RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
राज सर से पांव तक कांप गया। उसकी अपनी जेब में भी रिवाल्वर थी। मगर उसे निकालने का कोई उपक्रम उसने नहीं किया। चौधरी पुलिस इन्सपैक्टर था। उसके रिवाल्वर निकालते ही चौधरी ने सैल्फ डिफेंस में उसे शूट कर डालना था।
विवश खड़े राज का मुंह सूख गया। पीठ पर पसीने की धार बह रही थी। चौधरी ने सर्विस रिवाल्वर उस पर तान दी।
राज को साक्षात मृत्यु नजर आने लगी।
अचानक रंजना उन दोनों के बीच आ गई।
-“कौशल, इस आदमी ने मेरी मदद की है। कोई गलत इरादा इसका नहीं था। इसे शूट मत करो।” रंजना ने दोनों हाथों से पति की दायीं कलाई दबाकर रिवाल्वर नीचे कर दी। और उससे सटकर उसके कंधे पर चेहरा रख दिया- “तुम इसे शूट नहीं करोगे, प्लीज। कोई और हत्या नहीं होनी चाहिए।”
चौधरी ने यूं उसे देखा मानों पहली बार देख रहा था। धीरे-धीरे उसकी निगाहें उस पर केंद्रित हो गई।
-“नहीं होगी।” उसकी आवाज कहीं दूर से आती सुनाई दी- “मैं तुम्हें घर ले जाने के लिए आया था। मेरे साथ चलोगी?”
रंजना ने सर झुका लिया।
-“हां।”
-“तो फिर जाओ, कार में बैठो। मैं आता हूं।”
-“और फसाद नहीं होगा ? वादा करते हो?”
-“हां, वादा करता हूं।”
चौधरी ने रिवाल्वर वापस हौलेस्टर में रख ली।
रंजना धीरे-धीरे पति से अलग हो गई। अपने ही ख्यालों में खोई सी कार की ओर चल दी।
चौधरी उसे देखता रहा जब तक कि अगली सीट पर बैठकर उसने दरवाजा बंद नहीं कर लिया। फिर अपनी पी कैप उठाकर वर्दी की आस्तीन पर झाड़कर सर पर जमा ली।
-“मैं इस सब को भुला देने के लिए तैयार हूं।” राज की ओर पलटकर बोला।
-“मगर मैं तैयार नहीं हूं।”
-“तुम गलती कर रहे हो।”
-“मैं खामियाजा उठा लूंगा।”
-“क्या हम समझौता नहीं कर सकते ?”
-“कर सकते हैं लेकिन तुम्हारी शर्तों पर नहीं। मैं यही अलीगढ़ में रहूंगा जब तक यह किस्सा खत्म नहीं हो जाता। अगर उल्टे सीधे आरोप लगाकर मुझे लॉकअप में बंद कराओगे तो मैं भी तुम्हें नहीं बख्शूंगा।”
-“क्या करोगे?”
-“तुम पर जवाबी आरोप लगा दूंगा।” '
-“किस बात का?”
-“अपना फर्ज अदा करने में जानबूझकर कोताही करने और बदमाशों के साथ मिली-भगत का।”
-“नहीं।” चौधरी ने उसकी बांह पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया- “समझने की कोशिश करो।”
राज पीछे हट गया।
-“मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूं कि दो हत्याओं के मामले को सुलझाने की कोशिश कर रहा हूं और कोई चीज मुझे रोकने की कोशिश कर रही है। एक ऐसी वर्दीधारी चीज जो देखने में कानून जैसी लगती है। बातें भी कानून की करती है लेकिन उससे कानून की बू जरा भी नहीं आती। उससे बदबू आती है। बेईमानी, खुदगर्जी, मतलबपरस्ती और लालच की।”
चौधरी ने विवशतापूर्वक उसे देखा।
-“मैंने हमेशा अपने फर्ज को पूरी ईमानदारी से अंजाम दिया है।” उसके स्वर में जरा भी जोश नहीं था।
-“पिछली रात भी जब वो ट्रक तुम्हारी आंखों के सामने से निकल गया था?”
उसने जवाब नहीं दिया। कुछेक पल जमीन को ताकता रहा फिर उसी तरह सर झुकाए थके कदमों से पुलिस कार की ओर बढ़ गया।
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