RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
देशराज को जिस कक्ष में बैठाया गया, वह किसी फाइव स्टार होटल के ‘ए.सी. सुइट’ से कम न था—शानदार डबल बैड, कीमती वैलवेट चढ़े सोफे, शीशे के टॉप वाली सेन्टर टेबल, एक कोने में वी.सी.आर. सहित कलर टी.वी., दूसरे में छोटा सा रेफ्रीजरेटर और फर्श पर बिछा ईरानी कालीन देखकर उसकी आंखें हैरत से फटी रह गईं—हैरत का मुख्य कारण इस स्थान का उस जंगल के नीचे होना था जिसके चारों तरफ मीलों तक पहाड़ ही पहाड़ थे—उस वक्त वह सोफे पर पसरा सिगरेट फूंक रहा था जब एकाएक कक्ष का दरवाजा खुला, साथ ही आवाज गूंजी—“हैलो जुंगजू!”
“ह-हैलो सर!” हड़बड़ाकर वह सिगरेट को ऐशट्रे में कुचलता हुआ खड़ा हो गया।
आंखें उन आंखों से जा मिलीं, जिन्हें निःसंदेह दुनिया की सबसे विचित्र आंखें कहा जा सकता था—आंख का जो तारा काला होना चाहिए वह गंदला था—गोल चेहरे, घने बालों, मोटी मूंछों और सामान्य जिस्म वाले सांवले रंग के उस शख्स में जाने ऐसा क्या था कि देशराज का दिल बेवजह धाड़-धाड़ करके बजने लगा। उसने आकर्षक चाल के साथ सोफे की तरफ बढ़ते हुए पूछा—“कैसे हो?”
“ठ-ठीक हूं सर!” देशराज के लहजे में खुद-ब-खुद हकलाहट उत्पन्न हो गई।
“बैठो!” स्वयं एक सोफे पर बैठते हुए ब्लैक स्टार ने कहा।
“थैंक्यू!” कहने के साथ सकुचाता-सा देशराज सोफे के कोने पर बैठ गया।
“यहां तुम्हें किसी खास काम के कारण लाया गया है।”
“खुशनसीब हूं जो आपको मेरी याद आई।”
“चिरंजीव कुमार को जानते हो?”
“ज-जी!” वह बोला—“उसे भला कौन नहीं जानता!”
“लाखों की भीड़ के बीच तुम्हें उसका मर्डर करना है।”
ठीक जुंगजू के से अंदाज में कहा उसने—“हो जाएगा।”
“निशाना चूक जाने का अन्जाम तो जानते होगे?”
“मेरी मौत!” सपाट स्वर—“मगर आपको मालूम है सर, जुंगजू उससे नहीं डरता।”
“बेवकूफ हो तुम!” ब्लैक स्टार गुर्राया—“तुम्हें अपनी मौत से नहीं, चिरंजीव कुमार की जिन्दगी से डरना चाहिए—हमारा इशारा इस तरफ था कि तुम्हारे हमले के बाद वह बचना नहीं चाहिए।”
“नहीं बचेगा सर!”
“फिर भी लगातार प्रैक्टिस करते रहोगे—‘स्पॉट’ पर तुम्हारा एक मददगार भी मौजूद रहेगा—कार्यवाही तब तक नहीं होगी जब तक उसकी तरफ से ग्रीन सिग्नल नहीं मिल जाता बल्कि पूरा प्लान भेजेगा वह, काम उसी प्लान के मुताबिक होना है।”
“ओ.के. सर!”
ब्लैक स्टार ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि दाएं हाथ में बंधी रिस्टवॉच से पिक … पिक की बारीक आवाज निकलने लगी।
देशराज की नजरें उस पर स्थिर हो गईं।
ब्लैक स्टार ने रिस्टवॉच से छोटी-सी कमानी बाहर खींची—एक बारीक आवाज उससे निकलकर सारे कमरे में गूंजने लगी—“व्हाइट स्टार स्पीकिंग सर … व्हाइट स्टार!”
“यस!” ब्लैक स्टार ने अपने विशिष्ट अंदाज में कहा।
“ये मैं क्या सुन रहा हूं सर, जेल रोड पर जुंगजू को लेने गए लोगों का ठक्कर से टकराव हुआ?”
“ठीक सुन रहे हो।”
“ठक्कर वहां कैसे पहुंच गया?”
“सुना है मुठभेड़ में हमारा एक आदमी मारा गया …।”
“यह कोई खास बात नहीं है—जुंगजू तो आपके पास पहुंच गया होगा?”
“यहां की फिक्र छोड़कर तुम अपने मोर्चे पर ध्यान केन्द्रित करो व्हाइट स्टार।” स्वर रूखा था—“बेवजह बातें करते रहना हमें पसंद नहीं।”
“स-सॉरी सर, उत्सुकतावश संपर्क स्थापित कर लिया।”
“और कुछ?”
“चिरंजीव कुमार कल सुबह दस बजे पहुंच रहा है—सुरक्षा व्यवस्था का अवलोकन करने के बाद प्लान से सूचित करूंगा।”
“कोई जल्दी नहीं है, चिरंजीव यहां तीन दिन रहेगा … ओवर एण्ड ऑल।” कहने के तुरंत बाद ब्लैक स्टार ने अपनी तरफ से संबंधविच्छेद कर दिया—चेहरे पर मौजूद भावों से स्पष्ट था कि जो बातें ट्रांसमीटर पर हुईं , केवल उनके लिए ‘व्हाइट स्टार’ द्वारा संपर्क स्थापित किया जाना उसे पसंद नहीं आया, एकाएक सोफे से खड़ा होता हुआ बोला—“फिलहाल तुम फ्रेश हो सकते हो जुंगजू, तीन घंटे के आराम के बाद प्रैक्टिस में जुट जाना होगा।”
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सुबह सात बजे बुलाई गई मीटिंग ठक्कर के इस वाक्य के साथ शुरू हुई—“जहां हम सबका ख्याल यह था कि स्टार फोर्स में अब इतना दम-खम बाकी नहीं रह गया है कि वह चिरंजीव कुमार का मर्डर करने का ख्याल दिमाग में ला सके, वहीं रात की वारदात ने हम सबकी धारणायें धूल-धूसरित करके यह सिद्ध कर दिया कि ब्लैक फोर्स न केवल चिरंजीव कुमार के मर्डर की बात सोच रही है—बल्कि सोची-समझी योजना पर कार्यवाही भी शुरू हो चुकी है। एक ताजा सूचना हमारे पास ये है कि ब्लैक स्टार ने ‘ऑपरेशन चिरंजीव कुमार’ को पूरा करने का दायित्व जिस शख्स को सौंपा है, उसका छद्म नाम ‘व्हाइट स्टार’ रखा गया है।”
“व-व्हाइट स्टार!” सभी के मुंह से यह शब्द फिसलकर रह गया जबकि तेजस्वी के संपूर्ण जिस्म में सनसनी दौड़ गई थी।
कमिश्नर शांडियाल कह रहे थे—“ताजा इन्फॉरमेशन्स के मुताबिक, जुंगजू जंगल में स्थित ब्लैक स्टार के हैडक्वॉर्टर पर पहुंच चुका है—यह इन्फॉरमेशन भी मिली है कि वह लाखों की भीड़ के बीच चिरंजीव कुमार को निशाना बनाने की कोशिश करेगा।”
“इससे भी ज्यादा चिंतित कर डालने वाली इन्फॉरमेशन ये है कि स्पॉट पर जुंगजू का एक और मददगार मौजूद रहेगा।” यह बात ठक्कर ने कही।
उनके एक-एक शब्द को मीटिंग में मौजूद लोग मुंह बाए सुन रहे थे—हालांकि चेहरे से तो तेजस्वी भी उन्हीं की-सी अवस्था में नजर आ रहा था, परंतु वास्तव में उसकी हवाइयां उड़ी हुई थीं।
ठक्कर और कमिश्नर के बीच कोई अलग ही खिचड़ी पकती महसूस हो रही थी उसे।
आधी सूचना एक के मुंह से निकल रही थी, आधी दूसरे के।
सूचना भी वो जो हंडरेड परसैन्ट सही थी—इसमें शक नहीं कि तेजस्वी को अपना दिमाग अंतरिक्ष में धक्के खाता महसूस हो रहा था—यह बात उसकी समझ में न आकर दे रही थी कि इतनी ‘परफैक्ट इन्फॉरमेशन्स’ उनके पास कहां से हैं—एस.पी. सिटी के शब्दों ने उसकी तन्द्रा भंग की, उसने कमिश्नर और ठक्कर से सवाल किया था—“क्या जुंगजू के मददगार के बारे में भी कोई सूचना है?”
“अभी इस संबंध में कोई सूचना नहीं मिल पाई है।”
“हमला कौन सी सभा में होने की उम्मीद है?” अपने सन्नाते दिमाग को काबू में लाकर तेजस्वी ने पूछा।
जवाब ठक्कर ने दिया—“आशा है हमला होने से पूर्व यह सूचना भी मिल जाएगी।”
“तब तो जुंगजू और उसके साथी क्या सफल होंगे?” नए डी.आई.जी. महोदय खुश थे।
“नहीं।” ठक्कर ने कहा—“ऐसा सोचकर हम लोग लापरवाह नहीं हो सकते—यह ठीक है इस वक्त हमारी ‘गोट’ ठीक बैठी है, मगर दुश्मन को कमजोर समझना भूल होगी—चिरंजीव कुमार के प्रतापगढ़ में कदम रखते ही हम लोगों को बगैर किसी ढील या लापरवाही के उन्हें चारों तरफ से अपने घेरे में ले लेना है—उनका हैलीकॉप्टर ठीक दस बजे एस.डी. कॉलिज के प्रांगण में लैंड करेगा—पहली सार्वजनिक सभा उसी प्रांगण में होगी—उम्मीद है लाखों लोग पहुंचेंगे—स्थानीय पुलिस की पहली ड्यूटी ये है कि उन लाखों लोगों में से एक भी शख्स बगैर तलाशी के एस.डी. कॉलिज के प्रांगण में दाखिल नहीं होना चाहिए।”
सब शांत रहे।
“हम चाहते हैं तलाशी का कार्य नए एस.पी. सिटी के नेतृत्व में हो।”
“आई एम रेडी सर!”
“मैदान के बाहर मौजूद पेड़ों और इमारतों पर भी लोग चढ़े होंगे—उन पर नजर रखने की जिम्मेदारी एस.पी. देहात मिस्टर पांडे सम्भालेंगे।”
“ओ.के. सर!” पांडे ने कहा।
“सभा में उपस्थित हर शख्स की गतिविधि पर नजर रखने का काम मैदान में तैनात एक हजार सशस्त्र पुलिसियों के अलावा इतने ही एल.आई.यू. के लोगों के जिम्मे होगा—वे सादे कपड़ों में पब्लिक के बीच रहेंगे।”
खामोशी यथावत् छाई रही।
“प्रोग्राम के मुताबिक हैलीकॉप्टर से उतरते ही चिरंजीव कुमार अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं से भेंट करेंगे, स्थानीय नेतागण उन्हें माला पहनाकर स्वागत करेंगे—यह काम वी.आई.पी. लॉबी में होगा—तेजस्वी की जिम्मेदारी सभी वी.आई.पी., स्थानीय नेताओं और मालाओं आदि पर नजर रखनी होगी—इस काम के लिए उसे पचास पुलिसिए मुहैया कराए जाएंगे—वैसे हम यानि स्पेशल कमांडो दस्ते के लोग भी वहीं होंगे और हमारे अलावा होंगे हमेशा चिरंजीव कुमार के साथ चलने वाले ‘स्पेशल गाडर्स’ के छः जांबाज—प्रत्येक परिस्थिति में चिरंजीव कुमार के चारों तरफ पहला सुरक्षा घेरा इन्हीं ‘स्पेशल गाडर्स’ का होगा—उनके घेरे के बाद हमारा यानि स्पेशल कमांडोज दस्ते का घेरा होगा, उसके बाद स्थानीय पुलिस का सुरक्षा दायरा, उसका नेतृत्व एस.एस.पी. महोदय करेंगे।”
“आप फिक्र न करें सर!”
“फिक्र की बात यहां से आगे शुरू होती है—तब जबकि सभा समाप्त होगी और चिरंजीव कुमार दूसरे सभा-स्थल की तरफ बढ़ेंगे—खुली एम्बेसडर में उनके साथ उनकी पार्टी का स्थानीय अध्यक्ष, दो कमांडो दस्ते के लोग, दो सुरक्षा गार्ड या ज्यादा से ज्यादा कोई एक वी.आई.पी. रहेगा—उनके आगे स्पेशल गाडर्स की कार, पीछे हमारी कार, हमारे पीछे तेजस्वी की जीप, उधर गाडर्स की कार के आगे एस.एस.पी. की कार रहेगी—जिन रास्तों से वे गुजरेंगे उनका नक्शा बना लिया गया है—जाहिर है, लोग सड़कों के दोनों तरफ ही नहीं इमारतों और पेड़ों तक पर होंगे—उनमें से कोई भी हथियार- बंद न हो यह जिम्मेदारी मिस्टर पांडे, एस.पी. देहात और एस.पी. सिटी की है—जैसे ही चिरंजीव कुमार वाहन से उतरकर किसी तरफ को बढ़ें—स्पेशल गाडर्स, हमारा और स्थानीय पुलिस का वही ‘व्यूह’ बन जाना चाहिए अर्थात् पहला घेरा स्थानीय पुलिस का, दूसरा कमांडोज का और सबसे भीतरी घेरा गाडर्स का होगा—हमें किसी भी सूरत में, किसी हथियारबंद शख्स को ये घेरे क्रॉस नहीं करने देने हैं।”
सब चुप रहे।
ठक्कर ने आगे कहा—“रात के ग्यारह बजे तक इसी किस्म की यात्रा अथवा सभाओं में भाषण का क्रम चलता रहना है—ग्यारह बजे अंतिम सभा के बाद वे रात्रि-विश्राम अपने फार्महाउस पर करेंगे—कल सुबह सात बजे से पुनः यही क्रम जारी हो जाएगा और देर रात तक चलेगा—इस तरह, प्रतापगढ़ में तीन दिन गुजारने के बाद—अपने अगले लक्ष्य की तरफ जाएंगे—जाहिर है, इन तीन दिनों में हमें उनसे कहीं ज्यादा कड़ी मेहनत करनी है।”
सभी ने अपनी-अपनी राय दी जबकि तेजस्वी का दिमाग यह सोचने में मशगूल था कि सुरक्षा-व्यवस्था में छेद कहां है, कहां चोट की जाये कि ठक्कर के सभी इंतजाम औंधे मुंह आ पड़ें।
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