Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:57 PM,
#58
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
धीरे-धीरे तुफान तो गुजर गया, परन्तु अपने निशानों को छोड़ गया था। घाब नासूर बन चुके थे। विनीत को जब भी मां की याद आ जाती थी, वह रो उठता था और घण्टों-घण्टों मां की याद में तड़पता रहता था। फिर भी जीवन अपनी उसी गति से चलता रहा। विनीत मां की मृत्यु होने के कारण बीमार पड़ गया था। वह कई दिनों तक ऑफिस भी नहीं जा पाया था। एक दिन वह घर पर ही लेटा था तो ऑफिस से उसका मैनेजर देखने आया। कम्पनीका मैनेजर किशोर अच्छा आदमी था। आयु में अधिक नहीं था। वह विनीत से पहले दिन से ही काफी अच्छे ब्यबहार से पेश आया था। वह बीमार हुआ था और आठ दिनों तक दफ्तर नहीं जा पाया था। उसी अबसर पर मैनेजर किशोर उसके घर आया था। बहू कमरे में लेटा था और मैनेजर को अपने घर आया देखकर चौंका था। "साहब! आप....."

“तुम बीमार थे....आज मैं इधर से गुजर रहा था। सोचा तुम्हारी बीमारी के विषय में ही पूछता चलूं। तुम कैसे हो अब....?"

“जी ठीक हूं....आपने तो व्यर्थ ही कष्ट किया। मैं तो कल स्वयं ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाता।"

"कोई बात नहीं....। रोज तुम आते थे, आज मैं चला आया। हां, घर में अकेले ही रहते हो क्या....?" किशोर ने कमरे से बाहर देखते हुए पूछा था।

“फिलहाल तो ऐसा ही समझ लीजिये साहब।" वह सहसा ही दुःखी हो गया था
- "पिताजी काफी पहले चल बसे थे। मां को भी गुजरे हुये तीन महीने बीत गये हैं। घर में दो वहनें हैं....."

"ओह....." तभी अनीता दवाई के लिये गर्म पानी लेकर अन्दर आयी थी। उसने पानी का गिलास लेकर कहा था-"अनीता, मैनेजर साहब हैं....इनके लिये कुछ....."

"नमस्ते।" अनीता ने अभिबादन के लिये हाथ जोड़े थे। उसके अभिवादन का उत्तर देने के बाद किशोर ने कहा था-"मिस्टर विनीत ....मैं इस समय चाय बगैरह कुछ नहीं लूंगा।"

"क्यों....?"

“मैं अभी-अभी खा-पीकर आ रहा हूं।"

"मैनेजर साहब, छोटे आदमियों को भी सेवा का अवसर मिलना चाहिये....। अनीता, तुम जाओ।" वह चली गयी। चाय पीने के बाद मैनेजर साहब चले गये थे। गोली लेने के बाद वह भी अपने विचारों में उलझ गया था। उस दिन के बाद मैनेजर का स्वभाव उसके प्रति और भी नरम हो गया था। बल्कि एक दिन तो उन्होंने कह भी दिया था-"मिस्टर विनीत, इन्सान का सबसे पहला गुण है इन्सानियत। उसे अपने चारों ओर के वातावरण में यह बात देखनी चाहिये कि कौन लोग ऐसे हैं जिन्हें उसकी सहायता की आवश्यकता है। बिना किसी स्वार्थ के उसे यथाशक्ति दूसरों की सहायता करनी चाहिये। मैं छोटे और बड़े बाली बात को भी नहीं मानता। जब सारे लोग ईश्वर की दृष्टि में एक हैं तो मानव की दृष्टि में भी सब समान होने चाहिये।"

“जी...."

"भविष्य में कभी मुझे मैनेजर मत समझना।"

“जी....?" वह चौंका था।

"मैं भी तुम्हारीही तरह एक इन्सान हं मिस्टर विनीत।" मैनेजर ने कहा था—“समय की बात है कि तुम क्लर्क बन गये और मैं मैनेजर। मैं समझता हूं,आपसी सम्बन्धों में यह पद बाली बात नहीं आनी चाहिये। मुझे तुम्हारे विषय में सब कुछ पता चल चुका है। और मुझे तुमसे पूरी सहानुभूति है। मेरे योग्य कोई सेवा हो तो निःसंकोच बता देना।"

"ओह....." वह मैनेजर के चेहरे की ओर देखता रह गया। उसकी समझ में नहीं आया था कि वह उनकी प्रशंसा में क्या कहे। उसने केवल इतना कहा था-"आप देवता हैं साहब।"

"देवता नहीं, इन्सान कहो।" विनीत पर किशोर ने सहानुभूति दिखाई थी। वह किशोर के विषय में सोचने लगा हमारे मैनेजर अपनी कम्पनी के नौकरों तक से कितना प्रेम करते हैं। विनीत की नजरों में किशोर की इज्जत बढ़ गई थी। कहां उसे नौकरी ढूंढने में इतनी ठोकरें खानी पड़ी थीं और एक मैनेजर ने तो इतने कटु शब्द कहकर उसको बेइज्जत कर दिया कि-"हम बी.ए. पास को चपरासी भी नहीं रखते....।

वह उस दिन कितना हताश हुआ था, बताया नहीं जा सकता। उस मैनेजर में और किशोर में बहुत अन्तर था। किशोर ने अपने व्यवहार से विनीत पर अपना पूरा अधिकार जमा लिया था। विनीत भी उसे अपना अच्छा दोस्तही मानने लगा था। उस दिन के बाद मैनेजर किशोर यदा-कदा उसके घर पर आ जाते थे। कुछ समय बाद आपस की जो दूरी थी, वह लगभग समाप्त ही हो गई थी। सम्बन्ध आपस में दोस्तों जैसा ही रह गया था। विनीत को इससे बेहद खुशी थी कि उसको किशोर जैसा मित्र मिल गया था। वैसे भी आज तक उसका कोई मित्र नहीं था। दोनों में सम्बन्ध दृढ़ हो गये। पारिवारिक ब ब्यबहारिक दोनों तरह के सम्बन्ध वह आपस में ठीक प्रकार से निभाते आ रहे थे। एक दिन विनीत तो दफ्तर चला गया था। तब किशोर ने विनीत के घर पर जाने का प्रोग्राम बनाया। उसको पता था कि घर में केवल अनीता ही होगी। विनीत तो दफ्तर में होगा और सुधा पढ़ने चली गई होगी। किशोर की आंखों में बही दिन घूम गया था जिस दिन उसने अनीता को पहली बार देखा था—जब वह पानी लेकर विनीत को दबाई देने आयी थी। किशोर वहीं बैठा था। अनीता को देखते ही किशोर के मस्तिष्क में खलबली मच गई थी। उसने उसी दिन से उसका फायदा उठाने की सोच ली थी। इसीलिये उसने विनीत से दोस्ताना व्यवहार अपनाया था। और आज शायद उसकी इस इन्तजार की हद खत्म होने का समय आ गया था। उसकी आंखों में वासना चमक उठी थी। किशोर जल्दी-जल्दी नहा-धोकर तैयार हुआ। उसने ब्लैक पैन्ट ब सफेद शर्ट पहनी, उस पर ब्लैक रंग की प्रिन्ट वाली टाई लगाई और बालों को सलीके से बनाकर एक बार स्वयं को शीशे के सामने खड़ा होकर ऊपर से नीचे तक देखा। देखने के पश्चात् वह स्वयं ही प्रसन्न हो उठा और सोचने लगा आज अनीता मुझे देखते ही इम्प्रेस हो जायेगी। वास्तव में वह आज अन्य दिनों की अपेक्षा ठीक ही लग रहा था। उसने कोबरा' का परफ्यूम उठाकर अपने । ऊपर लगाया और टाई को ठीक करता हुआ मन-ही-मन मुस्कराकर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:57 PM

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