Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:04 PM,
#90
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
विनीत खामोश ही रहा तथा अर्चना के बराबर में सीट पर बैठ गया। दरवाजा बन्द हुआ....एक झटका खाकर गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी। बैठे-बैठे उसने उचटती निगाह अर्चना के चेहरे पर डाली। अब वह भी होठों-ही-होठों में मुस्करा रही थी। उसकी मुस्कान में विनीत को व्यंग लगा। तभी अर्चना पूछ बैठी—"आपके मित्र तो घर ही होंगे?"

"तब तो आप....इस गली में रोजाना आया करेंगे?"

"क्यों ....?"

"मित्र महोदय से मिलने।"

"प्रतिदिन आना जरूरी है क्या?"

"दरअसल अपनों के पास बैठकर आदमी का दिल वहल जाता है।"

"तो...?"

"आपका इस शहर में है ही कौन जो आपके दिल को वहला सके? इसलिये आपको प्रतिदिन यहां आना ही पड़ेगा। खैर, मैं ड्राइबर से कह दूंगी।"

“जी....."

"क्या मैं आपके मित्र का नाम जान सकती हूं?"

“जी....?"

"श्रीमान् जी, मैं मित्र महोदय का नाम पूछ रही हूं।"

"नाम....हां....प्रकाश....” वह हकलाया।

अर्चना तुरन्त खिलखिलाकर हंस पड़ी। विनीत समझ नहीं सका कि वह क्यों हंस रही है। हंसी रुकने पर उसने कहा-"तो प्रकाश नाम है उनका?"

"हां....।"

"और मान लो इस नाम को प्रीति कर दिया जाये तो कैसा रहेगा? मैं समझती हूं इससे खूबसूरत नाम और कोई नहीं हो सकता। आपका क्या विचार है?"

“जी....?"

"मिस्टर विनीत, आदमी को अपनों से कोई बात नहीं छुपानी चाहिये। यदि आप बहीं कह देते तो मैं आपको गाड़ी से न छोड़ देती। कैसी है प्रीति?"

"ठीक है।" उसने कहा।

"कुछ कह रही थी?"

"कुछ नहीं।" विनीत ने गहरी सांस ली- नहीं, मैंने उससे कह दिया है।"

"क्या?"

“यही कि अपने को रात-दिन आंसुओं में डुबाने से क्या लाभ? मैं कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता।" उसने अर्चना से झूठ बोला।

"झूठ...."

"क्या मतलब?" विनीत चौंका।

"आपने प्रीति से यह नहीं कहा।"

"और....?"

"आपने कहा कि मेरी दोनों वहनें मिल जायें, उसके बाद मैं तुम्हें अपना लूंगा।"

"परन्तु आप....."

"दीवारों के भी कान होते हैं विनीत साहब।” अर्चना बोली-“मैं दरवाजे के पास ही खड़ी सारी बातें सुन रही थी।"

.
"ओह...."

“कहिए, झूठ कहा मैंने?"

"नहीं...." विनीत इस विषय में अधिक बात ही नहीं करना चाहता था। अर्चना भी खामोश हो गई।

रास्ते भर विनीत श्याम लाल के शब्दों पर गौर करता रहा। उन्होंने कहा था कि तुम यहां आओ-जाओ, परन्तु प्रीति से मिलने की कोशिश मत करना। एक ओर अपनत्व, दूसरी ओर नफरत। आखिर क्या अर्थ था उनके कहने का? प्रीति ने बताया था कि वे उस पर प्रतिबंध भी नहीं लगा रहे हैं। कह रहे हैं कि तु किसी भी लड़के से शादी कर ले, परन्तु विनीत का बिचार छोड़ दे। आखिर उसमें ही ऐसी क्या बात है? उसने विचारों में झूलते हुए काफी सोचने की कोशिश की। परन्तु वह किसी भी परिणाम पर न पहुंच सका।। उसने स्वयं महसूस किया कि ऐसी दशा में उसे प्रीति के घर नहीं जाना चाहिये था। उसे भविष्य में वहां जाना भी नहीं चाहिये। विचारों में उलझते हुये उसे समय का ध्यान ही न रहा। उसने दृष्टि उठाकर देखा। गाड़ी कोठी के प्रांगण में आ चुकी थी।

अर्चना ने गाड़ी रोकी। बाहर आकर अर्चना ने कहा- अधिक सोचना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है....."

"ओह!" अपने कमरे में पहुंचकर विनीत बिस्तर पर गिर पड़ा। उलझनें....प्रश्न और समस्यायें। एक घने कुहरे में फंसकर रह गया था वह। समझ में नहीं आया क्या करे? सुधा....अनीता....प्रीति। इन्हीं रिश्तों के बीच उसकी जिन्दगी जैसे पिसकर रह गई थी। जिन्दगी कहां से कहां आ पहुंची थी! परन्तु वह अब तक कुछ भी न पा सका था। इतना खोजने के बाद भी उसे कुछ न मिल सका था। अन्तरात्मा ने कहा-"आखिर तुझे यहां पड़े रहने से भी क्या मिलेगा? बस रोटी और कपड़ा! क्या इन्हीं के लिये तू अपनी वहनों को भूल जायेगा?"
"ऐसा कैसे हो सकता है?"
..
"क्यों नहीं हो सकता? बोल, तूने उनकी खोज की....!"
“परन्तु मैं उन्हें हूंहूं भी तो कहां?"
"मूर्ख.... एक जगह बैठने से कुछ नहीं होगा। उल्टे एक बात और होगी, अर्चना तेरी ओर झुकती चली जायेगी....।"
“यह झूठ है।”
“सच है....देख लेना! तू केबल अर्चना और प्रीति के दायरे में उलझकर रह जायेगा....तथा अपने उद्देश्य को भूल जायेगा।"

सहसा कमरे में अर्चना को देखकर उसकी विचारधारा टूट गई। वह उठकर बैठ गया। उसे इस बात का पता भी न चला था कि अर्चना कब से उसके पास खड़ी थी। "शायद सो रहे थे आप?"

“नहीं तो....यूं ही.....”

“फिर....?"

"इधर-उधर की सोचने लगा था। हां, आपने एस.पी. साहब को फिर फोन किया था क्या?"

"नहीं, मैंने पापा से कह दिया था कि वे शाम को उनसे मिलते आयें। बैसे मुझे पूरी उम्मीद है कि सुधा और अनीता इसी शहर में होंगी। मैं इस विषय में स्वयं सक्रिय हूं। मेरा अनुमान है कि वे जल्दी ही मिल जायेंगी।"

"अर्चना जी....मन नहीं मानता।"

“मतलब?"

“जी चाहता है कि उठं और शहर की प्रत्येक गली में उन्हें खोजू। आप जानती हैं कि उनके बिना मुझे शांति नहीं मिलेगी, यूं कहने के लिये मुझे मुस्कराना भी पड़ता है....सोना भी पड़ता है....परन्तु जिस जीवन में शांति न हो....."

"विनीत साहब, यह कोई गांव अथवा कस्बा नहीं है। इतना बड़ा शहर है, किसी को खोज लेना बड़ा कठिन काम है। संयोग से कोई मिल जाये तो बात दूसरी है। परन्तु आमतौर से ऐसे मोकों पर संयोग भी काम नहीं करता।"

"समझ में नहीं आता क्या करूं!"

"ईश्वर पर भरोसा रखिये....सब कुछ ठीक हो जायेगा।"

"मगर...."

"मैं कसर नहीं उठा रखूगी।"

उसी समय नौकर ने कमरे में आकर मेज पर खाना लगा दिया। बेमन-सा विनीत उठा तथा सोफे पर आकर बैठ गया। अर्चना ने बैठते हुये कहा—"आपके मन में जो बात है, उसे मैं जानती हूं।"

“जी....” विनीत का हाथ तौलिये तक पहुंचकर रुक गया।

"आपकी दोनों वहनें चाहें जिस अबस्था में हों, बे प्रत्येक दशा में जिंदा होंगी।"

"काश!"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:04 PM

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