RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#79
बिस्तर पर बैठी प्रज्ञा के हाथ में वो तस्वीर थी जो कबीर उसे दे गया था , जिसमे वो कबीर के साथ थी , उसका दिल जो कह रहा था दिमाग मानने को तैयार नहीं था और माने भी तो क्यों, उसका अपना जीवन था ये घर था परिवार था पर जिस तरह से कबीर उसके जीवन में आया था और अजनबी होकर भी आज अपनों से ज्यादा था ये नियति का कैसा इशारा था ,
प्रज्ञा के डर की वजह एक और भी थी मेघा , उसकी बेटी , और वो मेघा से कैसे दगा करे , उसे अगर मालूम होता तो वो कभी कबीर के इतने करीब नहीं जाती , पर ये सब नियति का चलाया ही चक्र तो था , सोचते सोचते जब रहा नहीं गया तो प्रज्ञा ने लाल मंदिर जाने की सोची, क्योंकि अगर कबीर किब बताई बात सच थी तो लाल मंदिर और आयत का बहुत गहरा रिश्ता रहा था .
दूसरी तरफ.
किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा , मैंने पलट कर देखा ही था की के जोरदार मुक्का मेरी नाक पर आ पड़ा. रात अँधेरी में आँखों के आगे और अँधेरा छा गया. चूँकि नाक पर बहुत जोर से लगी थी मैं संभल नहीं पाया और इतने में दो चार लात और सिक गयी.
धुल झाड़ते हुए मैंने देखा वो राणा था प्रज्ञा का बाप.
मैं- राणा तू यहाँ
राणा- मुझे यहाँ नहीं तो कहा होना चाहिए, तेरी मौत बनकर आया हूँ मैं आज , मैंने सब सुन लिया तेरी और उस रंडी की बाते, उसका तो मैं ऐसा हाल करूँगा की उसे देख कर और कोई फिर यार बनाने की हिम्मत नहीं करेगी, तेरे टुकड़े ले जाकर फेकुंगा उसके आगे, जब वो रोएगी तब दिल को सकून मिलेगा.
मैं- राणा, ये एक अजीब गुत्थी है मैं तुझे समझाता हूँ
राणा- कुछ नहीं सुनना, तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर की तरफ देखने की मेरी बीवी और बेटी दोनों को फंसा लिया तूने , अब तेरा खून पीकर ही प्यास बुझेगी मेरी .
मैं- चुतियापा मत कर राणा , मैं समझता हु तेरी हालत पर तू कोशिश कर बात को समझने की , मुझे एक मौका दे
राणा- तूने मेरा घर बर्बाद कर दिया और मैं तुझे मौका दू, ,जरुर दूंगा बहुत जल्दी तेरी सांसो को तेरे बदन से अलग कर दूंगा मैं .
राणा ने फिर से मुक्का मारा. मैं समझ गया था की ये नहीं मानेगा. और अब इसका मुकाबला करना ही पड़ेगा. मैंने राणा का हाथ पकड़ लिया. और उसे धक्का दिया. पर राणा शक्तिशाली था . उसने प्रतिकार किया. न जाने कहा से उसके हाथ एक लकड़ी का टुकड़ा लग गया और वो मुझ पर टूट पड़ा.
गुस्सा तो मुझे भी आ रहा था पर मेघा के साथ हुई घटना की वजह से मेरा शरीर कमजोर था, मुझे लगने लगा था की मैं राणा से पार नहीं पा पाउँगा . उसने मुझे उठा कर सामने दीवार पर दे मारा. पहले से चकराया मेरा सर और घूम गया , मुह से उलटी सी आई मैं समझ गया हालत ख़राब हुई अपनी.
उसने मेरे पैर पर मारा. मैं दर्द से बिलबिला गया .
राणा- देख साले, तेरी क्या औकात है, कैसे मेरे कदमो में पड़ा है तू , तेरा बाप खामखा कहता था की तू कुंदन का पुनर्जन्म है , मेरा लंड है पुनर्जन्म , तू तो दो मिनट न टिक पाया. जब मेघा और तेरी लड़ाई हुई तो मुझे एक पल को लगा था पर अभी तेरी हालत देख कर लगता है तू कुछ नहीं . आज तेरी जिन्दगी के सारे पन्ने फाड़ दूंगा मैं , पर पहले तू इतना बता की उस रंडी के साथ कहाँ कहाँ मजे किये तूने, कहाँ कहाँ ली उसकी .
“तमीज मत भूल राणा , प्रज्ञा के बारे में उल्टा सीधा मत बोल, मेरे लिए बहुत इज्जत है उसकी, उसका बहुत मान करता हु मैं .”
राणा ने फिर एक लात मेरे पेट में मारी बोला-देखो सपोले को कैसे दर्द हो रहा है , साले मेरे दिल पर क्या बीत रही है , आग तुमने लगायी है झुलस मैं रहा हूँ
मैं उठ खड़ा हुआ
मैं- राणा, मैं समझता हूँ तेरे लिए बहुत मुश्किल है तेरी जगह मन होता तो मेरे लिए भी होता, पर प्रज्ञा मेरी जान है , प्यार है वो मेरा मेरी जिन्दगी मेरा सब कुछ है वो , उसके लिए न जाने क्या कुछ कर जाऊ मैं
राणा ने अपनी गन निकाल ली और बोला- हाँ कर लेना अगले जन्म में जो तेरा दिल करे वो कर लेना क्योंकि इस जन्म में मैं हूँ पहले तुझे मारूंगा फिर उस रंडी को .
राणा ने गोली चलाई मैं उछल कर पास की एक दिवार कूद गया .
राणा- बच नहीं पाएगा तू कुत्ते.
धडाम से दूसरी तरफ गिरा मैं पैर में लगी चोट की वजह से परेशान था मैं , उठ ने की कोशिश कर रहा था की तभी राणा भी आ पहुंचा , जैसे ही वो मेरे पास पहुंचा मैंने पास पड़ी रेत मुट्ठी में भर कर उसकी आँखों में फेक दी. वो तिलमिला गया . मेरे लिए बस यही मौका था . हाथ एक पत्थर लग गया मैंने वो राणा के सर पर दे मारा
गन उसके हाथ से गिर गयी. मैंने तुरंत उठा लिया उसे और फायर कर दिया. एक के बाद एक फायर करता गया. जब तक की गोलिया खत्म नहीं हो गयी. राणा को मार दिया था मैंने अपने हाथो से अपनी प्रज्ञा की मांग के सिंदूर को मिटा दिया था. ये मेरा कायराना कदम था ,धोखे से मारा मैंने उसे, पर क्या करता उसे नहीं मारता तो वो मार देता मुझे.
वही बैठ गया मैं उसकी लाश के पास.
प्रज्ञा माँ की खंडित मूर्ति के आगे बैठी थी , मन में सवाल लिए.
“तुम्ही मेरी दुविधा दूर करो माँ, नियति ने मेरे दो टुकड़े कर दिए है एक तरफ मेरा परिवार है तो दूजी तरफ कबीर, इतिहास अगर खुद को दोहरा रहा है तो मेरे आज का क्या होगा. किसी एक को भी थामू तो भी एक हिस्सा मेरा ही बर्बाद होगा. माँ तुम क्या खेल खेल रही हो, क्या लिखा हिया मेरे भाग में, आज बताना ही होगा मुझे, अगर कबीर की बात सच है तो मुझे बताना ही होगा मैं कौन हूँ , कौन हु मैं ” प्रज्ञा ने सवाल किया
“तुम सरकार हो. तुम वो दीपक हो जिसने देवगढ़ को रोशन किया तुम वो कहानी हो जिसका हर एक पन्ना मोहब्बत से भरा है तुम वो हो जिसका ये सब है ”
प्रज्ञा ने पीठ घुमा कर पीछे देखा .
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