RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#6
दो- तीन दिन गुजर गए , मैं न जाने किस दुनिया में था , कोई होश नहीं कोई खबर नहीं , मुझे इतना जरुर मालूम हुआ था की मेरे भाई की सगाई कर दी है , पर क्या उस से मुझे फर्क पड़ता था , बार बार आँखों के सामने वो लड़की आती थी , जैसे कोई डोर मुझे उसकी तरफ खींच रही थी . आखिरकार मैंने एक बार फिर से रतनगढ़ जाने का निर्णय लिया.
पर इस बार रात में नहीं , क्योंकि हर रात महफूज हो ऐसा भी नसीब नहीं था मेरा, खैर उस शाम मैं रतनगढ़ से थोड़ी ही दूर था , मेरी मंजिल तारा माँ का वो ही मंदिर था , जहाँ मैं उस गहरी आँखों वाली लड़की से मिल सकता था, और हाँ उसका नाम भी पूछना था इस बार, न जाने क्यों मैं उसे अपने से जुड़ा मानता था , जबकि हमारी सिर्फ दो मुलाकाते ही हुई थी और दोनों अलग अलग परिस्तिथियों में.
शाम और रात के बीच जो समय था मैं दूर था थोडा सा मंदिर से और तभी मैंने सामने से एक गाड़ी रफ़्तार से अपनी और आते हुए दिखी, मैं सड़क से उतर गया पर वो गाड़ी दाई तरफ मुड़ी और एक छोटे पेड़ से टकरा गयी. मैं गाड़ी की तरफ भागा पर पहुँचता उस से पहले ही गाड़ी से एक औरत निकली,.
माथे से खून टपक रहा था , हाथ में शराब की बोतल , समझ नहीं आया की नशे से झूम रही थी या दर्द से. वो वहीँ पास में धरती पर बैठ गयी , चोट से बेपरवाह बोतल गले से लगाये कुछ और बूंदे गटक गयी.
मैं उसके पास पंहुचा.
“ठीक तो है आप ” मैंने पूछा
“किसे परवाह है , ” उसने सर्द लहजे में कहा
मैं- आपको चोट लगी है , यहाँ के बैध का पता बताइए मैं ले चलता हु उसके पास आपको
बिखरी जुल्फों को हटा कर उसने मुझे देखा और फिर से पीने लगी. माथे से खून रिस रहा था .मैं समझ गया था की नशे की वजह से उसे स्तिथि का भान नहीं है .
पर तभी वो बोली- मेरी गाड़ी देखो , क्या वो चल पायेगी.
मुझे उसका व्यव्हार अजीब सा लग रहा था जब उसे मरहम-पट्टी की जरुरत थी , गाड़ी की चिंता कर रही थी वो. मैंने देखा गाड़ी को आगे से नुकसान हुआ था पर वो स्टार्ट हो रही थी.मैंने बताया उसे.
वो- मेरे साथ चलो.
उसने मेरा हाथ पकड़ा और गाड़ी में धकेल दिया.
“मैं जिस तरफ कहूँ उधर चलते रहना ” वो बोली
“पर मुझे तो कहीं और जाना है ” मैं बोला
उसने एक गद्दी नोटों की मेरी तरफ फेंकी और बोली- रख ले, और चल
मैं- इन कागज के टुकडो को किसी और के सामने फेकना , तुम्हारी दशा ठीक नहीं है इसलिए साथ चल रहा हूँ , रखलो अपने पैसे.
उसके होंठो पर हसी आ गयी, बोली- बरसो बाद किसी ने मुझे न कहा है .अच्छा लगा
मैं- एक मिनट रुको, मैंने उसके सर को देखा , जहाँ चोट लगी थी, और कुछ नहीं था तो उसकी चुन्नी को कस के बाँध दिया सर पर, तभी मेरी नजर सूट के अन्दर उसकी गोलाइयों पर पड़ी. बेहद नर्म होंगे, मैं इतना ही सोच पाया.
“कुछ देर के लिए खून बंद हो जायेगा ”
पर उसे कहाँ ध्यान था , उसे तो और नशा करना था , बीच बीच में वो बस बोलती रही इधर लो- उधर लो और शायद दस बारह कोस दूर जाने के बाद हम उजाड़ सी जगह पहुँच गए , उसने एक चाबी थी मैंने बड़ा सा दरवाजा खोला और गाड़ी अन्दर ले ली, इस चारदीवारी में पांच छह कमरे थे, एक छोटा बगीचा था .
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