Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:52 PM,
#40
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
एक दिन वह एक प्राइवेट फर्म के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी के लिये गया। "मैनेजर का आफिस किधर है?" विनीत ने मेन गेट पर बैठे चपरासी से पूछा।

"जी सीधे चलकर दाहिने हाथ पर पहला कमरा है। वैसे आपको मिलना किससे है?" चपरासी ने जवाब देकर पूछा।

"मुझे मैनेजर से ही मिलना है।" विनीत का स्वर सपाट था।

"ठीक है, जाइये।” चपरासी ने गेट खोलकर कहा। विनीत अन्दर घुसा तो गेट स्वयं ही बन्द हो गया। कुछ कदम आगे चलकर वह राईट में मुड़ा, मुड़ते ही मैनेजर का ऑफिस दिखाई दिया। लेकिन शायद मैनेजर किसी खास मीटिंग को अटैन्ड कर रहे थे। उसने शीशे में देखा और साइड में खड़ा हो गया। करीब एक डेढ़ घन्टा बाहर खड़ा रहा। तब कहीं मीटिंग खत्म हुई तो वह अन्दर गया। "बैठिये।" मैनेजर ने विनीत को बैठने को कहा।

“बैंक्यू सर।" वह बैठ गया। "सर, मैंने टाइपिंग भी सीख रखी है। आपके यहां क्लर्क की सीट खाली है। क्या मैं उस पद पर रखा जा सकता हूं।"

"हो....हां क्यों नहीं।" कुछ सोचते हुए—“मगर आपकी एजुकेशन कितनी है?"

“सर, मैंने बी.ए. किया है।” विनीत ने शालीनता से कहा।

"इसके अलावा और कोई डिग्री, तजुर्बा मतलब ये कि अब से पहले इस तरह का कोई काम किया हो?"

"नहीं सर! मैं बस बी.ए. हूं।"

मैनेजर व्यंगात्मक स्वर में बोला- केबल बी.ए. पास को तो हम चपरासी भी नहीं रखते।"

यह सुनकर विनीत सन्न रह गया। उससे कुर्सी से उठा भी नहीं गया। लेकिन इससे पहले मैनेजर कहता 'तुम जा सकते हो' वह उठा और गेट से बाहर निकल गया। मैनेजर का व्यंगात्मक स्वर सुनकर वह तिलमिला उठा था। मगर कह कुछ भी न सका। विनीत को स्वयं पर भी क्रोध आ रहा था। उसके मन में एक प्रश्न उभरा-आखिर मैं इतने सालों तक कॉलिज में क्यों रहा....क्यों किताबों के साथ माथा-पच्ची करता रहा? आखिर क्यों? वह सदैव यही प्रयत्न करता रहा कि अच्छे नम्बरों से पास होना चाहिये....आखिर क्यों....? सब कुछ ब्यर्थ....कोई नतीजा नहीं। प्रश्न के उत्तर में उसके मुंह से केवल यही वाक्य निकला। यही सोचता-सोचता वह चलता जा रहा था। थके-थके कदमों से....|

अब उसके पैरों ने जवाब दे दिया....वे आगे को चलने को भी तैयार न थे। वह पास के एक पार्क में सुस्ताने के लिये पेड़ के नीचे बिछी एक बैंच पर बैठ गया। उसने पीछे गर्दन टेक ली और आंखें मूंद लीं। उसकी आंख लग गई।

ऐ! सुनो।" वहां के माली ने उसकी निद्रा तोड़ी। वह हड़बड़ाकर उठा। “कौन हो तुम? शाम हो गई है, क्या घर नहीं जाना है?" माली ने आंखें खुलते ही कई सबाल कर डाले।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:52 PM

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