Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 03:04 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
पर बार-२ घुमने में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी..उन्होंने आस पास देखा और अपनी साडी उठा ली..मुझे कुछ समझ नहीं आया की वो करना क्या चाहती है.. उन्होंने साडी के एक छोर का गोला बनाया और ऊपर की तरफ घुमा कर फेंका...वो कमरे के के ऊपर की बीम के ऊपर से होता हुआ वापिस नीचे आ गया...
काकी ने पास पड़ा हुआ चार फूट का एक डंडा उठाया और साडी के दोनों सिरे एक -२ कोने पर बाँध दिए...और झुला सा बना दिया..जो उनके सर से लगभग दो फूट की ऊँचाई पर झूल रहा था..
मेरी समझ में अब भी कुछ नहीं आ रहा था की चुदाई के वक़्त काकी को ये झुला बनाने की क्या सूझी....पर उसके बाद जो दुलारी ने किया उसे देखकर मैं दंग रह गया.. उन्होंने डंडे को बीच से पकड़ा और फिर से उसी तरह से घूमना शुरू कर दिया..
मेरा लंड उनकी चूत के अन्दर ही था और वो मेरे ऊपर बैठ कर, ऊपर हाथ करके डंडा पकडे हुए, घुमती जा रही थी, वो जैसे-२ घुमती जाती, साडी छोटी होकर ऊपर की तरफ सिमटती जा रही थी...जिसकी वजह से उनकी चूत ऊपर की तरफ जाती हुई महसूस हो रही थी...
लगभग 6 -7 चक्कर लगाने के बाद उनकी चूत मेरे लंड से निकलने के कगार पर आ पहुंची...और ऊपर की तरफ साडी भी इकठ्ठा होकर एक तनाव सा बना रही थी...जिसे काकी ने अपने पेरों जमीन पर रखकर रोका हुआ था... और जब उन्होंने देखा की मेरा लंड उनकी चूत से निकलने ही वाला है तो उन्होंने अपने दोनों पैर उठा कर घुटने अपनी छाती से चिपका लिए...और साडी में बना हुआ घुमावदार तनाव उनके शरीर को किसी लट्टू की तरह घुमाता हुआ मेरे लंड के ऊपर तेजी से बिठाने लगा....
मेरी तो हालत ही खराब हो गयी...वो जिस तेजी से घूमकर वापिस मेरे लंड पर आ रही थी, मुझे लगा की मेरे लंड में कोई फ्रेक्चर न हो जाए... पर दुलारी की चूत के अन्दर इतना रस निकल रहा था जिसकी वजह से न तो उन्हें और ना ही मुझे कोई तकलीफ हुई...और वो घुमती हुई सी...चिल्लाती हुई सी... मेरे लंड पर वापिस धप्प से आकर बैठ गयी....
"अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ...ओह्ह्ह्हह्ह्हह्ह ......अ.......अ.....अ...आआअ.........आआ......म्मम्मम्मम......ह्ह्हह्ह्ह्ह ह्ह्ह ,......."
मैं दुलारी के दिमाग की दाद दिए बिना नहीं रह सका...उसने अपनी चूत को ऊपर तक ले जाकर मेरे लंड पर छोड़ दिया और घुमती हुई सी, ड्रिल होती हुई मेरे लंड पर वापिस कब्ज़ा कर लिया था..
वो मेरे ऊपर पड़ी हुई हांफ रही थी...शायद वो झड चुकी थी...मेरे चेहरे पर उनके बाल फेले हुए थे...वो ऊपर उठी और मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी...
वो बिलकुल अपनी बेटी जैसी मुस्कुरा रही थी...मासूमियत से भरी थी उनकी मुस्कान...मैंने आगे बढ़ कर दुलारी के होंठ चूस लिए...बिलकुल ठन्डे थे वो होंठ...बर्फ जैसे ...पर बड़े ही मीठे थे वो...गाँव का मीठापन छुपा था उनमे... मैं तो उन्हें चूसता रहा और नीचे से धक्के मारता रहा...और जल्दी ही मेरे लंड का ज्वालामुखी दुलारी की चूत की पहाड़ियों के अन्दर फूट पड़ा...और हम दोनों एक दुसरे के मुंह को चूसते हुए..चाटते हुए...सिसकारी मारते हुए झड़ते हुऐ...चिपक कर एक दुसरे के ऊपर लेटे रहे.
दादाजी ने अब ऋतू को घोड़ी बना दिया था...और अपना लंड वापिस पीछे से लेजाकर उसकी चूत में डालने लगे...पर जब उन्होंने गोल सा...चमकता हुआ सा...सुनहरे रंग का गांड का छेद दिखाई दिया तो उनकी नीयत बदल गयी...और उन्होंने अपने हाथ में थूक लगाकर लंड के सुपाडे पर फिराई और उसे टिका दिया ऋतू की गांड के छेद पर...
ऋतू ने जब दादाजी को पार्टी बदलते देखा तो वो कुनमुनाने लगी...उसे गांड मरवाने में भी मजा आता था पर दादाजी के लंड से गांड मरवाना यानी अपनी ऐसी तैसी करवाना...पर वो कुछ कर नहीं सकती थी...
उसने अपनी चूत के ऊपर अपना पंजा रखा और उसे जोरो से घिसने लगी...पीछे से दादाजी ने अपना घोडा ऋतू की गांड के अस्तबल में डाल दिया.. गांड के अन्दर जाते ही दादू का घोडा हिनहिनाने लगा और ऋतू भी दादाजी के लंड को अन्दर डालकर मजे से अपनी गांड के धक्के पीछे की तरफ फेंकने लगी.
"अह्ह्हह्ह्ह्ह ओग्ग ओह्ह्हह्ह दादाजी......क्या कर दिया.......अह्ह्ह्हह्ह ...आपका लंड तो अभी भी .....मुझे पहली बार जितना दर्द देता है.....यहाँ.....अह्ह्हह्ह.......अह्ह्ह्ह ........."
दादाजी हँसते रहे और उसकी गांड मारते रहे....उसकी गांड के छेद का कसाव इतना तेज था उनके लंड के चारो तरफ की दादाजी जल्दी ही मैदान में धराशायी हो गए और उनके लंड ने अपना माल ऋतू की गांड के छेद में छोड़ दिया..
ऋतू की पीठ पर झुककर उन्होंने उसके दोनों मुम्मे पकड़ लिए और उन्हें दबाते हुए , उसके कंधे चुमते हुए...उसके साथ चिपटे रहे...
हम चारों ने एक दुसरे को देखा और मुस्कुरा दिए..
सच कहूँ यहाँ गाँव में आकर मुझे चुदाई करने में ज्यादा मजा आ रहा था..
इस तरह दुलारी और उसकी बेटी रूपा के साथ-2 ऋतु की चुदाई करते हुए गाँव में दादाजी और मैनें 10-12 दिन तक खुब मजे़ उठाये।
हमारी छुट्टियाँ खत्म होने वाली थी तो मैंने और ऋतु ने दादाजी से विदा ली और शहर वापस लौट आये..
शहर आकर भी चूदाई का सिलसिला चलता रहा ..
अन्नू ,सोनी , ऋतु और मम्मी को मैं और पापा साथ साथ मिलकर चोदते रहे...

~समाप्त~
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