SexBaba Kahan विश्‍वासघात
09-29-2020, 12:24 PM,
#69
RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात
अब ऐसा नहीं लग रहा था जैसे वे दोनों एक साथ हों।
अपनी गली के दहाने से वह अभी कोई पचास गज दूर था कि वह एकाएक थमक कर खड़ा हो गया।
गली के दहाने पर एक पुलिसिया खड़ा था।
उससे थोड़ा परे गली के भीतर एक चबूतरे पर दो और पुलिसिये बैठे थे।
उसने घबरा कर सोचा क्या उनकी वहां मौजूदगी महज इत्तफाक थी या वे उसी के स्वागत के लिए वहां मौजूद थे।
उसने घूम कर पीछे देखा।
उसके यूं बीच रास्ते में ठिठक कर खड़े हो जाने से उलझन में पड़ी डेजी धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रही थी।
उसने वापिस गली की तरफ देखा।
उसे लगा कि पुलिसियों का ध्यान उसकी तरफ नहीं था।
क्या वह भाग खड़ा हो?
लेकिन उसके ऐसी कोई कोशिश करते ही उनका ध्यान उसकी तरफ जा सकता था।
अपने कोट की भीतरी जेब में मौजूद शनील की थैली अब उसे अपने कलेजे पर बैठा सांप मालूम हो रही थी।
तभी डेजी उसके समीप पहुंची।
“सुनो।”—वह फुसफुसाया।
डेजी ठिठकी। उसने सशंक भाव से राजन की तरफ देखा।
किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर राजन ने अपनी जेब से शनील की थैली निकाली और उसे जबरन डेजी के हाथ में ठूंसता बोला—“इसे मेरी अमानत के तौर पर अपने पास रख लो।”
“यह क्या है?”
“बाद में बताऊंगा। डेजी, प्लीज मुझ पर इतनी मेहरबानी करो।”
“अच्छा!”
“इसे छुपा लो!”
डेजी ने थैली अपने पर्स में ठूंस ली।
“अब गली में इधर से दाखिल होने की जगह परली तरफ से चली जाओ।”
“वह क्यों?”
“सवाल मत करो।”
“लेकिन...”
तभी राजन को लगा कि तीनों पुलिसिये उन्हीं की तरफ देख रहे थे। चबूतरे पर बैठे दोनों पुलिसिये भी उठ कर अपने गली के दहाने पर खड़े साथी के पास आ खड़े हुए थे।
“जाओ।”—राजन फुंफकारा—“जल्दी करो। चलो।”
डेजी उससे अलग हटी और गली के दहाने की तरफ बढ़ने के स्थान पर उससे परे चलने लगी।
तभी तीनों पुलिसियों में से एक डेजी की दिशा में बढ़ा और दो दृढ़ कदमों से राजन की तरफ बढ़े। राजन ने देखा कि उन दोनों में से एक सशस्त्र सब-इन्स्पेक्टर था।
राजन को अपना गला सूखता महसूस हुआ। वह एक क्षण बुत बना वही खड़ा रहा, फिर एकाएक वह घूमा और बन्दूक से छूटी गोली की तरह वहां से भागा।
“खबरदार!”—उसे पीछे से चेतावनी मिली—“रुक जा वर्ना शूट कर दूंगा।”
राजन भागता हुआ दरीबे में दखिल हुआ और सीधा किसी की छाती से जाकर टकराया।
उस आदमी ने उसे जकड़ लिया।
तब पुलिसिये भी उसके सिर पर पहुंच गए।
जिस आदमी ने उसे पकड़ा था, वह इलाके का चौकीदार था जो पुलिसियों की पुकार सुनकर चौकन्ना हो गया था।
राजन को पुलिसियों ने पकड़ लिया।
राजन ने देखा, वे दो थे। तीसरा पता नहीं डेजी के पीछे गया था या यूं ही उधर बढ़ गया था जिधर कि डेजी जा रही थी।
अब वह इस सस्पेंस में भी मरा जा रहा था कि क्या पुलिसियों ने उसे डेजी को कुछ देते या उससे बात करते देखा था।
“कौन है तू?”—सब-इन्स्पेक्टर कड़क‍ कर बोला।
“मेरा नाम राजन है।”—राजन बोला।
“ऊंचा बोल। मिमिया नहीं।”
“मेरा नाम राजन है।”
“कहां रहता है?”
“चारहाट में।”
“अभी कहां जा रहा था?”
“घर जा रहा था।”
“तेरे साथ कौन था?”
“कोई भी नहीं।”
“एक लड़की नहीं थी तेरे साथ?”
“नहीं।”
“हमने देखी थी।”
“एक लड़की मेरे पास से गुजरी थी लेकिन वह मेरे साथ नहीं थी।”
“तू भागा क्यों था?”
“मैं डर गया था।”
“किस बात से?”
राजन को जवाब न सूझा।
“अबे, किस बात से डर गया था तू?”
“मैंने समझा था”—राजन कठिन स्वर में बोला—“कि आप लोग कोई गुण्डे बदमाश थे।”
“क्या कहने! हमारी वर्दी दिखाई नहीं दी थी तुझे?”
“अन्धेरे में नहीं दिखाई दी थी।”
“इतना अन्धेरा तो नहीं था!”
राजन चुप रहा।
“अभी कहां से आया है?”
“सिनेमा देख कर आया हूं।”
“कहां देखा सिनेमा?”
“कश्‍मीरी गेट।”
“कश्‍मीरी गेट पर कहां?”
“रिट्ज पर।”
“वहां कौन सी पिक्चर लगी है?”
“प्रेम रोग।”
“किसके साथ देखी?”
“किसी के साथ नहीं। अकेले देखी।”
“अभी सीधा वहीं से आ रहा है?”
“हां।”
“हवलदार, इसकी तलाशी लो।”
हवलदार आगे बढ़ा।
“चुपचाप खड़े रहना।”—सब-इन्स्पेक्टर घुड़क कर बोला—“वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।”
राजन ने सहमति में सिर हिलाया।
ले लें तलाशी स्साले। अब उसकी जेब में क्या रखा था!
लेकिन एक चीज रखी थी।
हवलदार ने उसकेे कोट की बाहरी जेब में से रिट्ज की दो टिकटों के अधपन्ने बरामद किए।
उसने वे अधपन्ने सब-इन्स्पेक्टर को दिखाए।
“क्यों बे?”—सब-इन्स्पेक्टर घुड़क कर बोला—“तू तो कहता था कि तू अकेला सिनेमा गया था! फिर ये दो टिकटें कैसी हैं?”
राजन के मुंह से बोल न फूटा।
“जवाब दे।”
“गेटकीपर ने गलती से किसी और की दो टिकटें मुझे थमा दी होंगी।”
“क्या बकता है? तूने उसे एक टिकट दी। बदले में उसने तुझे दो अधपन्ने दे दिए?”
राजन खामोश रहा।
“और फिर तू भागा क्यों?”—सब-इन्स्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला।
राजन ने जवाब नहीं दिया, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वे लोग दामोदर के कत्ल के बारे में कुछ नहीं जानते थे। वे कोई गश्‍त के सिपाही थे, जो इत्तफाक से ही रात के उस वक्त गली के दहाने पर मौजूद थे।
फिर तो वह तीसरा पुलिसिया भी जरूर इत्तफाकिया ही डेजी की दिशा में बढ़ा था, वास्तव में उसका डेजी से कोई मतलब नहीं था।
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RE: SexBaba Kahan विश्‍वासघात - by desiaks - 09-29-2020, 12:24 PM

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