Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:55 PM,
#47
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"मैनेजर ने कहा था कि तुम नौजवान हो, तुम्हारे शरीर में चट्टानों तक को तोड़ देने वाली शक्ति है। तुम्हारे मन में विस्तृत सागर तक को पार करने का साहस होना चाहिये। ये अपने चेहरे पर उदासी क्यों ओढ़ रखी है तुमने विनीत ? विनीत, लोग उदास चेहरे को देखना पसंद नहीं करते। लोग इन्सान को इन्सान के रूप में देखना चाहते हैं। तुम्हें निराश नहीं होना चाहिये।"

विनीत की पूरी बात सुनने के पश्चात् प्रीति ने कहा- मैनेजर ने सच ही तो कहा था।"

"हां।” उसने एक लम्बी परन्तु गहरी सांस ली— नौकरी लगने से शायद अब मेरे सर पर से बोझ उतर जायेगा।"

"कैसा बोझ?" अन्जान बनी प्रीति ने पूछा।

"सबसे पहले मेरी वहन अनीता की शादी का बोझ....जो मैं पैसे के बिना नहीं कर सका था। अगर नौकरी लग गई तो सबसे पहले मैं उसकी शादी की तैयारी करूंगा। साथ-साथ मां का भी अच्छे डॉक्टर से इलाज कराऊंगा....ये दोनों मेरे सिर पर एक भारी बोझ हैं। मैं मां की बीमारी हर हाल में ठीक करवाना चाहता हूं। मैं ये नहीं चाहता कि मां को कुछ हो जाये....'" वह लम्बी सांस छोड़कर चुप हो गया। पुनः बोला-"प्रीति, तुम तो जानती हो, मां के अलावा मेरा इस दुनिया में है ही कौन?"

विनीत की बात सुनने के बाद प्रीति बोली- और मेरे विषय में आपने कुछ नहीं सोचा।
तुम्हारी नौकरी लगने से तो मेरे सिर से भी बोझ उतर जायेगा।"

"क्या मतलब?" विनीत ने आश्चर्य से पूछा।

"विनीत।" प्रीति ने प्रसन्न स्वर में कहा- हमारे प्रेम के रास्ते में तुमने जो विवशता की दीवार खड़ी कर रखी थी, अब वह विवशता खत्म हो जायेगी। हमारे बीच की दूरियां भी समाप्त हो जायेंगी। फिर हम दोनों सदा-सदा के लिये एक-दूसरे के हो जायेंगे।"

"काश!" हताश स्वर उसके मुंह से निकला।

"क्या मतलब...?" प्रीति ने विनीत के चेहरे को हैरानी से देखा।

"प्रीति!" विनीत ने कहा-प्रीति! ना जाने क्यों....समय पर विश्वास नहीं होता? पता नहीं यह समय मेरी जिन्दगी के साथ ऐसा खिलवाड़ क्यों कर रहा है? पता नहीं । प्रीति....मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था जिसका नतीजा मुझे भुगतना पड़ रहा है। कभी कभी अपने आपको बदनसीब समझने लगता हूं....."

"विनीत, नसीब तो बनाने से बनता है। और अगर तुम अपने जीवन में इसी तरह निराश होते रहोगे तो फिर नसीब को ही रोते रहोगे। अगर साहस और हिम्मत का दामन नहीं छोड़ा तो नसीब तुम्हारा साथ देगा। बरना.....।"
"नहीं प्रीति, मेरा भाग्य ही खराब है।"

"विनीत ।" कहने के तुरन्त बाद ही प्रीति जैसे झंझला उठी– "विनीत, समझ में नहीं आता आखिर तुम्हें क्या हो गया है। तुम प्रत्येक समय निराशा में डूबी बातें करते रहते हो? तुम्हें समझना चाहिये कि समय ऐसी चीज नहीं है जिसको दुर्भाग्य का नाम दे दिया जाये। भाग्य और दुर्भाग्य, ये दोनों बातें इंसान के हाथ में होती हैं। उसे इस बात का पूरा अधिकार होता है कि वह अपने भाग्य को जैसा चाहे बना ले।"

"ये सिर्फ कहने की बातें हैं प्रीति....."

"कहने की क्यों?" प्रीति ने पूछा।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:55 PM

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