RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“हां। इन्सपैक्टर आज रात यहां आया था।”
-“किसलिए? वह क्या चाहता था?”
-“पता नहीं। जब वे बातें कर रहे थे मैं कमरे में नहीं थी। लेकिन उनकी आवाजों से लगा वे किसी बात पर उलझ रहे थे और इसमें जीत सतीश की हुई थी।”
-“तुमने सुना नहीं। किस बात पर उलझ रहे थे?”
-“नहीं। जब बृजेश.....जब इन्सपैक्टर चौधरी जा रहा था मैंने उससे पूछा क्या बात थी। उसने बताया चोरी गए ट्रक का मामला था।”
-“वह तुम्हारे पति पर शक करता था?”
-“नहीं। वह बहुत ज्यादा गुस्से में था लेकिन सतीश के बारे में उसने कुछ नहीं कहा।”
-“वह कब आया था?”
-“करीब दस बजे।”
-“क्या तुम और इन्सपैक्टर एक-दूसरे से काफी बेतकल्लुफ हो?”
-“हां। बृजेश बरसों तक मेरे परिवार के नजदीक रहा है। उसका पिता और मेरे डैडी गहरे दोस्त थे। मेरे डैडी ने उसकी कालेज की पढ़ाई के समय उसकी काफी मदद की थी।”
-“पैसे से?”
-“हां।”
-“यानी इन्सपैक्टर तुम्हारे पिता का अहसानमंद है?”
-“हां।”
-“क्या इन्सपैक्टर से आज रात हुई बहस में तुम्हारे पति के जीतने की वजह इन्सपैक्टर का तुम्हारे पिता के प्रति एहसानमंद होना भी रही हो सकती है?”
-“बिल्कुल नहीं।” पलभर सोचने के बाद वह बोली- “फर्ज अदायगी के मामले में आपसी ताल्लुकात की कोई परवाह बृजेश नहीं करता।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है?”
-“हां। मैं बृजेश को जानती हूं।”
-“उसे बहुत ज्यादा पसंद भी करती हो?”
-“न-नहीं। और मैं नहीं समझती कि कोई भी उसे बहुत ज्यादा पसंद करता है। लेकिन जो उसने किया है उसकी मैं हमेशा तारीफ करती हूं। उसकी ईमानदारी की इज्जत करती हूं।”
-“ऐसा क्या किया है उसने?”
-“वह सेल्फ मेड मैन है। बहुत स्ट्रगल करके तालीम और यह नौकरी हासिल की है। इस पूरे इलाके में उसे मेहनती, ईमानदार, फर्ज का पाबंद और सबसे अच्छा पुलिस अफसर समझा जाता है।”
-“इन्सपैक्टर से हुई झड़प के बारे में तुम्हारे पति ने कुछ बताया था?”
-“झड़प नहीं, वह महज बहस थी। सतीश ने इस बारे में कुछ नहीं बताया। अगर वह वाकई जुर्म में शामिल था, जैसा कि तुमने बताया है, तो यह समझ में आने वाली बात है।”
-“वह वाकई जुर्म में शामिल था।”
-“तुम इतने यकीन से कैसे कह सकते हो?”
-“मैंने आज रात लीना से बातें की थीं। जब तक वह मुझे तुम्हारे पति का दोस्त समझती रही उसने कई राजदार बातें मुझे बताईं। मसलन, इस ट्रक को गायब करने में उसके और तुम्हारे पति के अलावा जौनी नाम का एक आदमी भी शामिल था। जौनी एक बदमाश है।” उसका हुलिया बताने के बाद बोला- “अपने पति के साथ तुमने भी उसे देखा हो सकता है।”
हुलिया बताए जाने से पहली बार वह हालात की असलियत को समझती प्रतीत हुई।
-“नहीं, मैंने उसे नहीं देखा। यह सच नहीं हो सकता। सतीश मेरे साथ मोटल में रहा था।”
-“सारा दिन?”
-“दोपहर बाद के ज्यादातर वक्त। वह लंच बाद एकाउंट्स देखने आया था। फिर उसने ऑफिस में पीना शुरु कर दिया। कुछ अर्से से वह बहुत ज्यादा पीने लगा था।”
-“तुम्हें पूरा यकीन है, वह ऑफिस से नहीं गया?”
-“हां। इसका मतलब यह नहीं है मैं वहां बैठी उसे वॉच कर रही थी। मगर मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं शूटिंग से कोई ताल्लुक उसका नहीं था।”
-“उसका गहरा ताल्लुक था। वह मौके पर मौजूद था या नहीं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार लोगों में से वह भी एक था।”
-“तुम्हारा मतलब है सतीश ने अपने फायदे की खातिर कोल्ड ब्लडेड मर्डर प्लान किया था?”
-“मुझे पूरा यकीन है ट्रक को गायब कराने की योजना उसकी थी। और मर्डर इसका एक हिस्सा था। इन दोनों वारदातों को अलग नहीं किया जा सकता।”
-“मैं सिर्फ इतना जानती हूं वह मुसीबत में था। मुसीबत कितनी बड़ी थी मुझे नहीं मालूम। उसे मुझको बताना चाहिए था।” एकाएक उसका स्वर धीमा हो गया मानो स्वयं से कह रही थी इस अंदाज में फुसफुसाई- “वह इस हवेली को ले सकता था। कुछ भी ले सकता था।”
-“इस केस में फायदे के लिए मर्डर से भी ज्यादा कुछ है। तुम्हारे पति की हत्या ने इस मामले को और ज्यादा उलझा दिया है।”
-“मेरा ख्याल है तुमने कहा था वह लड़की लीना...।”
-“बेशक, वह लॉजीकल सस्पेक्ट तो है। लेकिन असलियत क्या है मैं नहीं जानता। वे दोनों साथ-साथ यहां से जाने वाले थे। लीना उसे प्यार करती थी।”
-“उसे प्यार करती थी?”
-“अपने ढंग से। उससे और ऐश की जिंदगी से जो उसे देने का वादा उसने किया था। वे नेपाल जाकर हमेशा वहीं रहने वाले थे।”
उसकी आंखों में पीड़ा उभर आई।
-“तुम यह कैसे जानते हो?”
-“खुद लीना ने ही मुझे बताया था। वह झूठ नहीं बोल रही थी। वह जागती आंखों से सपना तो देख रही हो सकती थी लेकिन झूठ नहीं बोल रही थी। और यही एक दिलचस्प बात नहीं थी जो उसने कही थी। दरअसल ओरीजिनल प्लान के मुताबिक ट्रक को हाईजैक कराने में मीना बवेजा ने भी कुछ करना था। लेकिन मनोहर ने लीना को मीना बवेजा के बारे में कुछ ऐसा बताया कि प्लान चेंज करना पड़ गया।”
-“क्या बताया था?”
-“मुझे नहीं मालूम। लीना को मुझ पर शक हो गया और वह मुझे बेवकूफ बना कर भाग गई। मेरा ख्याल था तुम बता सकती हो।”
उसकी आंखें फैल गई।
-“तुमने कैसे समझ लिया।” धीमे स्वर में सावधानीपूर्वक बोली- “कि मीना बवेजा के बारे में मैं कुछ जानती होंऊगी?”
-“मोटल मैं अपने पति द्वारा दखल दिए जाने से पहले तुमने उसके बारे में काफी कुछ बताया था। तुम चाहती थीं उसका पता लगाकर उस पर नजर रखी जाए। याद आया?”
-“मैं इसे भूल जाना पसंद करूंगी। उस वक्त मैं हसद से पागल सी हो गई थी। अब यह खत्म हो गया। सब-कुछ खत्म हो गया। हसद के लिए बचा ही कुछ नहीं।”
-“तुम्हारा मतलब है मीना को कुछ हो गया?
-“मेरा मतलब है, मेरा पति मर चुका है। और किसी के मरे हुए आदमी से जलन या ईर्ष्या नहीं की जा सकती। वैसे भी मेरा अंदाजा गलत था। मीना वह थी ही नहीं।”
-“एक वक्त तो वह थी।”
-“हां। लेकिन वो खत्म हो गया था। पिछले शुक्रवार हुई एक बात से मुझे गलत फहमी हो गई थी। सतीश ने वीकएंड के लिए उसे लॉज इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी। वह चाबियाँ लेने यहां आई और मैंने बातें सुन लीं।” उसके स्वर में पैनापन आ गया- “सतीश को ऐसा करने का कोई हक नहीं था। वो लॉज मेरी है। इसी बात से मैं परेशान हो गई थी।”
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