RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
तभी फिर एक और बेहद हृदयविदारक घटना घटी ।
राज दरवाजे तक पहुँच पाता, उससे पहले ही इतनी जोर-जोर से दरवाजा भड़भड़ाया गया, मानो कोई उसे तोड़ ही डालेगा ।
“कौन है ?” डॉली चिल्लायी ।
“दरवाजा खोलो ।” बाहर से इंस्पेक्टर योगी का कड़कड़ाता स्वर उभरा- “पुलिस ।”
“प...पुलिस !” रूह कांप गयी राज और डॉली की ।
दोनों दहल उठे ।
“ज...जरूर...जरूर बल्ले ने पुलिस को तुम्हारे बारे में इन्फॉर्मेशन दे दी है ।” डॉली फुसफुसाई ।
“दरवाजा खोलो ।” इस बार इंस्पेक्टर योगी पहले से भी ज्यादा जोर से हलक फाड़कर चिल्लाया ।
साथ ही उसने अपने कंधे की प्रचण्ड चोट भी दरवाजे पर मारी ।
“भ...राज !” डॉली का चेहरा सफेद झक्क पड़ चुका था- “राज, तू पिछली खिड़की से कूदकर भाग जा ।”
“ल...लेकिन... ।”
“बहस मत कर । जल्दी भाग, जल्दी ।”
राज फौरन खिड़की की तरफ झपट पड़ा । खिड़की सड़क से चार, साढ़े चार फुट ऊपर थी ।
वह एक क्षण के लिये हिचकिचाया ।
“दरवाजा खोलो ।” तभी इंस्पेक्टर योगी की खौफनाक आवाज पुनः उसके मस्तिष्क पर हथौड़े की तरह पड़ी ।
राज तुरन्त खिड़की से नीचे कूद गया ।
कूदते समय उसके कानों में दरवाजा भड़भड़ाये जाने की भी तेज आवाज पड़ी ।
लेकिन अब राज को मुड़कर कहाँ देखना था ।
राज ने एक बार भागना शुरू किया, तो वह रेस के घोड़े की तरह भागता ही चला गया ।
☐☐☐
राज की जिंदगी में एक ऐसे खतरनाक सिलसिले की शुरुआत हो चुकी थी, जिसका अन्त खुद उसे भी मालूम नहीं था ।
वह उस क्षण को कोसने लगा, जब रातों-रात धनवान बनने की लालसा में नटराज मूर्तियों हड़पने का ख्याल उसके मन में आया था ।
थोड़ी ही देर बाद वो डी.टी. सी. के बस स्टॉप शेल्टर के नीचे खड़ा था ।
भागने के कारण उसकी सांस धोकनी की तरह चल रही थीं ।
चेहरे पर हवाइयां थीं ।
राज ने सोचा, वह बच गया ।
लेकिन नहीं, बचा तो वह तब भी नहीं ।
उसकी किस्मत में तो पूरी खानाखराबी लिखी थी ।
वह एक और बड़े ‘नरक’ में जाकर गिरा ।
राज की जेब में उस समय सिर्फ बीस रुपये थे, वह भी उसने दरीबा कलां जाने से पहले डॉली से उधार लिये थे । जल्द ही बस स्टॉप पर एक बस आकर रुकी, वह उसी में चढ़ गया ।
इतनी रात के समय भी बस में खूब भीड़भाड़ थी ।
अगला सितम राज के ऊपर यह टूटकर गिरा कि वह जब टिकट लेने के उद्देश्य से कंडक्टर के पास पहुँचा और उसने अपनी जेब में हाथ डाला, तो फौरन उसके होश उड़ गये ।
जेब साफ थी ।
“हे भगवान !” राज के शरीर में थरथरी दौड़ गयी- “किसी को जेब भी मेरी ही काटनी थी ?”
“मैं ही मिला था उसे ?”
लेकिन जिस भगवान के सामने वो दुहाई दे रहा था, उसी भगवान ने उसके सर्वनाश की फुल योजना बना रखी थी ।
और सर्वनाश न सही, परन्तु नाश तो राज का तभी हो गया ।
बस जैसे ही अपने अगले स्टॉप पर जाकर रुकी, तभी उसमें आगे-पीछे से दो टिकट-चेकर दनदनाते हुए चढ़ गये ।
☐☐☐
परिणाम !
राज को टिकट न लेने के अपराध में बाकी की सारी रात हवालात के अन्दर गुजारनी पड़ी ।
वह रात उसके ऊपर बड़ी भारी गुजरी ।
दरअसल रात उसी के साथ-साथ हवालात में एक कत्ल का अपराधी भी बंद हुआ था । वह बड़ी-बड़ी मूंछों वाला विशालकाय जिस्म का मालिक था । उसे जब यह मालूम हुई कि राज टिकट न लेने के अपराध में बंद हुआ है, तो उसने राज पर रौब गाँठना शुरू कर दिया, उसे धमकाना शुरू कर दिया ।
जिसका रिजल्ट यह निकला कि थोड़ी ही देर बाद राज बड़ी तन्मयता से उसके हाथ-पैर दबा रहा था ।
आधी से ज्यादा रात उसकी हाथ-पैर दबाते हुए गुजरी ।
सुबह दस बजे के करीब वहाँ दो कांस्टेबल आये और उन्हें हवालात में से निकालकर उसी थाने के इंस्पेक्टर के सामने पेश करने के लिये ले गये ।
वहाँ एक और नई आफत राज का इंतजार कर रही थी । उसकी दृष्टि इंस्पेक्टर योगी पर पड़ी ।
इंस्पेक्टर योगी, स्थानीय थानाध्यक्ष के बिल्कुल पहलू में पड़ी एक कुर्सी पर बैठा था ।
योगी को देखते ही राज के शरीर में यूं भीषण प्रकंपन हुआ, मानो उसने साक्षात् यमराज के दर्शन कर लिये हों । निश्चय ही इंस्पेक्टर योगी ने बड़ी-बड़ी मूंछों वाले उस कत्ल के अपराधी को गिरफ्तार किया था और इसी सिलसिले में वो वहाँ मौजूद था ।
तभी टेलीफोन की घण्टी बजी ।
फोन स्थानीय थानाध्यक्ष ने रिसीव किया ।
कुछ देर वो बड़े ध्यान से कोई आदेश सुनता रहा और हूँ-हाँ करता रहा, फिर उसने रिसीवर वापस क्रेडिल पर रख दिया ।
“किसका फोन था ?” इंस्पेक्टर योगी ने मनपसन्द ब्राण्ड ‘फोर स्क्वायर’ की सिगरेट सुलगाते हुए पूछा ।
“हेडक्वार्टर से फोन था ।” थानाध्यक्ष ने बताया- “संग्रहालय से सोने की जो छः नटराज मूर्तियां चोरी हुई थीं, आज उन्हीं के सिलसिले में दोपहर दो बजे हेडक्वार्टर के अंदर एक मीटिंग है ।”
नटराज मूर्तियों के नाम से राज के कान खड़े हो गये ।
“सुना है ।” इंस्पेक्टर योगी बोला- “उन मूर्तियों की कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में दो करोड़ रुपये आंकी गयी है ।”
“ऑफकोर्स, यह सच है ।” थानाध्यक्ष थोड़े व्यग्र स्वर में बोला- “और सबसे बड़ी हैरतअंगेज बात यह है कि दिल्ली के विभिन्न संग्रहालयों से ऐसी दुर्लभ (एंटिक) वस्तुओं की लगभग आठ चोरियां हो चुकी हैं, लेकिन चोर आज तक नहीं पकड़ा जा सका ।”
“दिल्ली पुलिस कोशिश तो बहुत कर रही है ।” इंस्पेक्टर योगी बोला ।
“कोशिश, सिर्फ कोशिश ।” स्थानीय थानाध्यक्ष ने कसैला-सा मुँह बनाया- “हमारी उन कोशिशों का आज तक कोई भी रिजल्ट नहीं निकल सका । क्या कर सके हैं हम आज तक ? सिवाय यह पता लगाने के कि इन दुर्लभ वस्तुओं की चोरी के पीछे जरूर ही कोई बड़ा अपराधी संगठन सक्रिय है ।”
वह भौंचक्का-सा खड़ा रह गया ।
द...दो करोड़ !
बाप रे !
तो उन मूर्तियों की कीमत दो करोड़ रुपये है ।
उन्हें संग्रहालय से चुराया गया है ?
और...और अब दिल्ली पुलिस में उन्हीं मूर्तियों को लेकर इतनी हायतौबा मची है ।
इतना हड़कम्प मचा है ।
राज की हवा खुश्क हो गयी ।
☐☐☐
|