RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#५
अजीब सा चुतियापा लग रहा था ये सब , मेरा दादा वसीयत में एक दिया दे गया मुझे किसी को बताये तो भी अपनी ही हंसी उड़े, और चुतिया दिया था के जल ही नहीं रहा था , हार कर मैंने उसे कोने में रख दिया और बिस्तर पर आके लेट गया. ताई के साथ हुई घटना ने मुझे अन्दर तक हिला दिया था , मेरे मन में सवाल था की उन्होंने मुझे रोका क्यों नहीं क्या वो भी मुझसे जिस्मानी रिश्ते बनाना चाहती थी , पहली नजर में मैं कह नहीं सकता था पर टेम्पो में जो हुआ और उनकी सहमती क्या इशारा दे रही थी,
खैर, उस रात एक बार फिर मेरी नींद उन जानवरों के रोने की आवाजो ने तोड़ दी,
“क्या मुसीबत है ” मैंने अपने आप से कहा
एक तो गर्मियों की ये राते इतनी छोटी होती थी की कभी कभी लगता था की ये रत शुरू होने से पहले ही खत्म हो गयी . पर आज मैंने सोच लिया था की मालूम करके ही रहूँगा ये हो क्या रहा है, मैंने अपनी लाठी ली और आवाजो की दिशा में चल दिया. हवा तेज चल रही थी चाँद खामोश था. कोई कवी होता तो ख़ामोशी पर कविता लिख देता और एक मैं था जो इस तनहा रात में भटक रहा था बिना किसी कारन
मुझे ये तो नहीं मालूम था की समय क्या रहा होगा , पर अंदाजा रात के तीसरे पहर का था , मैं नदी के पुल पर पहुँच गया था ये पुल था जो जंगल को अर्जुन्गढ़ और रतनगढ़ से जोड़ता था , और तभी सरसराते हुए जानवरों का एक झुण्ड मेरे पास से गुजरा, इतनी तेजी से गुजरा की एक बार तो मेरी रूह कांप गयी, करीब पंद्रह बीस जानवर थे जो हूकते हुए भाग रहे थे मैं दौड़ा उनके पीछे ,
कभी इधर ,कभी उधर , मैं समझ नहीं पा रहा था की ये सियार ऐसे क्यों दौड़ रहे है और फिर वो गायब हो गए, यूँ कहो की मैं पिछड़ गया था उस झुण्ड से , मैंने खुद को ऐसी जगह पाया जहाँ मुझे होना नहीं था मेरी दाई तरफ एक लौ जल रही थी , न जाने किस कशिश ने मुझे उस लौ की तरफ खीच लिया , और जल्दी ही मैं सीढियों के पास खड़ा था , ये सीढिया माँ तारा के मंदिर की नींव थी , जिस चीज़ ने मुझे यहाँ लाया था वो मंदिर की जलती ज्योति थी , मैं एक बार फिर से रतनगढ़ में था.
दुश्मनों का गाँव, ऐसा सब लोग कहते थे पर क्या दुश्मनी थी ये कोई नहीं जानता था , दोनों गाँवो के लोग कभी भी तीज त्यौहार, ब्याह शादी में शामिल नहीं होते थे, खैर, मैं सीढिया चढ़ते हुए मंदिर में दाखिल हुआ, सब कुछ स्याह स्याह लग रहा था , और एक गहरा सन्नाटा, शायद रात को यहाँ कोई नहीं रहता होगा. मुझे पानी की आवाज सुनाई दी मैं बढ़ा उस तरफ मंदिर की दूसरी तरफ एक छोटा तालाब था , सीढिया उतरते हुए मैं वहां पहुंचा .प्यास का अहसास हुआ मैंने अंजुल भर पानी पिया ही था की
“चन्नन चन ” पायल की आवाज ने मुझे डरा सा दिया . आवाज ऊपर की तरफ से आई थी मैं गया उस तरफ “कौन है बे ” मैं जैसे चिल्लाया
“क्या करेगा तू जानकार” आवाज आई
मैं- सामने आ कौन है तू
कुछ देर ख़ामोशी सी रही और फिर मैंने दिवार की ओट से निकलते साये को देखा, वो साया मेरे पास आया मैंने उन आँखों में देखा, ये आँखे ,, ये आँखे मैंने देखि थी
“तू यहाँ क्या कर रहा है इस वक़्त ” वो बोली
मैं- रास्ता भटक गया था
वो- अक्सर लोग रस्ते भटक जाते है
मैं- तुम यहाँ कैसे ,
वो- मेरा मंदिर है जब चाहे आऊँ जाऊं
मैं- मंदिर तो माता का है
वो- मुर्ख , मेरे बाबा पुजारी है मंदिर के, पास ही घर है मेरा ज्योत देखने आई थी , इसमें तेल डालना पड़ता है कई बार, पर तू यहाँ क्यों, एक मिनट तू चोरी करने आया है न चोर है तू .... अभी मैं बाबा को बुलाती हु.
अब ये क्या है ...........
मैंने उसे पकड़ा और मुह दबा लिया , ये दूसरी बार था जब किसी नारी को छुआ हो मैंने,
“चोर नहीं हूँ, मेरा विश्वास करे तो छोडू ” मैंने कहा
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