Thriller विक्षिप्त हत्यारा
08-02-2020, 01:08 PM,
#31
Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"इन्स्पेक्टर साहब ।" - सुनील बाला - "दोपहर को मुझे फ्लोरी का पता नहीं मालूम था । फ्लोरी का पता मैंने अभी मैड हाउस से मालूम किया है ।"
"यहां तुम फ्लोरी से मिलने आये हो ?"
"हां ।"
"क्यों ?"
"फ्लोरी मेरी गर्लफ्रैंड है ।"
"मैंने यह नहीं पूछा फ्लोरी तुम्हारी क्या है ! मैंने पूछा है कि इतनी रात गये फ्लोरी से क्यों मिलने आये हो ?"
"मैंने यही बताया है इन्स्पेक्टर साहब, फ्लोरी मेरी गर्लफ्रैंड है और आदमी अपनी गर्लफ्रैंड से इतनी रात गये क्यों मिलने आता है ?"
"रोमांस ?"
सुनील चुप रहा ।
"फ्लोरी को मालूम था तुम आ रहे हो ?"
"नहीं । वह तो समझती थी कि मैं उसके घर का पता कभी नहीं जान पाऊंगा ।"
"फिर तुमने कैसे जाना ।"
"मैड हाउस में एक व्यक्ति को रिश्वत देकर । फ्लोरी रोज वहां अपने फोटोग्राफर के धन्धे के लिये जाती थी । इसलिये मुझे उम्मीद थी कि मैड हाउस में किसी न किसी को उसका पता जरूर मालूम होगा ।"
"इससे पहले तुमने कभी उसका पता जानने की कोशिश नहीं की थी ?"
"नहीं ।"
"क्यों ?"
"पहले कभी जरूरत नहीं पड़ी थी ।"
"क्यों जरूरत नहीं पड़ी थी ?"
"क्योंकि पहले वह रोज रात को मैड हाउस आती थी, लेकिन आज रात वह नहीं आई थी ।"
"आखिरी बार फ्लोरी से कब मिले थे तुम ?"
सुनील ने कानों में घन्टियां बजने लगीं । यह प्रश्न उसका बहुत जाना-पहचाना था । यह प्रश्न तभी पूछा जाता था जबकि प्रश्न जिसके बारे में पूछा जा रहा हो वह या तो फरार हो गया हो और या फिर दूसरी दुनिया में पहुंच गया हो ।
"फ्लोरी कहां है ?" - उसने सशंक स्वर से पूछा ।
"जो मैंने पूछा, उसका जवाब दो ।" - प्रभूदयाल कर्कश स्वर से बोला ।
"कल रात को ।"
"किस समय ?"
"मैं उससे लगभग सवा बारह बजे अलग हुआ था ।"
"उसके बाद से तुमने उसकी सूरत नहीं देखी ?"
"नहीं ।"
"फ्लोरी भीतर है ।" - एकाएक प्रभूदयाल बगल के एक कमरे की ओर संकेत करता हुआ बोला - "जाओ, मिल लो ।"
सुनील अनिश्चित सा बगल के कमरे की ओर बढा ।
झिझकते हुए उसने उस कमरे का द्वार खोलकर भीतर कदम रखा ।
भीतर कमरे में एक टेबल लैम्प के प्रकाश में सुनील की आंखों के सामने जो दृश्य आया उसे देखकर उस की आंतें उबल पड़ी ।
वह एक बैडरूम था । पलंग पर फ्लोरी की लाश पड़ी थी । लाश की हालत ऐसी थी जैसे वह कोई इन्सान न होकर कोई बकरा हो जिसके शरीर का आधा गोश्त काट-काट कर बेचा जा चुका हो । हत्यारे ने फ्लोरी के शरीर को बड़ी बेदर्दी से चाकू से काटा था । चेहरे को छोड़कर शरीर का कोई ऐसा भाग नहीं था जहां से गोश्त के लोथड़े न उखड़े पड़े हों । उसकी दोनों छातियां कटी हुई थीं और उनका गोश्त पसलियों के पास लटक रहा था । बाकी शरीर पर चाकू के कई गहरे घाव थे । आंखें बाहर उबली पड़ रही थीं, जैसे अभी शरीर से अगल हो जायेंगी । पलंग की चादर बैडरूम का फर्श पर दीवारें बूचड़खाने की तरह खून से रंगी हुई थीं।
ऐसी नृशंस हत्या सुनील ने आज तक नहीं देखी थी ।
एकाएक सुनील ने एक जोर की उबकाई ली और अपना पेट पकड़ लिया ।
"इधर ।" - अपने पीछे से उसे प्रभूदयाल की आवाज सुनाई दी ।
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा - by hotaks - 08-02-2020, 01:08 PM

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