Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:04 PM,
#92
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"पता नहीं मुझे क्या होता जा रहा है विनीत । जी चाहता है कि चौबीसों घंटे तुम्हारे पास ही बैठी रहूं....तुम्हें देखती रहूं।" आज अर्चना ने अपने मन की बात कह डाली।

"ऐसा क्या है मुझमें?"

"पता नहीं।” अर्चना बोली- “मैं स्वयं नहीं समझ पाई कि मेरे मन को यकायक ही यह क्या हो गया है। क्यों वह प्रत्येक समय तुम्हारी छवि को देखना चाहता है।"

"शायद मुझे नहीं, मेरे दर्द को।"

"विनीत !"

"दुःखी इन्सान को देखकर हमदर्दी पैदा हो ही जाती है। परन्तु ऐसे लोग भी तो कम ही हैं जो किसी की हालत पर तरस खाते हैं। मुझे धन्यबाद अदा करना चाहिये।"

"नहीं विनीत ।"

"फिर क्या बात है?"

“कह नहीं सकती।” अर्चना बोली- लेकिन क्या तुमने....मेरा मतलब..!"

"अर्चना, स्पष्ट शब्दों में बताओ तो कुछ समझू भी। पहेलियों का अर्थ निकालना मैं नहीं जानता। स्पष्ट कहो....।"

"दरअसल....खैर....!" अर्चना अपने भावों को व्यक्त नहीं कर पा रही थी।

"कहो...."

"प्रीति ने तो तुमसे प्रेम किया था....!"

"हां परन्तु ....!"

“जब तुम उससे पहली बार मिले थे....तब उसने क्या कहा था?"

"कुछ ठीक से याद नहीं रहा।” विनीत बोला—“बैसे उसने कुछ कहा जरूर था। परन्तु तुम्हें प्रीति से क्या मतलब....?"

अर्चना कुछ भी न कह सकी। संकोचवश उसके शब्द होठों को चीरकर बाहर न आ सके थे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी बात को किस प्रकार कहे। चाय समाप्त हो चुकी थी। खामोशी से उठकर वह कमरे से बाहर चली गई।

विनीत उसे जात हुय दखता रहा। अनायास ही उसके मुंह से निकला—“तुम सुन्दरी हो अर्चना, सभी कुछ है तुम्हारे पास। परन्तु मैं तुम्हें प्यार नहीं दे सकता।" तौलिया उठाकर वह बाथरूम में चला गया।

स्नान आदि से निवृत्त होकर वह आइने के सामने कंघा करने लगा। सहसा दर्पण में अर्चना के प्रतिबिम्ब को देखकर वह कुछ चौंका। परन्तु उसने इन भावों को चेहरे पर न आने दिया। मन-ही-मन कह उठा वह-कैसी नादान है अर्चना....एक टूटे हुये तारे को पकड़ने की कोशिश कर रही है।

अर्चना ने निकट आकर कहा- कहीं जाने का इरादा है क्या?"

"तुम बताओ।"

"मैं क्या बताऊं! सिर्फ पूछ रही हूं।"

“आज तो नहीं, परन्तु लगता है कि मुझे जल्दी ही यहां से जाना पड़ेगा।"

“क्यों...?" वह चौंकी।

"मैं नहीं चाहता कि मेरे यहां रहने से तुम्हें कोई दुःख हो।” केबल अपने शब्दों की प्रतिक्रिया देखने के लिये विनीत ने कह दिया।

"परन्तु मुझे दुःख? पता नहीं क्या कह रहे हैं आप?"

"अभी तो तुम मेरे पास से दुःखी होकर गई थीं। यदि मैं यहां न होता तो तुम्हें इतना दुःख महसूस क्यों होता?"

"विनीत ....समझ में नहीं आता तुम इतने अनजान क्यों बनते हो।"

उसने उत्तर में तुरन्त ही कुछ नहीं कहा। बाल ठीक करने के बाद वह सोफे पर बैठ गया।
एक बार अर्चना की ओर देखा। फिर कहा-"अच्छा अर्चना, यदि आज मैं वास्तव में यहां से चला गया तो तुम्हें दुःख होगा!"

"बैसी कल्पना मात्र से ही मैं कांप उठती हूं।"

"क्यों....?"

“न जाने क्यों....." वह यकायक ही गम्भीर हो गई— ऐसा लगता है जैसे तुमने मेरा कुछ चुरा लिया हो। उसके बिना मेरे लिये जिंदा रहना असम्भव-सा हो जायेगा। परन्तु विनीत....तुम बार-बार इन्हीं शब्दों को क्यों दुहराते हो?"

“इसलिये कि मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:04 PM

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