RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
हर लम्हां मौत और खौफ के साये में जिंदगी बसर करते हुए राज की वो पांचवीं रात थी ।
अड्डे के अंदर ही एक सर्वेण्ट क्वार्टर जैसा छोटा-सा कमरा था, जो सेठ दीवानचन्द ने उसके लिये खोल दिया था ।
दशरथ पाटिल ने उसे बिछाने के लिये एक दुतई और ओढ़ने के लिये एक पतला-सा कम्बल दे दिया था ।
रात के दो बज रहे थे ।
लेकिन राज की आंखों में नींद का दूर-दूर तक नामों निशान न था, वह अपने कमरे में सिकुड़ा-सिमटा सा पड़ा था और उसकी आंखों के गिर्द रह-रहकर डॉली का चेहरा घूम रहा था ।
जाने कहाँ-कहाँ तलाश कर रही होगी उसे वो ?
कितनी परेशान होगी उसके लिये डॉली ?
उफ् !
उस छोटी-सी उधारी चुकाने के फितूर ने उसे कितने बड़े जंजाल में फंसा दिया था ।
अपनी आवारा कुत्ते जैसी हो चली हैसियत पर गौर करके राज कम्बल ओढ़े-ओढ़े ही अपने कमरे से निकलकर बाहर गलियारे में आ गया ।
नींद न आने की वजह से उसका थोड़ा चहलकदमी करने को दिल चाह रहा था ।
राज चंद कदम ही चला होगा, तभी वह एकाएक बुरी तरह चौंका ।
कांफ्रेंस हॉल के अंदर से बातचीत करने की आवाजें आ रही थीं ।
राज लपककर कॉफ्रेंस हॉल के नजदीक पहुँचा ।
वह एक बहुत बड़ा हॉल कमरा था । कॉफ्रेंस हॉल के बीचों-बीच एक लम्बी आयातकार मेज पड़ी थी, जिसके इर्द-गिर्द लगभग बीस के करीब कुर्सियां मौजूद थीं ।
पूरे कांफ्रेंस हॉल में गहन अन्धकार फैला था ।
सिर्फ छत में लटके एक साठ वाट के ग्लोब का फोकस मेज के बीचों-बीच पड़ रहा था ।
राज ने बंद दरवाजे की झिरी में-से अंदर का नजारा देखा ।
इतनी रात को भी सेठ दीवानचन्द वहाँ मौजूद था ।
उसके सामने दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे बैठे थे, वह तीनों उस समय डकैती की किसी बहुत महत्वपूर्ण योजना पर बातचीत कर रहे थे ।
राज दरवाजे से कान लगाकर उनकी वार्ता सुनने लगा ।
☐☐☐
सेठ दीवानचन्द थोड़ी गरमजोशी से भरी आवाज में कह रहा था- “वडी मुझे आज ही सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी का न्यूयार्क से एक मैसेज़ मिला है ।”
“क्या ?” दशरथ पाटिल ने पूछा ।
“साईं, वो नटराज मूर्तियों के आश्चर्यजनक ढंग से गायब हो जाने की वजह से बड़े नाराज हैं । उन्होंने लिखा है कि वह बुद्धवार को दिल्ली के होटल मेरीडियन में चीना पहलवान का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि कब मूर्तियां लेकर उनके पास आये, लेकिन सुबह जब उन्होंने चीना पहलवान की मौत का समाचार सुना, तो वह फौरन वापस न्यूयार्क के लिये कूच कर गये । पाटिल साईं, उन्होंने यह भी लिखा है कि जिस पार्टी से उन्होंने नटराज मूर्तियों का सौदा किया था, वह पार्टी मूर्तियां हासिल न होने के कारण बहुत नाराज हो रही हैं, उन्होंने बड़ी मुश्किल से उस पार्टी को काबू में किया है ।”
“और कुछ लिखा सुपर बॉस ने ?” दुष्यंत पाण्डे बोला ।
“हाँ ।” सेठ दीवानचन्द की आवाज थोड़ी गंभीर हो उठी- “इस बार सुपर बॉस ने हमें एक ऐसी डकैती की योजना के सम्बन्ध में बताया है कि अगर हम उस योजना में कामयाब हो गये, तो हमारे वारे-न्यारे हो जायेंगे । वडी उस डकैती में हमारे हाथ इतना मोटा रोकड़ा लगेगा कि हमारी पचास पुश्तें बैठकर खा सकती हैं ।”
“ऐसी क्या योजना है ?”
“ध्यान से सुनो ।” सेठ दीवानचन्द उन्हें विस्तारपूर्वक सब कुछ समझाता हुआ बोला- “कल यानि सोमवार को पूर्व सोवियत संघ के एक गणराज्य कजाखिस्तान से किसी महाराजा का एक दुर्लभ ताज दिल्ली शहर में प्रदर्शन के लिये आ रहा है और उस ताज में पचास ऐसे बेशकीमती हीरे लगे हुए हैं कि उन जैसे हीरे आज पूरी दुनिया में कहीं नहीं हैं । इतना ही नहीं वह ताज ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत मूल्यवान है । उस ताज के बारे में कहा जाता है कि वो ताज ईसा से पूर्व उस दौर का है, जब इंसान ने सभ्यता की सीढ़ियां चढ़नी ही शुरू की थीं । उसी दौर में कजाखिस्तान के एक राजा ने अपने राज्य के बेहतरीन कारीगरों से इस ताज का निर्माण करवाया था । वडी उस राजा को ज्योतिष विद्या पर भी बहुत यकीन था, उसके हीरे के गुण-दोष के पारखी कई विद्वानों से सैकड़ों हीरों में से वह पचास हीरे चुनवाये । उन विद्वानों का मानना था कि वो हीरे राष्ट्र की उन्नति, शान्ति और खुशहाली के प्रतीक थे ।”
बोलते-बोलते रुका सेठ दीवानचन्द ।
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे उसकी बातें बेहद गौर से सुन रहे थे ।
जबकि दरवाजे से कान लगाये खड़े राज की भी एकाएक उस दुर्लभ ताज में दिलचस्पी जाग उठी थी ।
“सुपर बॉस ने आगे लिखा है ।” सेठ दीवानचन्द थोड़ा रुककर पुनः बोला-“कि हीरों से जड़े उस दुर्लभ ताज के बारे में यह कहानी भी बड़ी प्रसिद्ध है कि जिस दिन से उस राजा ने वह ताज पहनना शुरू किया था, उसी दिन से उसके राज्य का विस्तार भी होना शुरू हो गया था । वरना उससे पहले कजाखिस्तान के इलाके में अनेक जंगली कबीले विद्रोह का बिगुल बजाते रहते थे, लेकिन ताज का निर्माण होते ही चारों तरफ शान्ति और खुशहाली का माहौल बन गया, जो सोवियत संघ के टूटने के बावजूद कजाखिस्तान में आज तक बरकरार है ।”
दशरथ पाटिल ने थोड़ा बेचैनीपूर्वक पहलू बदला ।
“कुछ भी कहो बॉस !” दशरथ पाटिल बोला- “एकाएक ऐसी बातों पर यकीन नहीं होता, यह तो दन्त कथाओं जैसी कहानी मालूम होती है ।”
“वडी हमें इस बात से क्या लेना-देना नी ।” सेठ दीवानचन्द बोला- “कि उस ताज के साथ जुड़ी यह कहानी सच्ची है या झूठी । वडी हमें अपने रोकड़े से मतलब होना चाहिये, अपने नावे से मतलब होना चाहिये । वडी आज की तारिख में उस ताज को हासिल करने के लिये दुनिया के कई बड़े-बड़े देश जी-तोड़ कोशिश में लगे हैं, जिनमें अमरीका सबसे आगे है । सुपर बॉस का कहना है कि हमें उस ताज के बदले अमरीका सरकार एक अरब रुपये तक दे सकती है ।”
“एक अरब रुपये !” दुष्यंत पाण्डे के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“हाँ, एक अरब रुपये । वडी अभी तक वो ताज कजाखिस्तान के एक म्यूजियम में भारी हिफाजत के साथ रखा हुआ था, उसकी वहाँ सिक्योरिटी कितनी जबरदस्त है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उस ताज को चुराने की अभी तक एक दर्जन से भी ज्यादा बार कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर कोशिश नाकाम रही । चोरों को हर बार असफलता का मुँह देखना पड़ा ।”
“जब उस ताज की इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी है ।” दुष्यंत पाण्डे बोला- “तो हम लोग ही उसे किस तरह चुरा पायेंगे ?”
“वडी तू पागल है नी ।” सेठ दीवानचन्द भुनभुनाया- “पाण्डे साईं, आज से पहले उस दुर्लभ ताज को चुराने की जितनी भी कोशिशें हुई, वो सब कजाखिस्तान में हुई थीं । यह पहला मौका है, जब वो ताज किसी दूसरे देश में प्रदर्शन के लिये आ रहा है और इसे हमें अपनी खुशकिस्मती समझना चाहिये कि उस दुर्लभ ताज की प्रदर्शनी कहीं और नहीं बल्कि हमारे ही शहर के नेशनल म्यूजियम में लगेगी । वडी वही नेशनल म्यूजियम, जहाँ से हम लोग पहले ही नटराज मूर्तियां पार कर चुके हैं ।”
“यह बात आपको कैसे मालूम ?” दशरथ पाटिल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा- “कि उस ताज की प्रदर्शनी नेशनल म्यूजियम में ही लगेगी ?”
“वडी सुपर बॉस ने ही यह बात अपने मैसेज में लिखकर भेजी है और मुझे कैसे मालूम होता ?”
“ए...एक बात पूछूं बॉस ?” दशरथ पाटिल इस बार थोड़ा हिचकिचाता हुआ बोला ।
“पूछो ।”
“सुपर बॉस को न्यूयार्क में बैठे-बैठे हर बात कैसे मालूम हो जाती है ?”
“वडी अगर यह मेरे को को मालूम होता ।” सेठ दीवानचन्द तिक्त स्वर में बोला- “तो मैं यहाँ तुम लोगों के साथ बैठकर अपना दिमाग खराब क्यों करता ? फिर तो मैं भी सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी की तरह न्यूयार्क के किसी आलीशान होटल में पड़ा अपनी अगली योजना के पत्ते न फैला रहा होता ।”
दशरथ पाटिल ने फ़ौरन अपने होंठ सी लिये ।
“दशरथ साईं !” दीवानचन्द एक-एक शब्द चबाकर बोला- “हमें इस तरह की बेकार बातों में अपना दिमाग खराब करने की बजाय इस तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए कि हम उस ताज को चुराने में किस तरह कामयाब होंगे । वडी हमें दौलत कमाने का इतना शानदार मौका किसी भी हालत में खोना नहीं है । यूं समझो, हमारी किस्मत खुद अपने पैरों से चलकर कजाखिस्तान से यहाँ आ रही है ।”
“लेकिन बॉस !” दुष्यंत पाण्डे बोला- “उस दुर्लभ ताज को चुराना हमारे लिये इतना आसान भी न होगा, जितनी आसानी से हमने नटराज मूर्तियां चुरा ली थी ।”
“क्यों, दुर्लभ ताज चुराना इतना आसान क्यों नहीं होगा ?”
“क्योंकि यह आपको भी मालूम है बॉस, वह ताज पहली बार किसी दूसरे देश में प्रदर्शन के लिये लाया जा रहा है, ठीक ?”
“बिलकुल ठीक ।”
“इससे यह साबित होता है ।” दुष्यंत पाण्डे आगे बोला- “कि कजाखिस्तान गणराज्य की नजर में उस दुर्लभ ताज का बहुत ही खास महत्व है । मेरे इस तर्क को इस बात से भी और ज्यादा बल मिलता है कि उस दुर्लभ ताज को चुराने की कजाखिस्तान में ही कई छोटी-बड़ी कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार चोरों को नाकामी का मुँह देखना पड़ा । यानि कजाखिस्तान गणराज्य ने उस ताज की सिक्योरिटी का बहुत ही पुख्ता इंतजाम कर रखा है । अगर ऐसा न होता, तो चोर उसे न जाने कब के उड़ा ले गये होते, इस दुनियां में एक से बढ़कर एक शातिर मौजूद है ।”
“वडी, तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ बॉस, जिस ताज की सिक्योरिटी का कजाखिस्तान गणराज्य ने इतना पुख्ता इंतजाम कर रखा है, वह कजाखिस्तान अपने उस दुर्लभ ताज को ऐसे ही तो भारत नहीं भेज देगा । स्वाभाविक-सी बात है कि भारत में भी उस ताज के जबरदस्त इंतजाम किये होंगे ।”
सेठ दीवानचन्द गंभीर हो उठा ।
दुष्यंत पाण्डे काफी हद तक सही कह रहा था ।
“पाण्डे साईं !” दीवानचन्द धीरे-धीरे गर्दन हिलाता हुआ बोला- “वडी तेरी बात में जान है । कजाखिस्तान गणराज्य में भारत सरकार की मदद से यहाँ भी सिक्योरिटी के इंतजाम तो जरूर किये होंगे ।”
“सिर्फ इंतजाम नहीं बॉस, बल्कि बहुत खास इंतजाम किये होंगे ।” दुष्यंत पाण्डे बोला- “सिक्योरिटी का इंतजाम तो नटराज मूर्तियों के लिये भी किया गया था, लेकिन क्या हुआ उस इंतजाम का ? सारा इंतजाम ढाक के तीन पात की तरह रखा रह गया और हम मूर्तियां चुराकर भी फरार हो गये । देख लेना बॉस, भारत सरकार हमारे द्वारा की जाने वाली दुर्लभ वस्तुओं को चोरी से भी भरपूर सबक लेगी और इसलिये उस दुर्लभ ताज का और ज्यादा खास, ज्यादा स्पेशल सिक्योरिटी इंतजाम किया जायेगा ।”
“मैं मानता हूँ पाण्डे साईं ।” सेठ दीवानचन्द दृढ़ लहजे में बोला- “तेरी हर बात ठीक है । वडी लेकिन फिर भी हम लोगों को उस ताज को चुराकर दिखाना है, हमने साबित कर देना है कि बड़ी-बड़ी सिक्योरिटी को भेदने की क्षमता हम लोगों के अंदर है ।”
“इसके लिये हमें सबसे पहले दुर्लभ ताज को देखना होगा ।”
“बिलकुल ठीक ।”
“ताज को देखने के लिये नेशनल म्यूजियम में दर्शकों की ऐंट्री कब से शुरू होगी ?”
“परसों से ।” सेठ दीवानचन्द ने बताया- “कल वह दुर्लभ ताज कजाखिस्तान से दिल्ली लाया जायेगा । वह किस फ्लाइट से दिल्ली आ रहा है, यह बात अभी तक पूरी तरह गुप्त रखी गयी है । निःसन्देह दोनों सरकारों को इस बात का खतरा होगा कि अगर कहीं यह बात लीक हो गयी, तो कहीं अपराधी संगठन उस दुर्लभ ताज को हासिल करने के लिये पूरे प्लेन को ही हाईजैक न कर ले ।”
“ओह !”
“बहरहाल !” दीवानचन्द उस मीटिंग का पटाक्षेप करता हुआ बोला- “उस दुर्लभ ताज को हासिल करने की दिशा में हमारा सबसे पहला काम यह पता लगाना होगा कि भारत सरकार ने उसकी सिक्योरिटी के क्या-क्या इंतजाम किये हैं । साईं, सिक्योरिटी के इंतजामों की फुल जानकारी कर लेने के बाद ही हम किसी योजना की रुपरेखा तैयार करेंगे, ओके ?”
“ओके ।”
दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे की गर्दनें एक साथ स्वीकृति में हिलीं ।
मीटिंग उसी क्षण बर्खास्त हो गयी ।
राज जो कॉफ्रेंस हॉल के दरवाजे से कान लगाने खड़ा वार्तालाप का एक-एक शब्द सुन रहा था, वह हतप्रभ-सी स्थिति में वापस अपने कमरे की तरफ दौड़ा ।
कमरे में घुसते ही उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और फिर दुतई पर लेटकर लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगा ।
उसके होश गुम थे ।
उसके कानों में घण्टियां बज रही थीं ।
दिमाग मानो सुनसान पड़ी वीरान घाटियां बन चुका था, जिसमें रह-रहकर एक ही आवाज गूंज रही थी- “हे मेरे दाता ! हे मेरे भगवान ! क्या यह सचमुच उस ताज को चुराने में सफल हो जायेंगे ?”
क्या दिल्ली शहर में एक और चौंका देने वाली चोरी होगी ?
☐☐☐
|