RE: Thriller Sex Kahani - अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म )
-“काम भले ही न हो लेकिन तुम पहुँचे हुए आदमी हो।” राज मुस्कराकर उसे फूँक देता हुआ बोला- “तुम्हारी तजुर्बेकार निगाहों से इस कंपनी की कोई बात छुपी नहीं रह सकती। जानकारियाँ खुद-ब-खुद तुम्हारे पास आ जाती हैं। अगर मेरा ख्याल गलत नहीं है तो तुम भी पहले ड्राइवर रह चुके हो- बहुत ही कुशल ड्राइवर।”
-“वो अब गई गुजरी बात हो गई।” अधेड़ आह सी भरकर बोला- “मेरे वक़्तों के लोग जानते हैं सूरज प्रकाश लाजवाब ड्राइवर हुआ करता था। बड़ी-बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनियों के मालिक मुझे नौकरी देने के लिए मेरे आगे-पीछे घूमते थे.... खैर, अब उन बातों को याद करना बेकार है। तुम लोड के बारे में पूछ रहे थे?”
-“हाँ।”
-“क्या तुम इस बात को अपने तक रख सकते हो?”
-“मैं वादा करता हूँ।”
-“मैंने बूढ़े को इन्सपैक्टर से बातें करते सुन लिया था। उसमें शराब थी।”
-“पूरा ट्रक लोड?”
-“हाँ। पूरा लोड सत्रह लाख रुपए में इंश्योर्ड था।”
-“मनोहर का भी बीमा था?”
-“उसका लाइफ इंशयोरेंस तो था ही। हर एक ट्रिप पर बीस हजार रुपए का अलग से कंपनी उसका बीमा कराती थी। पहले मैं तुम्हें बीमा कंपनी का आदमी समझ बैठा था इसलिए सीधे मुँह बात नहीं की। क्योंकि उन लोगों ने ट्रक के गायब होने के लिए सीधे मनोहर को ही जिम्मेदार समझना था ताकि उसे कसूरवार ठहरा कर वे लोड के बीमें की रकम देने से बच जाएँ।”
-“मनोहर को कोई कसूरवार नहीं ठहरा सकता।” राज ने आश्वासन दिया।
-“लेकिन यह बात मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही है। उसे कड़ी हिदायतें थीं कि किसी भी वजह से किसी के लिए भी ट्रक नहीं रोका जाए। बूढ़ा बवेजा अपने ड्राइवरों को हमेशा ताकीद किया करता है अगर खुद राष्ट्रपति भी लिफ्ट लेने के लिए ट्रक रुकवाना चाहे तो रोकना नहीं। अगर कोई रास्ता रोकने की कोशिश करता है तो उसे कुचलते हुए गुजर जाओ।”
-“इसके बावजूद, हालात से जाहिर है, मनोहर को ट्रक रोकना पड़ा था। क्यों?”
-“मेरी समझ में सिर्फ एक ही वजह हो सकती है। मनोहर अपनी हिदायतों को भूलकर हाईवे पर किसी के लिए ट्रक रोकने की बेवकूफी कर बैठा और यही उसकी जान की दुश्मन बन गई।”
-“मनोहर तुम्हारा दोस्त था?”
-“उम्र के फर्क के बावजूद मैं उसे पसंद करता था- बहुत ही ज्यादा। हम दोनों एक ही बोर्डिंग हाउस में रहते थे। मुझ पर उसके एक अहसान का कर्जा भी था। जब मेरे पैट्रोल टैंकर वाले ट्रक के ब्रेक फेल हुए मनोहर मेरा हैल्पर हुआ करता था। साठ-सत्तर की स्पीड से दौड़ता ट्रक खाई में जा गिरा। मनोहर ट्रक के नीचे गिरने से पहले ही कूद गया था और अपनी जान की परवाह न करके मुझे ट्रक से निकालकर दूर खींच ले गया था।”
-“मनोहर ने किसके लिए ट्रक रोका हो सकता था? मैंने सुना है उसे औरतों में बड़ी भारी दिलचपी थी।”
-“जवानी में किसे नहीं होती?” वह मुस्कराया- “अपने दौर में मुझे भी थी।” और हर एक रूट पर मैंने दो-तीन पाल रखी थीं।”
-“मनोहर की भी पालतु रही होंगी?”
-“जरूर होंगी। एक की जानकारी तो मुझे भी है। हालांकि यकीन के साथ मैं नहीं जानता।”
-“वह मीना बवेजा तो नहीं थी?”
-“मीना बवेजा? नहीं। वह बवेजा की बेटी है उसे भला अपने बाप के किसी ट्रक ड्राइवर में क्या दिलचस्पी होनी थी?”
-“मैंने तो सुना है मनोहर उसमें बड़ी भारी दिलचस्पी लेता था।”
-“एक मायने में यह सही भी था। मनोहर उसके बारे में काफी बातें किया करता था। उसे मीना का दीवाना भी कहा कहा जा सकता है। लेकिन मीना उससे कभी नहीं मिली। मीना के इंटरेस्ट दूसरे हैं। मनोहर की ज़िंदगी में यह सबसे बड़ा गम था। लेकिन असल में इसकी कोई अहमियत नहीं थी। मेरा कहने का मतलब है जिस दूसरी लड़की की बात मैं कर रहा हूँ, वह मीना से अलग तरह की थी। हफ्ते-दस दिन से वह बराबर मनोहर के ख्यालों में बसी रहती थी। मनोहर ने मुझे बताया की वह उसकी दीवानी थी। मुझे लगा वह अपनी औकात और हैसियत को भूल बैठा था ठीक उसी तरह जैसे उसने मीना के मामले में कोशिश की थी। वह लड़की वाकई हंगामाखेज और क्लब में सिंगर है।”
-“तुम उससे मिले थे?”
-“नहीं। मनोहर ने क्लब के बाहर लगी उसकी फोटो मुझे दिखाई थी।”
-“यहीं। इसी शहर में?”
-“हाँ। सुभाष रोड पर रॉयल क्लब है। पिछले कुछेक रोज से मनोहर का ज़्यादातर वक्त वही गुजरता था और जिस ढंग से उसके बारे में वह बातें करता था उससे लगता है उसके लिए ट्रक भी वह रोक सकता था।”
-“उस लड़की का नाम क्या है?”
-“मनोहर उसे लीना कहता था।” उसने अपने बालों में हाथ फिराया- “लेकिन इस मामले में एक बात मुझे अजीब लगती है। जितनी तेजी और जिस ज़ोर-शोर से वह मनोहर पर मर मिटी थी उससे लगता है इसके पीछे जरूर उसकी कोई तगड़ी वजह होनी चाहिए।”
-“क्यों? मनोहर सेहतमंद और देखने में भी अच्छा खासा था। हो सकता है उसे ऐसे ही युवक पसंद हों।”
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