RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“और” मैं बोला “तुम्हारा क्या होगा ?”
“हमारा भी बुरा ही होगा लकिन जो बुरा हमारा होगा, उसको देखने के लिए तू जिन्दा नहीं होगा । हमारी ओर पुलिस की निगाह भी उठने से पहते तू जन्नत के दरवाजे पर दस्तक दे रहा होगा । समझा ?”
“समझा”
“तो फिर क्या इरादा है तेरा ?”
“इरादा नेक है ।”
“नेक ही रखना, भैय्ये । इल्तजा है ।”
“अच्छा ! धमकी नहीं ?”
“नहीं ।”
“हैरानी है । आजकल तो दादा लोग भी बड़े अदब और शऊर वाले हो गए हैं ।”
वह हंसा ।
“ठीक है न फिर ?” वह बोला, “खामोश रहेगा न ?”
“हां !”
“शाबाश !”
मोतीबाग तक हमें दो जगह पुलिस द्वारा संचालित रोड ब्लोक के बैरियर मिले लेकिन दोनों ही जगह पुंलसियों ने कार की तरफ टार्च ही चमकाई, कहीं किसी ने कार को रुकने का इशारा न किया । ऐसा हो जाता तो कार की छोटी-मोटी तलाशी भी होती और तब मुमकिन था कि इस पंजाबी पुत्तर के खून में बहती 93-ऑकटेन भड़क उठती और मैं हथियारबंद पुलिस की मौजूदगी में हा-हल्ला मचाकर अपनी जान बचाने की जुर्रत कर बैठता लेकिन लगता था राजधानी में रात को सक्रिय हो उठने वाले वैसे बेशुमार रोड ब्लाक्स सिर्फ नेक शहरियों को हलकान करने के लिए थे, गुंडे बदमाशों को जरूर अभयदान प्राप्त था ।
उस घड़ी मेरी समझ में आया कि सालों से चल रहे पुलिस के ऐसे बंदोबस्त के बावजूद आज तक कोई उग्रवादी किसी रोड ब्लोक पर क्यों नहीं पकड़ा गया था ।
एक बात ऐसी थी जिसका कोई फायदा आपका ये खादिम महसूस कर रहा था कि उसे पहुंचना चाहिए था ।
मैं पहलवान को जानता था ।
अलबत्ता पहलवान नहीं जानता था कि मैं उसे जानता था । पहलवान का नाम तो हबीबुल्लाह खान था लेकिन दिल्ली के अंडरवर्ल्ड में वो हबीब बकरा के नाम से बेहतर जाना जाता था । पहले कभी वह जामा मस्जिद के इलाके में बकरे के गोश्त की दुकान किया करता था । तब वो हबीबुल्लाह खान बकरेवाला के नाम से जाना जाता था । कल्लाल से दादा बना था तो नाम सिकुड़कर हबीब बकरा हो गया था । पहले मार-पीट और दंगा-फसाद के जुर्म में कई बार जेल की हवा खा चुका था लेकिन जबसे वो दिल्ली के डॉन के नाम से जाने जाने वाले लेखराज मदान की छत्रछाया में गया था, तबसे कम से कम हवालात के दर्शन उसने नहीं किए थे ।
|