FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:05 PM,
#28
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
उस वक्त रात के करीब दो बज रहे थे, जब मर्सडीज ताजमहल की डमी-सी नजर आने वाली कोठी के लोहे वाले गेट के नजदीक पहुंची।
बन्दूकधारी दरबान ने लपककर ताला खोला।
'हरामजादा।' ड्राइविंग सीट पर बैठा मिक्की बड़बड़ाया—'हमेशा नफरत से देखता था मुझे, आवारा कुत्ता समझता था।'
गेट खुलते ही वह मर्सडीज को गन से निकली गोली के समान अन्दर ले गया और गैरेज के नजदीक एक झटके से रोक दी।
दरबान दौड़कर नजदीक आया।
जोरदार सैल्यूट दिया।
मिक्की ने गर्दन में जुम्बिश तक पैदा न की।
दरबान ने गैरेज का लॉक खोलकर शटर ऊपर उठाया, मिक्की गाड़ी को गैरेज के अन्दर ले गया—दरबान ने शटर वापस गिरा दिया।
गाड़ी को लॉक किए बिना मिक्की बाहर निकला।
गैरेज में एक अन्य दरवाजा था जिसके लॉक की चाबी उसने अपनी जेब से निकाली—लॉक खोलकर कोठी के ड्राइंग हॉल में पहुंचा।
एक-एक चीज के बारे में यह सोचता हुआ कि अब वह मेरी है, मिक्की सीढ़ियों पर बिछे कालीन को रौंदता हुआ फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचा।
अपने या यूं कहो कि सुरेश के कमरे की लाइट ऑन करने के बाद उसने एक बार फिर उसकी शानो-शौकत को निहारा।
दृष्टि कमरे के एक अन्य दरवाजे पर चिपक गई।
उसे मालूम था कि यह दरवाजा सुरेश और विनीता के कमरों को एक करता है, इस वक्त विनीता सो रही होगी।
एकाएक विनीता का माखन में मिले एक चुटकी सिन्दूर के रंग का चेहरा और गदराया जिस्म आंखों के सामने तैर उठा—इस ख्याल ने उसे रोमांचित कर डाला कि जिस विनीता के समूचे जिस्म से मुझे देखते ही नफरत की चिंगारियां छूटने लगती थीं, आज एक तरह से
वह मेरे पहलू में है।
मिक्की के दिल में विचार उठा कि आज मैं विनीता से नफरत-भरी नजरों का प्रतिशोध ले सकता हूं—उसके गुरूर को चूर-चूर कर सकता हूं—वह बेवकूफ और घमण्डी औरत क्या जान पाएगी कि मैं सुरेश नहीं मिक्की हूं—वही मिक्की, जिसे देखकर वह कुछ ऐसे अन्दाज में नाक सिकोड़ लेती थी जैसे मेरे शरीर से बदबू आ रही हो।
विनीता को पाने की इच्छा कम, बदला लेने की इच्छा ज्यादा लिए वह बन्द दरवाजे की तरफ बढ़ गया—नजदीक पहुंचकर दरवाजा खोलने के लिए हाथ से किवाड़ों पर दबाव बढ़ाया—किन्तु शीघ्र ही अहसास हुआ कि विनीता ने अपनी ओर से चटकनी चढ़ा रखी है—चोर चोर ही होता है—यह बात उस वक्त साबित हुई जब मिक्की ने 'की—होल' से आंख सटाकर विनीता के कमरे का दृश्य देखने का प्रयास किया।
मगर असफल रहा।
'की-होल' से वह सिर्फ दरवाजे के दूसरी तरफ खिंचे कीमती पर्दे का जर्रा देख सका—मन में विचार उठा कि दस्तक देकर विनीता को जगाए।
इस विचार को कार्यान्वित करने के लिए अभी उसने हाथ उठाया ही था कि जाने कैसे मस्तिष्क में विचारों का बवंडर उठ खड़ा हुआ—अलका के बेहोश जिस्म को गाड़ी में लादने से बाद के दृश्य आंखों के समक्ष चकरा गए।
दिलो-दिमाग पर अजीब घबराहट सवार हो गई।
यह सोचने पर वह विवश हो गया कि क्या आगे भी सबकुछ उसी तरह ठीक होगा, जिस तरह अब तक होता आया है? कहीं अलका की लाश मेरी सारी योजना को जर्रे-जर्रे करके बिखेर तो नहीं डालेगी? क्या सुबह तक वही सबकुछ होने जा रहा है जो मैंने सोचा है? क्या उसमें कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं होगी?
इन्हीं सब विचारों ने मिक्की को इतनी उद्विग्न कर दिया कि दरवाजे पर दस्तक देने और विनीता के साथ हमबिस्तर होकर प्रतिशोध लेने का ख्याल मस्तिष्क के गर्त में जा गिरा—यह सोच-सोचकर अजीब-सी घबराहट उस पर हावी होती चली गई कि क्या आगे भी उसका प्लान पूर्णतया सफल रहेगा?
क्या अलका के मामले में भी पुलिस उसी तरह धोखा खा जाएगी जैसे सुरेश के मामले में खा गई? कहीं पुलिस वास्तविकता तक तो नहीं पहुंच जाएगी?
मिक्की बेचैन-सा हो उठा।
बन्द कमरे में दम घुटता-सा लगा।
राहत के लिए वह पिछले लॉन में खुलने वाली एक खिड़की की तरफ बढ़ा, चटकनी गिराकर दरवाजा खोलते ही उसके जेहन में स्वच्छ एवं ताजी हवा का झोंका टकराया—हल्की-सी राहत महसूस की उसने।
वे विचार छिन्न-भिन्न होने लगे जो मन में घबराहट पैदा कर रहे थे और अभी राहत की मुश्किल से एक या दो सांसें ही ली थीं कि बुरी तरह चौंक पड़ा।
जबरदस्त फुर्ती के साथ मिक्की ने खिड़की के किवाड़ भिड़ाए।
दिल धक्-धक् करके बज रहा था।
पसलियों पर एक निश्चित अंतराल से मानो हथौड़े की चोट पड़ रही थी और इस सबका कारण ये था कि उसने विनाता के कमरे की खिड़की खुलते ही नहीं, बल्कि उससे निकलकर एक साए को 'रेन वाटर पाइप' पर झूलते देखा था।
बुरी तरह धड़क रहे दिल का काबू पाने के असफल प्रयास के साथ मिक्की ने पूरी सावधानी के साथ, आहिस्ता से दोनों किवाड़ों के बीच दरार उत्पन्न कर झांका।
साया फुर्ती के साथ पाइप पर उतरता चला जा रहा था।
मिक्की के जेहन में ख्याल उठा—'कौन है ये?'
यह सवाल बार-बार उसके मस्तिष्क से टकराने लगा और तब तक टकराता रहा, जब तक कि साया चोरों की तरह लॉन से गुजरकर एक ही जम्प में चारदीवारी पार करके कोठी की सीमा से बाहर न निकल गया।
विनीता के कमरे की खिड़की बन्द होने की आवाज उभरी।
यह समझने में मिक्की को देर न लगी कि अपने 'यार' को सुरक्षित बाहर निकलता देखने के बाद विनीता ने ही खिड़की बन्द की है।
कौन है वो?
क्या सुरेश उसके बारे में कुछ जानता था?
जाहिर था कि साया उस रास्ते से विनीता से मिलने अक्सर आता था, क्या सुरेश ने भी कभी उसे इसी तरह देखा था, जिस तरह मैंने आज पहली रात में ही देख लिया था—क्या सुरेश विनीता के इस 'यार' की हकीकत से वाकिफ था?
क्या इसीलिए सुरेश को विनीता से नफरत थी?
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RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन - by desiaks - 06-13-2020, 01:05 PM

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