RE: RajSharma Stories आई लव यू
"हाँ, फिनिश कर लो तुम...कल के लिए कुछ मत रखना।"
"...और हाँ, शाम को आप हमारे साथ मार्केट भी चल रहे हैं।"
"कुछ खास?" "कुछ शॉपिंग करनी है अपने और अपनी बेटी के लिए।"
“ठीक है, जल्दी निकलना फिर।"
"ओके...बॉय।"
आज संडे था। सुबह के तीन बजे थे। शीतल भी उठ चुकी थीं। कनॉट प्लेस से ठीक चार बजे हम दोनों ऋषिकेश के लिए निकल गए थे। सड़कें एकदम खाली थीं। हम दोनों के मन में एक तरफ डर था, तो दूसरी तरफ उम्मीद थी। हम आपस में बातचीत कर रहे थे और भीतर-भीतर दोनों, भगवान से प्रार्थनाएँ कर रहे थे कि सब ठीक हो।
"राज, तुम कितने पॉजिटिव इंसान हो न; लेकिन मान लो मॉम-डैड तैयार नहीं हुए, तब?"- शीतल ने कहा।
"अरे शीतल, पहले ही इतना नहीं सोचते; अब थोड़ी देर की ही बात है... मुझे पूरा यकीन है माँ-पापा जरूर मान जाएंगे, उनके लिए मेरी खुशी से बड़ी कोई खुशी नहीं है।" - मैंने कहा।
पता है, पापा चाहते थे मैं इंजीनियरिंग करूँ; लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं इवेंट मैनेजमेंट में जाना चाहता हूँ, तो वो थोड़ा निराश हुए, लेकिन तुरंत तैयार भी हो गए। उन्होंने मेरे प्रोफेशन में ही अपनी खुशी ढूंढ ली थी... इस बार भी मुझे पूरा यकीन है।
__“लेकिन तुमने घर पर पहले से बता तो दिया है न, कि मुझे मिलवाने ला रहे हैं?" - शीतल ने पूछा।
में कुछ देर चुप रहा। शीतल ने शायद एक ऐसा सवाल पूछ लिया था, जिसका जवाब देना में नहीं चाहता था, इसलिए उससे बच रहा था। ___
मैं कुछ पूछ रही हूँ तुमसे राज; तुमने घर पर बताया है न कि आज तुम मुझसे मिलवा रहे हो सबको?" - शीतल ने फिर पूछा।
"शीतल, दरअसल, मम्मी, छोटी बहन और भाई को पता है।" - मैंने कहा।
और आपके पापा?"- शीतल ने कहा। “पापा को नहीं पता... माँ से बात हुई है, वह उन्हें मना लेंगी आने के लिए। मैं पापा को नहीं मना पाता, इसलिए माँ को ही सिर्फ बता दिया। छोटी बहन की बातें पापा मानते हैं; उसने हमसे कहा है वह सब ठीक कर देगी।"- मैंने कहा।
“राज, पापा को बता देते...मुझे बहुत डर लग रहा है कि क्या होगा।"- शीतल ने कहा।
“डोंट वरी शीतल, सब ठीक होगा; मैंने तुम्हारे रुकने के लिए होटल में अरेंजमेंट किया है... वहाँ तुम तैयार होना और मैं घर से सबको लेकर परमार्थ-निकेतन पहुँच जाऊँगा।" मंने कहा।
“मतलब, सीधे घर पर नहीं मिलूँगी मैं सबसे?"- शीतल ने पूछा।
"ठीक है राज, आई होप सब ठीक होगा; जैसा भी हो मैसेज पर कनेक्ट रहना।" शीतल ने कहा।
"तुम फिकर मत करो शीतल...थोड़ा सो लो, अभी ऋषिकेश दूर है"- मैंने कहा।
"नींद तो नहीं आएगी ऐसे... पर आँखें दर्द कर रही हैं, तो बंद कर लेती हूँ; आपको तो नींद नहीं आ जाएगीन ऐसे?"
"नहीं तुम आँखें बंद कर लो, मैं ड्राइब कर लूँगा।”- मैंने कहा। शीतल ने अपना सिर कार की सीट पर टिका लिया था और आँखें बंद कर ली थीं। मैं असमंजस की हालत में कार ड्राइब कर रहा था। वहीं पुराने खयाल और भविष्य की कुछ तस्वीरें दिमाग में घूम रही थी और इन तस्वीरों से बेफिकर मैं कार ड्राइव करता जा रहा था।
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