था । अब निशान है झापड़ का उसके थोबड़े पर ?”
“हबीब बकरे ने गौर से मेरी सूरत देखी और फिर फोन में बोला, “नहीं ।”
“बढ़िया, आइन्दा ध्यान रखना । डिलीवरी तक उसके चेहरे पर कहीं भी मार पीट का, चोट-वोट का कोई मामूली सा भी निशान नहीं होना चाहिए । समझ गया ?”
“हां ।”
“क्या समझ गया ?”
“निशान नहीं । खरोंच नहीं । कट नहीं । रगड़ नहीं । रोगदा नहीं ।”
“बढ़िया ।”
“और बोलो, मालिक ?”
“अपने शागिर्द का क्या सोचा ?”
“उसका काम हो जाएगा ।”
“कब ?”
“आज ही रात को रोशनी होने से पहले ।”
“कोताही न हो ।”
“आप निश्चित रहिए, मालिक । कहीं कोताही नहीं होगी ।”
“बढिया ।”
फिर शायद लाइन कट गई क्योंकि तभी हबीब बकरे ने रिसीवर वापस क्रेडल पर रख दिया और स्टूल को परे सरका दिया ।
मैं बेआवाज पलंग पर पड़ा रहा ।
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