RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
हाईवे से कुछेक मील तक वो सड़क एकदम सीधी और साफ थी। फिर मोड़ आने शुरू हो गए और जल्दी-जल्दी आते रहे।
राज को धीमी रफ्तार से कार चलानी पड़ रही थी।
सड़क वाकई खतरनाक थी। एक तरफ पहाड़ था और दूसरी ओर सैकड़ों फुट गहरी खाई। सामने ढलान पर रेत फैली नजर आ रही थी।
तभी सामने से हैडलाइट्स की रोशनी आती दिखाई दी।
राज कार रोककर टार्च लिए नीचे उतरा।
बूढ़ा अंदर ही बैठा रहा।
ढलान पर आधी से ज्यादा सड़क पर फैली रेत पर चौड़े टायरों के निशान थे। जो की अनुमानत: किसी ट्रक के ही हो सकते थे। टार्च की रोशनी में और ज्यादा गौर से देखने पर दो तरह के टायरों के निशान नजर आए- एक-दूसरे के ऊपर। लेकिन दोनों ही निशान ताजा थे।
राज की धड़कनें बढ़ गई। सामने से आती हैडलाइट्स की रोशनी के साथ अब इंजन की आवाज भी सुनाई दे रही थी।
राज उसी तरह खड़ा सुनता रहा। जल्दी ही वह समझ गया कोई कार द्वारा पहाड़ से नीचे आ रहा था।
उसने फीएट की लाइटे ऑफ कर दी।
इतना समय नहीं था कि कार को हटाया जा सकता। राज ने अपनी रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली और अगले खुले दरवाजे के पीछे पोजीशन ले ली।
बूढ़े ने पिछली सीट पर पड़ी अपनी बंदूक उठा ली।
सामने से आती हैडलाइट्स की रोशनी खाई के ऊपर से गुजरी फिर पुनः सड़क पर पड़ने लगी।
कार मोड पर घूमी।
सफेद मारुति थी। उसका हार्न गूंजा फिर ब्रेक चीख उठे। तेज रफ्तार में अचानक जोर से ब्रेक लगाए जाने के कारण कार घूमी लगभग उलटती नजर आई फिर ढलान के नीचे सड़क की चौड़ाई में इस ढंग से रुकी कि तकरीबन पूरी सड़क घेर ली।
ड्राइविंग सीट वाला दरवाजा भड़ाक से खुला। एक मानवाकृति लुढ़ककर नीचे आ गिरी और उसी तरह पड़ी रही।
-“लीना है।” बूढ़ा फंसी सी आवाज में बोला।
राज दौड़कर उसके पास पहुंचा। टार्च की रोशनी उस पर डाली।
लीना के ऊपर वाले कटे होंठ से खून बह रहा था। चेहरा सूजा हुआ था। आंखें आतंक से फटी जा रही थीं। लेकिन वह होश में थी।
उसने उठकर बैठने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सकी।
राज ने उसे सहारा देकर बैठाया।
-“म.....मैं.....मेरी हालत बहुत खराब है......उन शैतानों ने मुझे......।”
राज ने उसके होंठ से खून साफ किया। तभी उसे पहली बार पता चला लीना सिर्फ कमीज पहनी थी वो भी साइडों से पूरी लंबाई में फटी हुई। उसकी टांगे नंगी थीं। गालों पर दांतों के निशान और जगह-जगह आई खरोचों से साफ जाहिर था कि उसकी वो हालत कैसे हुई थी।
बूढ़ा भी कार से उतरकर उनके पास आ पहुंचा।
-“तुम जैसी लड़कियों का देर सवेर यही अंजाम होता है।” राज बोला- “और होना भी चाहिए। तुम भी तो दूसरों को तकलीफें पहुंचाती हो।”
-“म.....मैंने कभी किसी को तकलीफ नहीं पहुंचाई।”
-“झूठ मत बोलो। मनोहर तुम्हारी वजह से ही मारा गया था।”
-“नहीं। उस बारे में मैं कुछ नहीं जानती.....खुदा बाप की कसम.....।”
-“खुदा बाप को बीच में मत लाओ।”
-“म.....मैं.....सच कह रही हूं......यकीन करो......।”
-“और सैनी के बारे में क्या कहती हो?”
-“ज.....जब मैं वहां पहुंची वह मरा पड़ा था.....म.....मैंने.....उसे....शूट नहीं किया.....।”
-“फिर किसने किया था?”
-“पता नहीं.....मैं नहीं जानती.....।”
-“कौन जानता है? जौनी?”
-“नहीं, वह भी नहीं जानता। मैंने मोटल में देवा से मिलना था.....हम दोनों शहर से दूर जाने वाले थे....।”
लीना की आंखों से आंसू बह रहे थे।
-“वो रकम कहां गई?” राज ने पूछा- “जो जौनी ने सैनी को दी थी।”
लीना ने जवाब नहीं दिया। राज की बांह का सहारा लिए बैठी सर हिलाने लगी। फिर मारुति की ओर देखा।
-“लीना।” पीछे खड़े बूढ़े ने पूछा- “तुम ठीक हो बेटी?”
लीना ने होठों पर जुबान फिराई।
-“हां....मैं ठीक हूं....सब ठीक है। दादा जी?”
बूढ़े को उसके पास छोड़कर राज ने मारुति की तलाशी ली। अगली सीट के नीचे अखबार में लिपटा और रस्सी से बंधा एक लंबा मोटा सा पैकेट पड़ा था।
राज ने एक कोना फाड़ा। पैकेट में पांच सौ रुपए की गड्डियां थीं। जिस अखबार में लिपटी थी अगस्त की किसी तारीख का था।
राज ने पैकेट को फीएट की डिग्गी में लॉक करके अपने बैग में से एक पजामा निकाल लिया।
लीना अब बूढ़े का सहारा लिए खड़ी थी।
-“वे मुझे घेर कर बैठ गए।” वह कह रही थी- “एक पेटी खोलकर विस्की की बोतल से पीनी शुरू कर दी.....फिर सबने एक-एक करके मुझे रेप करना शुरू कर दिया.....और बार-बार करते रहे.....।”
बूढ़े ने उसके धूल भरे उलझे बालों में हाथ फिराया।
-“मैं उन कमीनो की जान ले लूंगा। कितने हैं वे?”
-“तीन। वे विराटनगर से आए थे विस्की की उन पेटियों को लेने। मुझे तुम्हारे पास ही रहना चाहिए था दादा जी।”
बूढ़े के क्रोधित चेहरे पर उलझन भरे भाव उत्पन्न हो गए।
-“तुम्हारे पति ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की?”
-“जौनी मेरा पति नहीं है। अगर वह रोक सकता होता तो जरूर रोकता। लेकिन उन्होंने पहले ही उसकी रिवाल्वर छीन ली थी और उसे बुरी तरह पीटा भी।”
राज ने लीना को पजामा पहनाकर उसकी पीठ सहलाई।
-“वे लोग अभी भी वही है?”
-“हां। जब मैं वहां से भागी वे ट्रक में विस्की की पेटियां लाद रहे थे। उन्होंने दूसरा ट्रक गांव से बाहर खंडहरों में छिपा रखा है।”
-“हमें वहां ले चलो।”
-“नहीं, मैं वापस नहीं जाऊंगी।”
-“यहां अकेली रुकोगी?”
लीना ने फीएट को देखा फिर सड़क पर दोनों और निगाहें डालीं और निराश भाव से सर हिलाती हुई फीएट की अगली सीट पर जा बैठी।
बूढ़ा उसकी बगल में बैठ गया।
राज ने ड्राइविंग सीट पर बैठकर धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक फीएट को तिरछी खड़ी मारुति और खाई वाले सिरे के बीच से गुजारकर आगे बढ़ाया।
-“क्या तुमने पैसे के लिए सैनी का खून किया था, लीना? राज नहीं पूछा।
-“नहीं, नहीं। मैं वहां उससे मिलने गई थी और उसे मरा पड़ा पाया।”
-“तो फिर वहां से भागी क्यों?”
-“क्योंकि मेरे रुकने पर सबने मुझे ही खूनी समझना था। जैसे तुम समझ रहे हो। जबकि मैंने कुछ नहीं किया। मैं उससे प्यार करती थी।”
बूढ़े ने खिड़की से बाहर थूका।
-“तुम सैनी के ऑफिस से रकम लेकर भागी थी।” राज बोला।
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