RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“और वो फिर चल गई?”
-“हां। वह सीट पर गिरकर अजीब सी सांसे लेने लगा। उसकी घरघराहट और छाती पर बहते खून को बरदाश्त मैं नहीं कर सकी। इसलिए उसे कार से गिरा दिया।”
-“रिवाल्वर एक बार फिर चली थी। तीसरी दफा सैनी के ऑफिस में। तुम्हें याद है?”
-“हां। मीना और मनोहर के साथ जो हुआ वह दुर्घटना थी- मैं जानती हूं तुम इस पर यकीन नहीं करोगे। लेकिन सैनी को मैंने जान-बूझकर मारा था। मुझे ऐसा करना पड़ा। क्योंकि उसने कौशल को मीना और मनोहर के बारे में बता दिया था।”
कौशल को जिल्लत और बदनामी से बचाने के लिए मुझे उसको खामोश करना पड़ा ताकि दूसरों को ना बता सके। कौशल ने उस रात मुझे घर में लॉक कर दिया था लेकिन उसे बाहर जाना पड़ा। मैं एक खिड़की तोड़कर बाहर निकली। मोटल पहुंची तो सैनी अपने ऑफिस में बैठा मिला। मैंने उसे शूट कर दिया। हालांकि ऐसा करना मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि उसने मेरी मदद की थी। लेकिन मुझे करना पड़ा- “कौशल की खातिर।”
-“तीन हत्याएं सिर्फ तीन गोलियों से। एक बार भी नहीं चूकीं। इतना अच्छा निशाना लगाना तुमने कहां से सीखा?”
-“पापा ने सिखाया था। कौशल भी मुझे शूटिंग रेंज में ले जाया करता था।”
-“वो रिवाल्वर अब कहां है?”
-“कौशल के पास। मैंने जहां छिपाई थी वहां से उसने निकाल ली। मुझे खुशी है रिवाल्वर उसके पास है।”
-“क्यों?”
-“मैं नहीं चाहती कुछ और हो। मुझे नफरत है- खून खराबे से। हमेशा रही है। जब मैं छोटी थी तो चूहेदानी से चूहा बाहर नहीं निकाल सकती थी। जब तक रिवाल्वर मेरे पास रही मुझे चैन नहीं मिला।”
-“अब तुम्हें याद आया रिवाल्वर तुम्हारे हाथ में कैसे आई?”
-“मैंने बताया तो था, मीना ने दी थी।”
-“लेकिन क्यों? क्या उसने कुछ कहा भी था?”
-“हां, याद आया। अजीब सी बात थी।”
-“क्या कहा उसने?”
-“वह मुझ पर हंसी थी। मैंने कहा था, अगर उसने पापा को नहीं छोड़ा तो मैं अपनी जान दे दूंगी। खत्म कर लूंगी खुद को।”
-“पापा को नहीं छोड़ा? तुम्हारा मतलब है मिस्टर बवेजा.....।”
-“नहीं। कौशल। मैंने कहा था- कौशल को छोड़ दो वह हंसती हुई बेडरूम में चली गई। रिवाल्वर लेकर लौटी और मुझे देकर बोली- लो खत्म कर लो खुद को यही हम सबके लिए ठीक रहेगा। रिवाल्वर लोडेड है। शूट कर लो खुद को। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। उसे शूट कर दिया।”
-“क्योंकि वह तुम्हें तबाह कर रही थी- तुम्हारे पति को तुमसे छीनकर?”
-“हां।”
-“लेकिन तुम्हारा पति भी तो उतना ही कसूरवार था। उसने तुम्हारे साथ धोखा किया था। बेवफाई की थी। फिर उसे क्यों छोड़ दिया तुमने? क्या वह सजा पाने का हकदार नहीं है?”
-“नहीं। मैं यह नहीं मानती। उसकी गलती तब होनी थी अगर वह मीना पर किसी तरह का दबाव डालकर उसे वो सब करने के लिए मजबूर करता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। मीना अपनी मर्जी से अपनी खुशी के लिए वो सब कर रही थी। जबकि वह चाहती तो खुद को रोक सकती थी। औरत खुद को रोक सकती है। आदमी के वश की बात यह नहीं है।”
अजीब थ्योरी थी।
-“तुम्हारी यह मान्यता कब से है? शुरू से?”
-“नहीं। शुरु में तो मैं औरत-मर्द दोनों को बराबर का कसूरवार समझती थी।”
-“फिर यह मान्यता कब बदली?”
-“कुछेक महीने पहले।”
-“क्यों?”
-“मैंने इस पर काफी विचार किया था। सलाह भी की थी।”
-“किससे?”
-“कौशल से। एक बार रजनी से भी बातें की थीं।”
-“सैनी की पत्नि से?”
-“हां। उन दोनों का भी यही कहना था कि सजा की हकदार ऐसे हालात में औरत ही होती है।”
-“इसीलिए तुमने मीना को सजा दे दी?”
-“हां।”
-“क्या तुम अपने पति से प्यार करती हो?”
-“पता नहीं।”
-“तुम्हारा पति तुमसे प्यार करता है?”
-“पहले तो करता था।”
-“तुमने चौधरी से शादी क्यों की?”
-“पता नहीं।”
-“तुमसे शादी करने से पहले क्या चौधरी किसी और से प्यार करता था?”
-“रजनी से करता था।”
-“तुम्हें यह कब पता चला?”
-“थोड़े ही दिन हुए हैं।”
-“अगर वह रजनी से प्यार करता था तो तुमसे शादी क्यों की?”
-“पता नहीं।”
बाहर एक कार रुकने की आवाज सुनाई दी।
-“कौशल आ गया।” रंजना ने धीरे से कहा।
***********
|