RE: RajSharma Stories आई लव यू
ठीक आठ बजे मैं और शीतल ऋषिकेश पहुँच गए थे। शीतल को होटल 'गंगा किनारे' में ठहराकर मैं घर की ओर बढ़ गया। जैसे ही घर पहुंचा, मम्मी ने गेट खोला। घर में घुसते ही मुझे यह भनक लग गई कि माहौल कुछ ठीक नहीं है। मैं समझ गया कि मम्मी ने पापा को सब पहले से ही बता रखा है। अंदर वाले कमरे में पहुंचा, तो पापा सामने शेविंग कर रहे थे। मैंने पैर छुकर नमस्ते कहा।
पापा की तरफ से नमस्ते का जवाब तो आया, लेकिन उसमें बह गर्मजोशी नहीं थी, जैसी हमेशा होती थी।
"राज, जाओ तुम नहा लो, फिर नाश्ता तैयार है।"- माँ ने कहा।
"माँ, में नहाकर ही आया हूँ; बम भूख लगी है।”- मने कहा।
“ठीक है, तेरे पापा नहा लें, नाश्ता लगाती हूँ, तब तक तू चाय पी।"- माँ ने कहा।
थोड़ी देर में पापा भी कुर्ता-पजामा पहनकर नाश्ते की टेबल पर आ गए। भाई-बहन भी सामने ही बैठे थे। पूरी फेमिली ने साथ में नाश्ता किया। नाश्ते के दौरान पापा ने अचानक पूछ लिया
"तो तुमने तय कर ही लिया है कि शादी अपनी मर्जी से ही करनी है?"
"नहीं पापा, ऐसा नहीं है; आपकी मर्जी से अलग मेरी मर्जी नहीं है।" - मैंने कहा।
"बेटा, मेरा अनुभव आपसे काफी ज्यादा है। यह बातें किसी और से कहना... सब समझ रहा हूँ। जब तय कर ही लिया है, तो शादी भी करके आ जाते, ये मिलवाने का नाटक ही क्यों कर रहे हो?"- पापा ने कहा।
"नहीं पापा, आप शायद गलत समझ रहे हैं; यकीन मानिए ऐसा कुछ नहीं है। शीतल एक अच्छी लड़की है, आप मिल तो लीजिए: अगर पसंद न आए, तो आपका फैसला ही सब-कुछ होगा।"- मैंने कहा।
.
बीच में माँ ने बात को सँभालते हुए कहा- "आप भी क्यों बेकार में राज पर बिगड़ रहे हैं; अभी कौन-सी शादी हो चुकी है, वह मिलवाने ही तो आया है। आजकल के बच्चे तो वरना माँ-बाप को पूछते भी नहीं हैं।"
पापा से कुछ कहने की हिम्मत तो अब मुझमें नहीं थी, इसलिए माँ की तरफ देखते हए मैंने कहा- “माँ, शीतल वहाँ इंतजार कर रही होगी; शायद हम लोगों को अब चलना चाहिए।"
“ठीक है, चलो।"- पापा ने कहा।
कार से मैं, मम्मी-पापा और भाई-बहन परमार्थ-निकेतन पहुँचे। सभी को बहाँ छोड़कर मैं शीतल को होटल लेने चला गया। पंद्रह मिनट बाद शीतल और मैं परमार्थ-निकेतन पहुँचे। लाइट गरीन और ब्लैक कलर के पारंपरिक लिबास में शीतल बेहद खूबसूरत और आकर्षक लग रही थीं। लंबे और घने बाल उनकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रहे थे। उनके चेहरे पर अलग ही कशिश झलक रही थी।
परमार्थ निकेतन के प्रवेश-द्वार के पास लगी रेलिंग के पास मम्मी-पापा और भाई-बहन खड़े थे, तो दूसरी ओर से शीतल और मैं उनकी तरफ बढ़ रहे थे। इस वक्त सभी के मन की स्थिति अलग-अलग थी। शीतल थोड़ी असमंजस में और डरी हुई थी। शीतल की पहली झलक देखकर माँ खुश थीं और आगे की बात करने के लिए सोच रही थीं। छोटी बहन और भाई सब-कुछ ठीक होने की दुआ कर रहे थे और दूर से शीतल को आता देख मुस्कान बिखेर रहे थे। पापा, विचार शून्यता में थे। शीतल का सौंदर्य और सलीका, उन पर अभी तक कोई प्रभाव नहीं जमा पाया था। वह उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर विचार कर रहे थे। सब सामान्य व्यवहार करते हुए सोच में मगन थे, तभी मैं और शीतल, माँ-पापा के करीब पहुंचे।
"माँ, ये शीतल हैं और शीतल ये माँ-पापा हैं।"- मैंने कहा। शीतल ने हाथ जोड़कर मम्मी-पापा को नमस्ते किया। इसके बाद मैंने अपनी छोटी बहन और भाई मे शीतल का परिचय कराया। बहन उस गंभीर माहौल को हल्का बना रही थी। ___
“राज, यहाँ जान-पहचान बाले आते-जाते रहते हैं; फिर यहाँ तसल्ली से बात भी नहीं हो पाएगी...अच्छा रहेगा किसी रस्टारंट में चला जाय।"- पापा ने कहा।
पापा की इस पहल को देखकर मुझे कुछ तसल्ली हुई। मुझे लगा शायद शीतल को देखकर पापा खुश हो गए हैं। मेरी उम्मीद गहरी होती जा रही थी। सभी लोग गाड़ी में बैठे और पास के एक रेस्टोरेंट में जा पहुँचे। शीतल से मिलवाने के लिए मैंने नमित, शिवांग और ज्योति को भी बुला लिया था। रेस्टोरेंट में चाय-कॉफी का ऑर्डर शुरू किया गया। इसके बाद बातें आगे बढ़ीं।
पापा ने शीतल से पहला सवाल पूछते हुए कहा- “तो आप अपने बारे में बताड़ा बेटा कुछ: हमारे बारे में तो राज ने बता ही रखा होगा।"
|