Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:08 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"दीदी।” सुधा ने उसकी चुप्पी को तोड़ा था—“इस तरह बैठने से क्या होगा? मुझे तो एक नौकर ने दीवार फांदते हुए भी देख लिया था।"

"देख लिया था?" वह तुरन्त उठकर खड़ी हो गयी।

"हां दीदी.....”

"ओह....."

“जल्दी सोचो दीदी....यदि पुलिस आ गयी तो...?" उसने एक बार बन्द दरवाजे की ओर देखा। जैसे कि वास्तव में बाहर पुलिस खड़ी थी। उसका मस्तिष्क चकराकर रह गया। क्या करे? सारी समस्यायें....सारी उलझनें....सारी मुसीबतें इसी प्रश्न में समाकर रह गयी थीं। कुछ भी तो सुझायी न दे रहा था उसे।

"दीदी.....।"

“ो....हां....।" वह जैसे नींद से जागी।

"जल्दी सोचो दीदी।”

"लेकिन सुधा, क्या सोचं....." शब्दों में वेदना के साथ-साथ विवशता भी थी—“यहां से निकलकर हम दोनों जायेंगे भी कहां? कौन है हमारा जो हम दोनों को सहारा देगा? पुलिस किसी न किसी दिन हमें गिरफ्तार कर ही लेगी। बाद में....?"

"परन्तु दीदी....इस समय तो कुछ सोचो।" सुधा ने अपने शब्दों पर जोर दिया-"हमारे पास कुछ पैसे भी हैं। हम दूर किसी बड़े शहर में चले जायेंगे। हो सकता है हम लोग पुलिस की दृष्टि से भी बच ही जायें....।"

"ठीक कहती है तू।"

"चलो फिर...."

"एक काम कर, दोनों के जरूरी कपड़े छोटे बाले ट्रक में भर ले। पैसे ले और चल। जो भी गाड़ी जायेगी, उसी से निकल जायेंगे।"

"ठीक है दीदी।” सुधा फुर्ती से अन्दर चली गयी। वह बाहर दरबाजे के पास बैठी आहट लेती रही थी। कहीं पुलिस उसका पीछा करती हुई न आ जाये। दोनों ने कुछ ही देर बाद उस मकान को छोड़ दिया। सन्दूक उसी के हाथ में था और वे सड़क-सड़क आगे बढ़ रही थीं। मन में भय समाया हुआ था। चेहरों पर घबराहट थी। अवाले चौराहे पर पुलिस के गश्ती सिपाही की आबाज कानों में पड़ी तो दोनों ऊपर से नीचे तक कांपकर रह गयी थीं। "कौन हो....?"

उसने अपने आपको संभाला था— दीखता नहीं है क्या, स्टेशन जा रहे हैं।"

"स्टेशन! इस समय?" कांस्टेबिल के मन में शंका उभरी।

"क्यों, रेलगाड़ियां रात के समय नहीं चलती क्या?"

“चलती तो हैं....परन्तु.....”

"अपना काम देखो....समझे....." उसने अपनी आवाज को कठोर बनाया।

सुनकर वह कांस्टेबिल सकपका गया। उसने कहा _____"रात के समय आने-जाने वालों पर निगाह रखनी ही पड़ती है। आप चली जाइये....आगे टाकीज के पास आप लोगों को रिक्शा भी मिल जायेगी।"

"ठीक है।” दोनों आगे बढ़ गयीं। आगे चलकर सुधा ने कहा था-"दीदी, मैं तो कांप ही गयी थी।"

" डर ने से काम नहीं चलता पगली....."

"और यदि वह सिपाही हमें रोक लेता.....तब?"

"क्यों रोक लेता? यदि मैं डर जाती तो मामला बिगड़ भी जाता। सुन, जो होना था, वह तो हो ही चुका। अब तो उस मामले को सुधारने में ही भलाई है। तुझे घबराने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। मैं सब कुछ ठीक कर लूंगी।"

"पता नहीं क्या होगा दीदी....."

"सब कुछ ठीक हो जायेगा। हां, एक बात का ध्यान रखना....कोई पूछे तो अपना नाम निर्मला बता देना। याद रहेगा?"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:08 PM

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